बुंदेलखंड की सियासत में मजबूती की तरफ सिंधिया, गोविंद के सहारे दिग्गज गोपाल भार्गव को साधने में कामयाब

सागर। कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामने के बाद एमपी में सिंधिया की सक्रियता कई गुना ज्यादा बढ़ गई है. ग्वालियर-चंबल और मालवा के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया उन अंचलों में भी अपने आप को मजबूत करने में जुट गए हैं, जहां कांग्रेस में रहते हुए ध्यान ही नहीं देते थे. उन्होंने अब बुंदेलखंड की सियासत के समीकरण बदलने की शुरुआत कर दी है और उनके खास परिवहन एवं राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत सक्रिय नजर आ रहे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गोविंद राजपूत के जरिए बुंदेलखंड के सबसे दिग्गज भाजपा नेता गोपाल भार्गव को अपने खेमे में शामिल करने में सफलता हासिल की है. पिछले दिनों रहस लोकोत्सव में इसका नजारा साफ देखने को मिला.

Scindia's entry in politics of Bundelkhand
बुंदेलखंड की सियासत में सिंधिया की एंट्री

सिंधिया को मिला गोपाल भार्गव का साथ

गोपाल भार्गव 1985 से लगातार विधायक हैं, लेकिन भाजपा संगठन और सरकार में उनको कभी विशेष महत्व नहीं दिया गया. खासकर उमा भारती के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद शिवराज सिंह ने लगातार गोपाल भार्गव को कमजोर करने की कोशिश की. वहीं दूसरी तरफ गोपाल भार्गव अपने बेटे अभिषेक भार्गव के लिए संगठन में महत्वपूर्ण पद बनाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहे, लेकिन संगठन में उनके बेटे को कभी तवज्जो नहीं मिली. इसके अलावा 2013 से बेटे के लिए लोकसभा टिकट के लिए गोपाल भार्गव प्रयासरत रहे, लेकिन टिकट हासिल नहीं हो सका. इन समीकरणों के चलते गोपाल भार्गव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीब जाना ठीक समझा. बुंदेलखंड ही नहीं, मध्य प्रदेश की सियासत में एक नया समीकरण उभरता हुआ दिख रहा है.

विधानसभा में सबसे अधिक चुनाव जीते गोपाल भार्गव

पूर्व नेता प्रतिपक्ष और मौजूदा शिवराज सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव 1985 से लगातार विधानसभा चुनाव जीत रहे हैं. उन्हें बुंदेलखंड के अजेय योद्धा के नाम से पुकारा जाता है. मौजूदा विधानसभा में सबसे अधिक विधानसभा चुनाव जीतने का तमगा गोपाल भार्गव को ही हासिल है. किसी जमाने में गोपाल भार्गव एकला चलो की नीति पर काम करते थे. लेकिन 2003 में बुंदेलखंड की दिग्गज फायर ब्रांड नेता उमा भारती के करीब आने के बाद उन्हें कई महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गई. उमा भारती लंबे समय तक मुख्यमंत्री नहीं रहीं और एमपी की कमान शिवराज सिंह के हाथों में आ गई. लगातार चुनाव जीतने और वरिष्ठता के चलते गोपाल भार्गव को शिवराज सिंह लगातार मंत्रिमंडल में तो शामिल करते रहे, लेकिन उन्हें खुलकर काम नहीं करने दिया गया.

वरिष्ठ होने के बावजूद उपेक्षित रहे मंत्री गोपाल

2018 में जब भाजपा की हार हुई और भाजपा आलाकमान को लगा कि मध्यप्रदेश के ब्राह्मणों ने उनका साथ नहीं दिया, तो गोपाल भार्गव को नेता प्रतिपक्ष जरूर बनाया गया. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने और भाजपा की सरकार अस्तित्व में आते ही नेता प्रतिपक्ष होने के कारण गोपाल भार्गव स्वाभाविक दावेदार थे, लेकिन मुख्यमंत्री पद फिर शिवराज सिंह को हासिल हुआ. और तो और गोपाल भार्गव को पीडब्ल्यूडी और लघु कुटीर उद्योग जैसे विभागों से संतोष करना पड़ा.

बेटे अभिषेक भार्गव के भविष्य को लेकर चिंतित गोपाल भार्गव

गोपाल भार्गव की उम्र करीब 70 साल हो चुकी है और उनके बेटे की उम्र करीब 40 साल हो चुकी है. पिछले 10 से 15 सालों से गोपाल भार्गव अपने बेटे अभिषेक भार्गव के राजनीतिक भविष्य को लेकर लगातार सक्रिय हैं, लेकिन उन्हें सफलता हासिल नहीं हो रही है. पहले उन्होंने अपने बेटे को संगठन की राजनीति में सक्रिय किया और भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के अध्यक्ष पद के लिए लगातार दावेदारी की, लेकिन उनकी कोशिशों को भाजपा के ही दिग्गजों ने कभी साजिशों तो कभी सियासत के जरिए कमजोर कर दिया.

