वादों में अटल! सीएम की घोषणा के बाद भी अब तक फाइलों में घूम रहा ‘अटल स्मारक’, नहीं बंधी ‘न्यास की गठरी’

ग्वालियर। भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृति को स्थायी बनाए रखने की सारी कवायद अब तक सरकारी फाइलों में ही धूल फांक रही है. अटलजी के निधन के बाद बीजेपी उन्हें अस्थि कलश में लेकर घाट-घाट घूमती रही, उनकी स्मृतियों को संजोने का कोई मुकम्मल जतन न सरकार की तरफ से किया गया और न ही पार्टी के स्तर पर. हालांकि, वादे तो खूब लंबे-चौड़े किए गए, लेकिन जयंती और पुण्यतिथि के दिन लंबे चौड़े पोस्ट और लंबी-लंबी घोषणाएं सिर्फ वादों में ही सिमटकर रह गई है.

बीजेपी के गुमनाम युग पुरुष हैं अटलजी

अटलजी के निधन के तीन साल बाद भी ग्वालियर में न तो उनकी प्रतिमा लगाई जा सकी और न ही रोड या स्कूल-कॉलेज का नामकरण अटल जी के नाम पर किया गया. उनके जीवित रहते हुए ट्रिपल आईटीएम इंस्टीट्यूट का नाम उनके नाम पर रखा गया और साडा के प्रवेश द्वार को अटल द्वार नाम दिया गया. उपचुनाव के दौरान मंच से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अटल जी के नाम पर स्मारक और न्यास के गठन का एलान किया था, पर वो अभी तक सरकारी टेबल पर ही पड़ा है.

CM Shivraj announced formation of Atal Memorial and Trust pending till now
ग्वालियर में बना अटल जी का मंदिर

सीएम की घोषणा के बाद भी अधर में ‘अटल’

उपचुनाव के दौरान अटल स्मारक और न्यास गठित करने की सीएम की घोषणा के साल भर से ज्यादा वक्त बीत गया है, आज तक अटल स्मारक के नाम पर जमीन तक फाइनल नहीं हो पाई है. अटल न्यास के गठन की घोषणा सरकार ने की थी, अभी तक यह भी पाइपलाइन में है. इसके बाद दिसंबर 2020 में सीएम ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर अटल स्मारक के प्रोजेक्ट प्लान पर चर्चा की थी, इसके बाद फिर सीएम ने घोषणा की थी, जो आज तक जमीन पर उतरा ही नहीं, जिस पर कांग्रेस भी हमलावर है.

अब तक न जमीन फाइनल हुई न न्यास बना

मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग की टीम ग्वालियर आकर अटल स्मारक के लिए प्रस्तावित स्थलों का भ्रमण भी कर चुकी है, जिसमें पहले नंबर पर सिरोल पहाड़ी और फिर रमौआ डैम के पास वाली जमीन को इसके लिए उपयुक्त बताया है. हाल ही में प्रदेश के गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने इन दोनों स्थलों का निरीक्षण भी किया था. पर न जमीन फाइनल हुई. न ही न्यास बन सका. बीजेपी कह रही है कि अटलजी का स्मारक भव्य रूप में बनाना है, इसलिए जमीन फाइनल होने में समय लग रहा है. एक नजर में समझिये क्या है अटल स्मारक और न्यास.

एक नजर में समझिये क्या है अटल स्मारक और न्यास

अटलजी की यादों को सहेजने पर कब होगा अमल

बहरहाल आज अटल जी की जयंती है, बीजेपी के अलावा दूसरे दलों के नेता भी उन्हें याद करेंगे क्योंकि अटलजी सबके थे. शहर में कार्यक्रम भी आयोजित किये जाएंगे, लेकिन बीजेपी ने स्मारक और न्यास की जो घोषणा की है, उस पर अमल कब तक हो पाता है, ये देखने वाली बात होगी.

प्रारंभिक जीवन

  • उनका जन्म मध्य प्रदेश में 25 दिसंबर 1924 को हुआ था. उन्होंने उत्तर प्रदेश के कानपुर के लक्ष्मीबाई कॉलेज से राजनीति विज्ञान में एमए किया.
  • उनके पिता का नाम कृष्ण बिहारी वाजपेयी था जो एक कवि और एक स्कूल मास्टर थे.
  • वाजपेयी और उनके पिता ने एक साथ लॉ स्कूल डीएवी कॉलेज से पढ़ाई की और कानपुर के एक ही कमरे में रहे.
  • अटल बिहारी वाजपेयी अपनी वीर रस की कविताओं के लिए भी प्रसिद्ध हैं जिसमें राष्ट्रवाद का सार है और मानवीय मूल्य भी हैं.
  • अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार भारत छोड़ो आंदोलन के साथ राजनीति की दुनिया में प्रवेश किया.
  • आप में से बहुत से लोग यह नहीं जानते होंगे कि वह 1939 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में एक स्वयंसेवक के रूप में भी शामिल हुए थे.
  • वाजपेयी भाजपा के पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के करीबी, अनुयायी और सहयोगी बन गए. उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का साथ दिया.
  • वह अपने अच्छे संगठनात्मक कौशल के कारण जनसंघ का चेहरा भी बन गए.
  • अंतत: वे दीनदयाल उपाध्याय के बाद 1968 में जनसंघ के प्रमुख बने. उन्होंने और उनकी पार्टी ने जेपी आंदोलन का समर्थन किया.
  • जब देश में आपातकाल (1975-1977) लगाया गया था तब वाजपेयी को जेल हुई थी.
  • वाजपेयी ने 1957 में संसद का पहला चुनाव जीता.
  • पूर्व पीएम अटल बिहारी लोकसभा में नौ बार और राज्यसभा में दो बार चुने गए.
  • वाजपेयी ने 1977 में एक उत्कृष्ट वक्ता के रूप में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई सरकार में भारत के विदेश मामलों के मंत्री के रूप में बहुत प्रसिद्धि अर्जित की. इसी दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रशंसित भाषण हिंदी में दिया.
  • प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनके ओजस्वी व्यक्तित्व और कौशल को देखकर भविष्यवाणी की थी कि वो एक दिन देश के पीएम बनेंगे.
  • युवा अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत-चीन युद्ध होने पर पीएम नेहरू सरकार को निशाने पर भी लिया था.

प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी की उपलब्धियां

  • अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधान मंत्री के रूप में पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले वाले पहले गैर कांग्रेसी नेता थे.
  • वह 13 दिनों के लिए 1996 में भारत के प्रधान मंत्री बने.
  • भारत के प्रधान मंत्री के रूप में उनकी प्रमुख उपलब्धियां थीं- राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता के चार प्रमुख शहरों को जोड़ना शामिल है.
  • यहां तक ​​कि उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए निजीकरण अभियान भी चलाया जिससे दुनिया में भारत की छवि को सुधारने में मदद मिली.
  • वाजपेयी को वर्ष 1992 में पद्म विभूषण पुरस्कार और 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
  • 1999 वाजपेयी ने लाहौर बस सेवा शुरू की जिसके लिए उनकी काफी सराहना की गई.
  • उन्हें 2014 में पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
  • लोग उन्हें प्यार से बाप जी कहकर बुलाते थे. स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उन्होंने वर्ष 2005 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया.
  • उन्हें 2014 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
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