गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर गुरुवार को पद्म पुरस्कारों का एलान कर दिया गया है। मध्यप्रदेश से चार हस्तियों का चयन किया गया है। माच रंगमंच का चेहरा कहे जाने वाले ओमप्रकाश शर्मा, अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कबीर भजन गायक कालूराम बामनिया, भारतीय तैराक सतेंद्र सिंह लोहिया और लेखक-साहित्यकार भगवती लाल राजपुरोहित के नाम हैं।उज्जैन के रहने वाले 85 वर्षीय शर्मा ने माच गायन शैली के अलावा उसे रंगमंच की विधा से भी जोड़ा और 18 नाटक लिखे। मालवी माच गीत और नाटकों के साथ उन्होंने देशभर में कई शहरों में प्रस्तुतियां दीं। ओमप्रकाश शर्मा माच विधा से लोक कला में रुचि रखने वाले युवा कलाकारों को भी जोड़ने का काम कर रहे हैं।
क्या है माच शैली
माच हिंदी शब्द मंच का अनुवाद है। माच का प्रदर्शन पहले होली के त्योहारों के आसपास किया जाता है। 100-150 साल पहले मालवा क्षेत्र के अखाड़ों में माच का प्रदर्शन मनोरंजन के लिए होता था। बाद में ओमप्रकाश शर्मा के दादा दौलतगंज अखाड़े के उस्ताद कालूराम ने माच के लिए नाटक लिखे। उन्हें जयसिंह पुर अखाड़े के उस्ताद बालमुकुंद का साथ मिला। ओमप्रकाश ने भी अपने दादा से ही माच गायन शैली सीखी और बाद में उन्होंने भी नाटक लिखना शुरू किए। धीरे-धीरे इस कला ने जोर पकड लिया और त्योहारों पर मालवा बेल्ट में कलाकार इसे प्रदर्शित करने लगे। माच गीतों मेें बड़े ढोलक, सारंगी व अन्य वाद्ययंत्रों को उपयोग होता है। अब हारमोनियम का उपयोग भी कलाकार करते हैं।
कालूराम बामनिया
अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कबीर भजन गायक कालूराम बामनिया को भी पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है। वे कबीर को अपने अनूठे तरीके से प्रस्तुत करते हैं। कालूराम बामनिया मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में कबीर, गोरखनाथ, बन्नानाथ और मीरा जैसे भक्ति कवियों को गाने की एक जीवंत परंपरा से संबंधित हैं। उन्होंने 9 साल की कम उम्र में ही अपने पिता, दादा और चाचा के साथ मंजीरा सीखना शुरू कर दिया था। जब वे 13 वर्ष के थे, तब वे घर से भाग के राजस्थान चले गए, जहां उन्होंने 1-2 वर्षों के लिए भ्रमणशील मिरासी गायक राम निवास राव के गीतों की एक विस्तृत सूची को समाहित किया।
सतेंद्र सिंह लोहिया
सतेंद्र सिंह लोहिया 70% विकलांगता वाले एक भारतीय तैराक हैं। इनका नाम भी पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है। सतेंद्र का जन्म 1987 में जिला भिंड मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में एक सामान्य बच्चे की तरह हुआ था, लेकिन जन्म के पंद्रह दिनों के भीतर एक गंभीर बीमारी का उचित इलाज न होने के कारण उनके पैरों की नसें सिकुड़ गईं, जिसके कारण उनके दोनों पैर 70 प्रतिशत अक्षम हो गए। सतेंद्र को कई अवॉर्ड मिल चुके हैं।
भगवती लाल राजपुरोहित
मध्यप्रदेश के भगवती लाल राजपुरोहित को भी पद्मश्री के लिए चयनित किया गया है। वे साहित्य, संस्कृति, हिन्दी, मालवी में सतत लेखन करते रहे हैं। 2 नवंबर 1943 में धार जिले में जन्मे डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित भारतीय विद्वत्परम्परा के अनन्य साधक, सर्जक और अनुसन्धाता रहे हैं। उन्हें मध्य प्रदेश संस्कृत अकादमी का ‘भोज पुरस्कार’ (1984, 1990), म.प्र. उच्च शिक्षा अनुदान आयोग द्वारा ‘डॉ. राधाकृष्णन सम्मान’ (1990, 1992), म.प्र. साहित्य परिषद् का ‘बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ पुरस्कार’ (1988) आदि पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। उल्लेखनीय है कि राजपुरोहित को भारतीय रंगमंच में विद्वत्ता के लिए सम्मानित किया जा चुका है। इन्होंने ‘मालवी संस्कृति और साहित्य’ सहित 100 से अधिक पुस्तकों और 50 से अधिक नाटकों की रचना की है।