केंद्र की IPDS योजना में हुआ घोटाला ! अधिकारियों के पास नहीं है 115 करोड़ रुपए का हिसाब

इंदौर। विद्युत वितरण कंपनी में इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेंट स्कीम (आईपीडीएस) योजना के तहत बड़े घोटाले सामने आ रहा है. शिकायतकर्ता अभिजीत पांडेय ने इस संबंध में इंदौर हाई कोर्ट में याचिका दायर की है. इसके साथ ही शिकायतकर्ता ने ईओडब्ल्यू सहित अन्य जगहों पर भी शिकायत की है. इस मामले में जिन अधिकारियों के नाम सामने आ रहे है उनमें से कुछ अधिकारियों का ट्रांसफर कर दिया गया है.जानकारी के अनुसार इस योजना के तहत इंदौर को तकरीबन 230 करोड़ रुपए मिले थे, लेकिन अधिकायरियों के पास सिर्फ 115 करोड़ रुपए के काम का हिसाब है. बाकी बचे पैसे कहा गए इसका कोई हिसाब नहीं है. शिकायतकर्ता ने दस्तावेजों के माध्यम से इन सभी घोटालों का खुलासा किया है. शिकायतकर्ता ने मांग की है कि इस मामले में निष्पक्ष जांच हो और जिम्मेदार अधिकायरियों के खिलाफ कार्रवाई हो.

केंद्र ने जारी किए थे 530 करोड़ रुपए

दरअसल केंद्र सरकार ने पश्चिम विद्युत वितरण कंपनी को विद्युत सप्लाई उपकरणों को दुरस्त करने के लिए इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेंट स्कीम (IPDS) के तहत 530 करोड रुपए का फंड जारी किया था. जिनमें बिजली के पोल, केबल सहित अन्य बिजली उपकरणों को दुरस्त करना था. इस योजना के तहत इंदौर जिले को 230 करोड़ रुपए आबंटित हुए थे. अब इस योजना में बड़ा घोटाले की खबरें सामने आ रहा है. जिसकी शिकायत इंदौर के शिकायतकर्ता ने प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर एमपी हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में की है.

कंपनी सहित 19 अधिकारियों को नोटिस

जानकारी के अनुसार 2 बार शिकायत करने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से पश्चिम विद्युत वितरण कंपनी और 19 से अधिक अधिकारियों को नोटिस जारी हुए है. पीएमओ ने नोटिस में योजना से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करने की बात कही है. इस मामले में शिकायतकर्ता ने विभिन्न विभागों में शिकायत के साथ ही इंदौर हाई कोर्ट में याचिका दायर की है. याचिका पर हाईकोर्ट में लगातार सुनवाई चल रही है.

जांच के नाम पर हो रही खानापूर्ति

इस मामले में शिकायतकर्ता ने ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर को भी शिकायत की है. शिकायत के बाद मंत्री ने कई अधिकारियों को विद्युत वितरण कंपनी से हटाकर उनके मूल विभाग भेज दिया है. वहीं कई अधिकारियों के ट्रांसफर अन्य जिलों में कर दिए गए है. जांच के नाम पर इस मामले में सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है. वहीं EOW (Economic Offences Wing) इस पूरे मामले की जांच में जुटा हुआ है.

इस तरह से हुआ योजना में घोटाला

योजना के तहत इंदौर शहर में विद्युत वितरण कंपनी के अधिकारियों और कर्मचारियों को बिजली के उपकरण लगाने सहित कई काम करने थे. इसके लिए निजी कंपनियों को टेंडर जारी किए गए. इंदौर जिले में पांच जोन बने हुए हैं, जिसमें नार्थ, साउथ, ईस्ट, वेस्ट के साथ ही ग्रामीण डिवीजन शामिल है. अलग-अलग जोन में अलग-अलग कंपनियों को टेंडर जारी किए गए. जिनमें प्रमुख रूप से छेमा इंटरप्राइजेज लिमिटेड, विक्रांत इंटरप्राइजेज लिमिटेड सहित एक अन्य कंपनी है.

इन्हीं कंपनियों के माध्यम से शहर भर में योजना के तहत कार्य होने थे, लेकिन कंपनियों के कर्ताधर्ता ने विद्युत वितरण कंपनी के अधिकारियों के साथ मिलीभगत करते हुए जिले भर में लगने वाले उपकरणों को पॉश कॉलोनियों में लगा दिए. कंपनियों ने उन कॉलोनी में भी उपकरण लगा दिए जो विद्युत वितरण कंपनी को नहीं सौंपी गई थी. जब मामला सामने आया तो इंदौर की पॉश कॉलोनियों में सबूत के तौर पर बिजली के पोल सहित अन्य उपकरण को जब्त किए गए.

पॉश कॉलोनियों में मिले बिजली के उपकरण

जब इस मामले में शिकायतकर्ता की शिकायत पर जांच हुई तो विभिन्न पॉश कॉलोनियों में EOW सहित अन्य विभागों ने दबिश दी. जांच में इंदौर की सुपर कॉरिडोर स्थित कॉलोनी टास्क इंफ्रा, बाईपास स्थित कई कॉलोनियों और देवास, रतलाम, शाजापुर सहित कंपनी के अधीन 15 जिलों में योजना में लगने वाले बिजली के उपकरण मिले. जिसको लेकर ईओडब्ल्यू ने पंचनामा भी बनाया था. लेकिन अभी तक इस मामले में ना तो विद्युत वितरण कंपनी के खिलाफ शिकायत हुई और ना ही निजी कंपनियों के खिलाफ FIR हुई.

क्या कहता है नियम

नियम के अनुसार विद्युत वितरण कंपनी को हैंडओवर होने से पहले यदि निजी कॉलोनी में वितरण कंपनी के सरकारी उपकरण पाए जाते हैं तो वितरण कंपनी कॉलोनीनाइजर और टेंडर लेने वाली कंपनी के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है. जब ईओडब्ल्यू की कार्रवाई में पाया गया कि बिजली विभाग के इस नियम का उल्लंघन हुआ है. लेकिन अभी तक इस मामले में ना तो विद्युत वितरण कंपनी ने कोई कार्रवाई की और ना ही EOW ने कोई एक्शन लिया.

हाईकोर्ट में निजी तौर पर की जाएगी शिकायत

शिकायतकर्ता का कहना है कि इस मामले को हर कोई विभाग दबाने की कोशिश कर रहा है. इसलिए अभी तक जांच के नाम पर सिर्फ अधिकारियों को बचाया जा रहा है. शिकायतकर्ता ने कहा कि इस मामले में वे जल्द ही इंदौर हाई कोर्ट में एक प्राइवेट कंप्लेंट करेंगे. प्राइवेट कंप्लेंट के माध्यम से अधिकारियों के साथ ही पॉश कॉलोनी के संचालकों पर ही प्रकरण दर्ज करवाने की मांग की जाएगी.

घोटाले पर मौन है वितरण कंपनी के अधिकारी

पश्चिम विद्युत वितरण कंपनी के घोटाले को लेकर सुपर कॉरिडोर क्षेत्र अधिकारी गजेंद्र कुमार से बात कि तो उन्होंने मामले में जांच की बात कहते हुए फोन काट दिया. वहीं इस मामले को लेकर संवाददाता ने वरिष्ठ अधिकारियों से भी संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने ऊर्जा मंत्री का हवाला देते हुए जांच के नाम पर चुप्पी साध ली. इस मामले में अधिकारियों के ट्रांसफर से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस मामले में जो घोटाला है उसे डायवर्ट किया जा रहा है.

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