करो या मरो की स्थिति में गोपाल भार्गव

गोपाल भार्गव ने संगठन के अलावा चुनावी राजनीति में बेटे अभिषेक भार्गव को उतारने के कई प्रयास किए, लेकिन उनके प्रयास असफल हुए. बुंदेलखंड में मजबूत जनाधार रखने वाले गोपाल भार्गव सागर, दमोह और खजुराहो से लोकसभा के लिए अभिषेक भार्गव की दावेदारी करते रहे. लेकिन कभी परिवारवाद के नाम पर तो कभी एक परिवार में एक व्यक्ति को टिकट के नाम पर उनकी कोशिशें नाकाम साबित हुईं. मौजूदा स्थिति में बेटे के राजनीतिक भविष्य को बनाने के लिए गोपाल भार्गव करो या मरो की स्थिति में पहुंच चुके हैं. ऐसी स्थिति में उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीब जाना ठीक समझा है.

मुख्यमंत्री का सपना संजो रहे नेताओं को सिंंधिया दे रहे कड़ी चुनौती

कांग्रेस छोड़ ज्योतिरादित्य सिंधिया की बीजेपी में आमद के बाद एमपी बीजेपी की सियासत के समीकरण उलट-पुलट हो चुके हैं. बीजेपी ने सरकार तो बना ली, लेकिन बीजेपी में रहकर भविष्य में मुख्यमंत्री बनने का सपना संजो रहे नेताओं को सिंधिया से कड़ी चुनौती मिल रही है. एक तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में अपने आप को मजबूत करने में जुटे हुए हैं. तो बीजेपी के वो नेता जो प्रदेश भाजपा के सियासी समीकरण के कारण पार्टी और सरकार से नाराज चल रहे हैं, वह सिंधिया के करीबी बनने में गुरेज नहीं कर रहे हैं.

मंत्री गोविंद सिंह राजपूत बने सूत्रधार

कांग्रेस में रहते हुए बुंदेलखंड में ज्योतिरादित्य सिंधिया के सिर्फ एकमात्र समर्थक गोविंद सिंह राजपूत हुआ करते थे. ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बुंदेलखंड में वर्चस्व बढ़ाने में रुचि नहीं दिखाते थे, लेकिन भाजपा में आने के बाद उन्होंने बुंदेलखंड में अपने गुट को मजबूत करने की तैयारी शुरू कर दी. गोविंद सिंह राजपूत भले कांग्रेस में और गोपाल भार्गव भाजपा में थे, लेकिन स्थानीय राजनीतिक समीकरणों के चलते दोनों नेताओं में एक गठबंधन देखने को मिलता था. जो पंचायतों और अन्य चुनाव में नजर भी आता था. दोनों दिग्गजों की विधानसभा भी आपस में लगी हुई हैं. ऐसी स्थिति में गोपाल भार्गव की सियासी परिस्थितियों को देखते हुए गोविंद सिंह राजपूत सिंधिया और गोपाल भार्गव के बीच सूत्रधार बने हैं.

सिंधिया भी बोले ‘गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो’

11 मार्च को रहस लोकोत्सव में ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किए गए. यहां गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव ने उनके स्वागत में जोरदार रोड शो करके अपने वर्चस्व का एहसास दिलाया. रोड शो में उमड़ी भारी भीड़ से ज्योतिरादित्य सिंधिया गदगद हो गए और मंच से उन्होंने गोपाल भार्गव और उनके बेटे की जमकर तारीफ की और भविष्य की सियासत का संदेश देने में कामयाब रहे. उन्होंने अपनी दादी का जिक्र कर जहां यह कहा, कि उनकी रगों में सागर का खून दौड़ रहा है. तो उन्होंने सियासी संदेश देने के लिए मंच से यह भी कहा कि, गोपाल बोलो हरि गोविंद बोलो. कुल मिलाकर ज्योतिरादित्य सिंधिया यह संदेश देने में सफल रहे कि गोविंद के बाद अब गोपाल भी उनके साथ हैं.

भाजपा की सियासत पर कितना पड़ेगा असर

शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री होते हुए बुंदेलखंड में भूपेंद्र सिंह सबसे मजबूत माने जाते हैं. उन्हें मलाईदार विभाग भी दिए जाते हैं और शिवराज का सबसे करीबी भी कहा जाता है. गोपाल भार्गव को भूपेंद्र सिंह से लगातार चुनौती भी मिलती है और कभी उमा भारती के करीबी होने के कारण उन्हें सियासी खामियाजा भी काफी भोगना पड़ा है. लेकिन नए सियासी समीकरण ने जो संदेश दिया है, वह शिवराज सिंह और भाजपा संगठन के लिए चिंता का विषय हो सकता है. क्योंकि गोपाल भार्गव बुंदेलखंड में मजबूत जनाधार वाले नेता हैं और उन्हें सिंधिया का साथ मिलता है, तो वह भाजपा की केंद्रीय राजनीति तक मजबूत होंगे. ऐसे में बुंदेलखंड में शिवराज सिंह का गुट कमजोर होगा. रहस लोकोत्सव के दौरान जब गोपाल भार्गव भावुक हुए, तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनका साथ देने की बात कही. कुल मिलाकर गोपाल भार्गव का उद्देश्य अपने बेटे के भविष्य को संरक्षित और सुरक्षित करना है और इसके लिए एक तरह से उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जाना ठीक समझा है.

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