भोपाल। साल 1984 में 2-3 दिसंबर की दरमियानी रात यूनियन कार्बाइड गैस ने नीद में मदहोश पूरे भोपाल को अपनी आगोश में ले लिया था, जो जहां था वहीं उसका दम घुटता जा रहा था और सुबह तक जमीन पर लाशें बिछ गईं. अब तक की सबसे बड़ी गैस त्रासदी के 37 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज तक न पीड़ितों के जख्म भरे और न ही उस त्रासदी के निशान मिट पाए हैं. भोपाल गैस त्रासदी के 37 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड कारखाने के गोदाम और उसके बाहर तालाब में दफन जहरीले कचरे को नष्ट नहीं कर पाई है. कई बार इस कचरे को हटाने की कवायद हुई, पर हर बार वक्त के साथ ठंडे बस्ते में चली गई और कारखाने के भीतर 137 मीट्रिक टन और बाहर 200 मीट्रिक टन कचरा आज भी जमा है, जो उस भयानक त्रासदी की याद दिलाता रहता है.
गुजरात की कंपनी ने कचरा नष्ट करने का टेक्निकल प्रेजेंटेशन दिया
गुजरात की एक कंपनी से कचरा नष्ट करने के लिए टेक्निकल प्रेजेंटेशन लिया गया था, लेकिन अभी तक टेंडर प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है, जिससे जहरीले कचरे के सैंपल नहीं लिए गए, इस कंपनी को जिम्मा दिया गया था कि कचरा उठाने से लेकर इंसीनरेटर में जलाने तक का काम यही करेगी, इसके लिए केंद्र सरकार ने करीब 350 करोड़ रुपए खर्च का अनुमान लगाया है, यह पैसा भी केंद्र से मिला नहीं है, लिहाजा कचरा भी वहीं पड़ा है, हमारे संवाददाता सरस्वती चंद्र ने यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के अंदर पहुंचकर जहरीले कचरे के बारे में बताया और पाया कि अभी भी हालात जस के तस हैं.
गैस पीड़ित संगठन की कार्यकर्ता रचना ढींगरा संगठन की तरफ से लगातार यह मांग करती रही हैं कि 337 मीट्रिक टन कचरे की बात सरकार कर रही है, लेकिन असल में यह लाखों मीट्रिक टन कचरा है, जोकि तालाब में दफन है.
2015 में पीथमपुर में जलाया गया था 10 मीट्रिक टन कचरा
2015 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यहां का 10 मीट्रिक टन कचरा पीथमपुर में रामकी इंसुलेटर में ट्रायल रन के दौरान जलाया गया था, इसके लिए कंपनी को ₹1 करोड़ दिए गए थे, लेकिन खर्च ज्यादा आने के चलते इसे आगे नहीं बढ़ाया गया.
तकनीकी दिक्कतों के कारण नहीं नष्ट हो पा रहा है कचरा
डाउ केमिकल के यूनियन कार्बाइड कंपनी में 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा आज भी पड़ा है, राज्य सरकार चाहती है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नष्ट किए गए कचरे की रिपोर्ट तैयार करे और आगे भी निपटान की कार्रवाई खुद की निगरानी में करे, जबकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड चाहता है कि स्थानीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व सरकार जहरीले कचरे को नष्ट कराए, इस कारण अभी तक कचरा नष्ट नहीं हो पाया है.
42 कॉलोनियों के भूमिगत जल में मिले खतरनाक रसायन
इस कचरे की वजह से आसपास की 42 कॉलोनियों के भूमिगत जल स्रोतों में खतरनाक रसायन का स्तर बढ़ा है, पहले यह रसायन 36 कॉलोनियों के भूमिगत जल स्रोतों तक ही सीमित था, भारतीय विश्व विज्ञान संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में इसकी पुष्टि की है.
क्या हुआ था त्रासदी की उस रात
साल 1984 में 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात डाउ केमिकल्स का हिस्सा रहे यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के प्लांट नंबर सी से गैस रिसने लगी, यहां प्लांट को ठंडा करने के लिए मिथाइल आइसोसायनेट नाम की गैस को पानी के साथ मिलाया जाता था. उस रात इसके कॉन्बिनेशन में गड़बड़ी हो गई और पानी लीक होकर टैंक में पहुंच गया. इसका असर यह हुआ कि प्लांट के 610 नंबर टैंक में तापमान के साथ प्रेशर बढ़ गया और उससे गैस लीक हो गई. देखते ही देखते हालात बेकाबू हो गए. जहरीली गैस हवा के साथ मिलकर आसपास के इलाकों में फैल गई और फिर जो हुआ वह भोपाल शहर का काला इतिहास बन गया.