भारत ने एक बार फिर से अपने महत्वपूर्ण कूटनीतिक कमद से दुनिया को हैरान कर दिया। उसने संयुक्त राष्ट्र महासभा में इजरायल के खिलाफ एक प्रस्ताव में मतदान में अनुपस्थित रहने का फैसला किया। ये फैसला कई मायनों में अहम है। न केवल भारत इजरायल रिश्तों को मजबूत करने का संकेत हैं। बल्कि भारत की शांति के प्रति बद्धता को भी दर्शाता है। दरअसल, भारत हमेशा से अंतरराष्ट्रीय मंच पर शांति और स्थिरता का पक्षधर रहा है। चाहे वो गुट निरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा लेना हो या फिर संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में भारत का शामिल होना। भारत ने हमेशा से संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान खोजने की कोशिश की है।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में उस प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया, जिसमें इजराइल से एक साल के भीतर कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र में उसकी अवैध उपस्थिति समाप्त करने की मांग की गई। भारत ने इस बात पर जोर दिया कि वह बातचीत और कूटनीति का प्रबल समर्थक है और विभाजन को बढ़ाने के बजाय सेतु बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। इस संबंध में 193 सदस्यीय महासभा ने प्रस्ताव को पारित कर दिया, जिसके पक्ष में 124 देशों ने, विरोध में 14 देशों ने मतदान किया और भारत समेत 43 देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
भारत और इजरायल के संबंध पिछले कुछ दिनों में बेहद मजबूत हुए हैं। इजरायल भारत का एक प्रमुख रक्षा एवं तकनीकी साझेदार है। दोनों देशों के बीच रक्षा एवं खरीद बिक्री से लेकर कृषि विज्ञान और सुरक्षा के क्षेत्र में गहरे सहयोग हैं। इजरायल के साथ भारत की दोस्ती हर साल और गहरी होती जा रही है। ऐसे में ये स्पष्ट है कि भारत ऐसे कदम से बचना चाहता है जो इस रिश्ते को नुकसान पहुंचा सके।