भोपाल: कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा मध्य प्रदेश में पहुंच चुकी है। 23 नवंबर को भारत जोड़ो यात्रा ने बुरहानपुर से कांग्रेस में एंट्री की। मध्य प्रदेश में 12 दिन तक कांग्रेस की यह यात्रा मालवा-निमाड़ अंचल पर फोकस करेगी। बता दें कि मालवा-निमाड़ वह बेल्ट है, जहां आदिवासियों की बड़ी आबादी रहती है। इस तरह कांग्रेस एक बार फिर ट्राइबल कनेक्शन से तार जोड़ती नजर आ रही है। बता दें कि भारत जोड़ो यात्रा में कांग्रेस का आदिवासी कनेक्शन पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले गुजरात और तेलंगाना में भी राहुल गांधी इस तबके की बात कर चुके हैं। आखिर इसके पीछे कांग्रेस का इरादा क्या है, आइए जानते हैं…
मध्य प्रदेश में भाजपा की काट
मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी बीते कुछ अरसे से लगातार आदिवासी वोट बैंक पर फोकस किए हुए है। बीते साल दिसंबर में शिवराज कैबिनेट ने पातालपानी में टंट्या भील सम्मान समारोह का आयोजन किया था। इतना ही नहीं, पातालपानी स्टेशन का नाम बदलकर टंट्या भील के नाम पर रखने का प्रस्ताव भी केंद्र सरकार को भेजा गया था। इसके अलावा टंट्या भील की यात्राएं भी यहां निकाली गई थीं। इसके अलावा मध्य प्रदेश में आदिवासियों से जुड़े विभिन्न आयोजन भी हुए थे, जिनमें गृहमंत्री अमित शाह से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक शामिल हुए थे। हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति के नाम पर किए जाने की कवायद को भी आदिवासियों को खुश करने से ही जोड़कर देखा गया था।
मध्य प्रदेश में ऐसा है आदिवासी सीटों का गणित
मध्य प्रदेश का सियासी गणित आदिवासियों के वोटों के बिना हल नहीं हो सकता। यहां पर अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। अगर सीटवाइज बात करें तो मध्य प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। इसके अलावा करीब 100 सीटें ऐसी हैं, जिन पर आदिवासी वोट जीत और हार तय करता है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस के बीच इस आदिवासी वोट बैंक को अपने पाले में करने की कवायद चल रही है। बता दें कि साल 2018 में कांग्रेस ने इन्हीं आदिवासी वोटों के दम पर एमपी सत्ता का वनवास खत्म किया था। तब उसने आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 में से 30 सीटों पर अपनी विजय पताका फहराई थी। अब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के साथ कांग्रेस अपने इस वोट बैंक को फिर से लुभाने के जतन कर रही है।
मध्य प्रदेश से गुजरात-राजस्थान पर नजर
मध्य प्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान आदिवासियों पर फोकस करके गुजरात और राजस्थान पर भी निशाना साध रही है। अगर गुजरात में सीटों की बात करें तो यहां पर कुल 182 में से 27 सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं। इसके अलावा करीब 40 सीटें ऐसी हैं, जहां पर आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में है। पिछले चुनाव में इन आदिवासी सीटों पर कांग्रेस ने कमाल किया था और 15 पर जीत दर्ज की थी। दूसरी तरफ भाजपा ने महज 9 सीटें जीती थीं। अब कांग्रेस आदिवासी वोटरों को लुभाकर 2017 का कारनामा फिर से दोहराना चाहती है। कुछ ऐसा ही हाल राजस्थान का भी है, जहां विधानसभा की कुल 200 सीटों में से 25 सीटें आदिवासियों की लिए रिजर्व हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का इनमें से 13 सीटों पर कब्जा रहा था।