G-20 सम्मेलन में भारत का क्या रोल है और इससे देश को क्या फायदा होगा?

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नवंबर 2022 में बाली शिखर सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी को जी20 की अध्यक्षता के लिए हथोड़ा सौंपा गया था. उस समय पीएम मोदी ने कहा था, ‘कोविड के बाद के दौर में नई व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी हमारे कंधों पर है. मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि जी20 की भारत की अध्यक्षता समावेशी, महत्वाकांक्षी, निर्णायक और सक्रियता भरी होगी. एकसाथ मिलकर हम जी20 को वैश्विक परिवर्तन का उत्प्रेरक बनाएंगे.’ अध्यक्षता सौंपे जाने के बाद से ही भारत तुरंत इसकी तैयारियों में लग गया.

1 दिसंबर 2022 से देशभर में इससे जुड़े कार्यक्रम शुरू किए गए, जो 30 नवंबर 2023 तक जारी रहेंगे. यानी 9 और 10 सितंबर को दिल्ली में होने वाले जी20 सम्मेलन के बाद भी भारत में इससे जुड़े कार्यक्रम चलते रहेंगे. जी20 सम्मेलन में भारत की भूमिका बताने से पहले ये बताना जरूरी है कि आखिर जी20 है क्या और इसकी शुरुआत क्यों हुई?

क्या है जी20?

जी20 यानी ग्रुप ऑफ ट्वेंटी, ये 20 देशों का एक समूह है. ये 20 देश साल में एक बार एक सम्मेलन के लिए इकट्ठा होते हैं और दुनियाभर के आर्थिक मुद्दों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, भ्रष्टाचार-विरोध और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर चर्चा करते हैं. जो देश इस सम्मेलन की अध्यक्षता करता है, उसका प्रमुख काम किसी विषय विशेष के प्रति सभी देशों के बीच आम सहमति बनाना होता है.  

G20 के सदस्य कौन-कौन से देश हैं?

जी20 में 19 देश- भारत, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किये, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ शामिल हैं. हर साल अध्यक्ष देश कुछ देशों और संगठनों को मेहमान के तौर पर भी आमंत्रित करता है.

इस बार भारत ने बांग्लादेश, ईजिप्ट, मॉरीशिस, नीदरलैंड, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को मेहमान के तौर पर बुलाया है. वहीं नियमित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (यूएन, आईएमएफ, डब्ल्यूबी, डब्ल्यूएचओ, डब्ल्यूटीओ, आईएलओ, एफएसबी और ओईसीडी) और क्षेत्रीय संगठनों (एयू, एयूडीए-एनईपीएडी और आसियान) की पीठों के अलावा जी20 के अध्यक्ष के रूप में भारत की ओर से आईएसए, सीडीआरआई और एडीबी को अतिथि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के रूप में आमंत्रित किया गया है.

G-20 में शामिल देशों का प्रभाव 

जी20 के सदस्य देश, दुनिया की 60% आबादी की नुमाइंदगी करते हैं. इन देशों का पूरी दुनिया की GDP में 85% और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में 75% हिस्सेदारी है.

G20 की कब और क्यों हुई थी शुरुआत?

साल 1997 में एशियाई वित्तीय संकट (1997 Asian Financial Crisis) के बाद वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों के लिए वैश्विक आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक मंच के रूप में जी20 की शुरुआत की गई थी. शुरुआत में जी20 का फोकस सिर्फ व्यापक आर्थिक मुद्दों पर था, लेकिन वक्त के साथ-साथ इसके एजेंडे में व्यापार, सतत विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और भ्रष्टाचार-विरोध शामिल किया गया.

साल 2007 में जब पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की चपेट में आई तो इस समूह की अहमियत और बढ़ गई. जहां पहले इस समूह में वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंक के गवर्नर शामिल थे, बाद में इसमें सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों को शामिल किया गया. इस तरह से इन देशों ने वाशिंगटन में 2008 में अपनी पहली बैठक की. साल 2009 और 2010 में जी20 की दो बैठकें हुईं. अब तक जी20 की कुल 17 बैठकें हो चुकी हैं और इस साल 18वीं बैठक की मेजबानी भारत कर रहा है.

भारत में जी20 शिखर सम्मेलन

भारत 1 दिसंबर 2022 से 30 नवंबर 2023 तक जी20 की अध्यक्षता करेगा. 16 नवंबर 2022 को जी20 बाली शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी को जी20 की अध्यक्षता सौंपी गई थी. इससे पहले 8 नवंबर 2022 को पीएम ने जी20 का लोगो लॉन्च किया था और भारत की जी20 प्रेसीडेंसी थीम- ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ यानी- ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’ का अनावरण किया था. जी20 के लोगो को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रंगों में डिजाइन किया गया है, जो हमारे पृथ्वी-समर्थक दृष्टिकोण और चुनौतियों के बीच विकास का प्रतीक है.

देश के उत्तरी छोर श्रीनगर से लेकर दक्षिण में तिरुवनंतपुरम और पश्चिम में कच्छ के रण से लेकर पूरब में कोहिमा तक में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है. सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश इस कार्यक्रम का हिस्सा हैं. इस कार्यक्रम के लिए देशभर में 56 आयोजन स्थल हैं जहां 200 से ज्यादा बैठकों का आयोजन किया जा रहा है.

जी20 में भारत की भूमिका क्या है?

जी20 सम्मेलन में तीन स्तरों पर भारत की जरूरत है.

