संजय जोशी का आरएसएस के साथ संबंध दशकों पुराना है। उन्होंने 80 के दशक में नितिन गडकरी के साथ नागपुर में संघ के माध्यम से काम करना शुरू किया। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद, उन्होंने कुछ समय तक पढ़ाने का काम भी किया। लेकिन जल्द ही वह संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। उनके संघ और भाजपा में मजबूत संगठनात्मक कौशल ने उन्हें राजनीति में एक प्रमुख स्थान दिलाया।
संजय जोशी का नाम भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संगठनात्मक ढांचे में हमेशा से प्रमुख रहा है। उनका सफर एक सामान्य प्रचारक से लेकर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व तक का रहा है, लेकिन यह सफर केवल सफलताओं से नहीं भरा, बल्कि उनके और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच का टकराव भी इसके केंद्र में रहा है।
संघ की पसंद और जोशी का भविष्य
आज जब आरएसएस का समर्थन फिर से संजय जोशी के पक्ष में दिख रहा है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, नागपुर में संघ के शीर्ष नेतृत्व ने जोशी के नाम पर सहमति जताई है, लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह का समर्थन न मिलने के कारण उनका रास्ता कठिन हो सकता है। भाजपा में संगठनात्मक ढांचे में संघ की कितनी चलती है, यह इस निर्णय पर निर्भर करेगा कि जोशी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाता है या नहीं।
यह कहानी हम आपको ऐसे नहीं बता रहे क्योंकि भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की बात संघ पर आकर अटक गई है और संघ संजय भाई जोशी को बनाना चाहता है यह हमारे विश्वसनीय सूत्रों ने ख़बर बताई है नागपुर का संघ के एक पत्रकार के मुताबिक संघ ने 100% उनका नाम फाइनल कर दिया है।
आज जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन चर्चा में है, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का समर्थन एक बार फिर से संजय जोशी के पक्ष में दिखाई दे रहा है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, नागपुर में संघ के शीर्ष नेतृत्व ने जोशी के नाम पर सहमति जताई है। संघ में संजय जोशी का मजबूत संगठनात्मक अनुभव और लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें एक उपयुक्त उम्मीदवार माना जा रहा है। हालांकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह का समर्थन न मिलना उनके लिए बड़ा रोड़ा साबित हो सकता है, जिससे उनका रास्ता कठिन हो सकता है।
यह हमारे विश्वसनीय सूत्रों ने खबर दी है। नागपुर में संघ के एक पत्रकार के अनुसार, संघ ने 100% जोशी का नाम फाइनल कर दिया है, लेकिन इस फैसले का भाजपा के भीतर विरोध हो सकता है। खासकर मोदी और शाह की भाजपा में इस तरह का कोई भी निर्णय लेना आसान नहीं होता।
गुजरात के नरेंद्र मोदी और अमित शाह किसी भी कीमत पर संजय भाई जोशी का नाम स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने भाजपा की ओर से सुनील बंसल और विनोद तावड़े का नाम प्रस्तावित किया है। हालांकि, संघ ने इन नामों को स्वीकार नहीं किया और संजय जोशी के नाम पर अड़ गए हैं। संघ इस बार अपनी पसंद को लेकर दृढ़ है, लेकिन यह देखना बाकी है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व संघ के इस फैसले को किस तरह से देखता है।
इतने बड़े पद पर नियुक्ति को लेकर संघ का दृढ़ रुख इस बात का संकेत है कि वे संजय जोशी को भाजपा के संगठनात्मक ढांचे में अधिक महत्व देना चाहते हैं। संघ ने संजय जोशी को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की पेशकश भी की है, लेकिन जोशी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हैं। अब देखना यह है कि भाजपा, जो अब एक विशाल संगठन बन चुकी है, संघ के फैसले का कितना सम्मान करती है या खुद अपने निर्णय लेती है।
संगठनात्मक कौशल का परिचय और जोशी-मोदी की साझेदारी
वर्ष 1989-90 में, आरएसएस ने संजय जोशी को गुजरात भेजा, जहाँ उन्हें भाजपा संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई। नरेंद्र मोदी पहले से ही संगठन महामंत्री के पद पर काम कर रहे थे। दोनों ने मिलकर पार्टी को एक नई दिशा दी, जिसका परिणाम वर्ष 1995 में गुजरात में भाजपा की पहली सरकार बनने के रूप में सामने आया। उस समय के भाजपा के सबसे प्रभावशाली नेता केशुभाई पटेल और शंकरसिंह वाघेला थे, लेकिन मोदी और जोशी की जोड़ी ने केशुभाई का समर्थन किया, जिससे वाघेला नाराज हो गए और पार्टी में बगावत कर दी।
संजय जोशी का राजनीतिक करियर तब गंभीर संकट में आ गया जब वर्ष 2005 में उनकी एक फर्जी सीडी सामने आई, जिसमें उन्हें एक महिला के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दिखाया गया। इस सीडी कांड के बाद उन्हें भाजपा से निकाल दिया गया, हालांकि बाद में यह साबित हुआ कि सीडी फर्जी थी। इसके बावजूद, संजय जोशी की वापसी पार्टी में विवादास्पद रही, और मोदी समर्थक उन्हें लगातार पार्टी से दूर रखने के प्रयासों में लगे रहे।
जोशी का उत्तर प्रदेश चुनाव:
संजय जोशी को वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की जिम्मेदारी दी गई, कारण बना उनकी नाराजगी का। इस फैसले का कड़ा विरोध किया और उत्तर प्रदेश में एक दिन भी प्रचार करने नहीं गए। यह स्पष्ट संकेत था कि दोनों के बीच दरार अब निजी और राजनीतिक स्तर पर और गहरी हो चुकी थी।
संजय जोशी का संघ से संबंध और योगदान
संजय जोशी का आरएसएस के साथ संबंध दशकों पुराना है। उन्होंने 80 के दशक में नितिन गडकरी के साथ नागपुर में संघ के माध्यम से काम करना शुरू किया। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद, उन्होंने कुछ समय तक पढ़ाने का काम भी किया। लेकिन जल्द ही वह संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। उनके संघ और भाजपा में मजबूत संगठनात्मक कौशल ने उन्हें राजनीति में एक प्रमुख स्थान दिलाया।
अभी का समय और आगे का रास्ता
आज संजय जोशी को भाजपा में वापस लाने के लिए संघ के प्रयास जारी हैं, लेकिन मोदी और शाह की जोड़ी किसी भी कीमत पर उन्हें पार्टी के शीर्ष पदों पर नहीं देखना चाहती। यह देखना बाकी है कि भाजपा और संघ के बीच इस संघर्ष का क्या परिणाम होता है।