थाली में सजाकर भारत ने चीन को कैसे दे दिया नेपाल? वो गलती, जिसे शी जिनपिंग ने दोनों हाथों से भुनाया!

नई दिल्ली: भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक और पारिवारिक संबंध रहे हैं और साल 2005 से पहले तक नेपाल के तमाम राजनीतिक फैसले भारत किया करता था, जबकि चीन दूर खड़ा बस देखता रहता था। लेकिन, साल 2005 में भारत की कांग्रेस सरकार के दौरान नेपाल को लेकर कुछ फैसले लिए गये और वो ऐसे फैसले थे, जिन्होंने भारत-नेपाल संबंध को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया। इतना ही नहीं, भारत सरकार की तरफ से जो फैसले लिए गये, वो एक तरह से ऐसा था, मानो भारत ने थाली में सजाकर नेपाल को चीन के हवाले कर दिया हो और अब चीन तेजी के साथ नेपाल पर ‘कब्जा’ करता जा रहा है, जबकि भारत अपनी पुरानी जमीन तलाशने के लिए हाथ-पैर मार रहा है। ऐसे में आईये जानते हैं, कि भारत ने क्या गलतियां कीं और नेपाल को चीन अपने लिए क्यों जरूरी मानता है?

नेपाल को चीन क्यों मानता है जरूरी?
चीन के दक्षिण एशिया में अपना वर्चस्व स्थापित करने के प्लान में नेपाल सबसे अव्वल स्थान पर है, लिहाजा चीन की कोशिश नेपाल की राजनीतिक को नियंत्रित करने की रही है, और नेपाल में इस बार होने वाला चुनाव या तो बीजिंग की नेपाल पॉलिसी को हमेशा के लिए खत्म कर सकता है, या फिर नेपाल उसके लिए रणनीतिक अड्डा बन सकता है। शी जिनपिंग भी लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति बन चुके हैं, लिहाजा अपने तीसरे कार्यक्रम में पूरी आशंका है, कि वो आक्रामक विदेश नीति के तहत आगे बढ़ेंगे, तो फिर भारत को ध्यान में रखते हुए चीन चाहेगा, कि वो इसी लोकसभा चुनाव परिणाम को नियंत्रित कर ले। हालांकि, चीन के लिए फिलाहाल ये काम थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि नेपाल की दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां एक दूसरे खिलाफ चुनावी मैदान मे हैं और नेपाल में सत्ताधारी कांग्रेस गठबंधन भारत के करीब है। लेकिन, नेपाल चुनाव प्रचार के दौरान भारत के खिलाफ आक्रामक बयानबाजी की गई है और चीन समर्थित ‘नेताओं’ ने जनता को काफी बर्गलाया है, लिहाजा भारत के लिए भी मुश्किलें कम नहीं हैं।

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