  • पहली वैश्विक- जहां भारत को इस विभाजित दुनिया में अग्रणी भूमिका निभाना है, जिसकी लंबे समय तक छाप छोड़ना भी एक मूलभूत उद्देश्य है. साथ ही विकासशील देशों के सरोकारों को आगे बढ़ाना और उनके मुद्दों को प्राथमिकता से रखना भी भारत की जिम्मेदारी है.
  • दूसरी क्षेत्रीय- वैश्विक स्तर पर दक्षिण एशिया का अगुआ देश भारत ही है. इस वजह से दक्षिण एशिया के बाकी देशों के हितों को (जो जी20 का हिस्सा नहीं है) आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी भारत की ही है.
  • तीसरी घरेलू- आज पूरी दुनिया में भारत के नाम का डंका बज रहा है. सिर्फ भारत को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को भी भारत की जरूरत है. ऐसे में दुनियाभर में भारत की बढ़ती हैसियत की घरेलू माहौल में पुष्टि करना भी एक बड़ी जिम्मेदारी है.

जी20 में भारत किन मुद्दों पर देगा जोर?

भारत अपनी पूरी ताकत के साथ दुनिया के प्रमुख 20 देशों का नेतृत्व कर रहा है. भारत को मौका मिला है कि वह प्रमुख वैश्विक मुद्दों पर आम सहमति बनाने, सामूहिक कार्रवाई के लिए जोर डालने की अगुवाई करे और साथ ही विकासशील देशों के एजेंडों का चैंपियन बनकर उभरे. सीधे शब्दों में कहा जाए तो यह वैश्विक मंच भारत के बढ़ते महत्व को दर्शाने की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. इस सम्मेलन में चर्चा के दौरान कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां भारत की अपनी कोशिशों पर ध्यान फोकस करने की उम्मीद है.

जलवायु संकट होगी चर्चा

भारत से जलवायु परिवर्तन और सतत विकास पर चर्चा का नेतृत्व करने की जो उम्मीद विश्व ने रखी है, भारत उस पर खरा उतर रहा है. इस साल जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत के कई राज्य जैसे- हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड में भारी तबाही मची है. इसमें जान-माल का काफी नुकसान हुआ है. भारत के अलावा कई और देश भी जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा है. COP27 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे देशों को मुआवजे के लिए ‘घाटा और नुकसान’ फंड की स्थापना करने पर बात बनी थी. भारत जी20 सम्मेलन में इस फंड के क्रियान्वयन के लिए बात रख सकता है. साफ शब्दों में कहें तो भारत का ध्यान विकासशील देशों को उनके जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए विकसित देशों की आवश्यकता पर केंद्रित करने पर है.

वित्तीय विनियमन और आर्थिक विकास पर चर्चा

भारत दुनिया के लिए एक देश से ज्यादा एक बाजार है, जहां अपनी दुकान लगाने के लिए बाकी देशों में होड़ मची हुई है. इसी का नतीजा है कि भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है. भारत ने विकास को बढ़ावा देने के लिए हाल के वर्षों में आर्थिक सुधारों की एक श्रृंखला लागू की है. दुनिया के सभी देशों को इसका फायदा मिल सके इसके लिए भारत वित्तीय विनियमन के क्षेत्र में सदस्य देशों के बीच अधिक समन्वय के लिए जोर दे रहा है और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के उपायों की मांग को मजबूत कर रहा है.

डिजिटल फासले को कम करना

दुनिया की आधी आबादी के पास डिजिटल सुविधाएं नहीं हैं और भारत डिजिटल अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख खिलाड़ी है. सम्मेलन में भारत से टेक्नोलॉजी और डिजिटल अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में सदस्य देशों के बीच अधिक सहयोग पर जोर देने की उम्मीद है. भारत JAM (जन धन-आधार-मोबाइल) के जरिए अपने समावेशी डिजिटल क्रांति की विशेषता का लाभ भी दूसरों को दे सकता है. यूपीआई पेमेंट सिस्टम इसका एक बेहतरीन उदाहरण है.

भारत को G20 से क्या फायदा होगा?

भारत को आजाद हुए 76 साल हो चुके हैं. इस दौरान देश ने कई उपलब्धियां हासिल की है. हम आज कई क्षेत्रों में टॉप-5 में हैं, कई में टॉप-3 तो कुछ जगहों पर टॉप पर हैं.  इसके बावजूद भारत को विकासशील देशों में गिना जाता है. इसलिए जी20 एक ऐसा फोरम हैं जहां भारत अपनी श्रेष्ठता को और बेहतर ढंग से बता सकता है.

पीएम मोदी का भी लक्ष्य है कि जब देश आजादी के 100 साल मना रहा होगा, तब 2047 में भारत एक विकसित राष्ट्र होगा. दुनिया को बताने की जरूरत है कि भारत दुनिया का वैश्विक नेता बनने के लिए पूरी तरह तैयार है. भारत ने समय-समय पर दिखाया है कि विकसित देश उन्नत संसाधनों के बावजूद वो मुकाम हासिल नहीं कर पाते, जो भारत अपने सीमित संसाधनों के साथ कर लेता है.

चाहे मंगलयान हो या कोविड जैसी महामारी में 140 करोड़ देशवासियों की रक्षा करना या फिर चंद्रयान-3  हर मामले में भारत औरों से बेहतर है. दुनिया के बाकी देश भी अगर भारत के साथ मिलकर काम करेंगे तो मानव समाज की उन्नति और पृथ्वी संरक्षण के प्रयास में तेजी लाई जा सकती है. जी20 में भी भारत का उद्देश्य यही है. भारत का G20 अध्‍यक्षता थीम भी- ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ या ‘एक पृथ्वी, एक कुटुंब, एक भविष्य’ है.

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