बीकानेर. 21 वीं सदी की सबसे गंभीर चुनौती जलवायु परिवर्तन है जिसे लेकर स्थानीय स्तर से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक सरकारें और संगठन चिंतित हैं. चुनौती का सामना करना है तो पर्यावरण संरक्षण बेहद जरूरी है. जिसके लिए गुहार, मनुहार सब कुछ किया जा रहा है. इस हवन कुंड में आहुति सबकी ओर से चाहिए. प्रयास का पैरामीटर मायने नहीं रखता वो एक पेड़ लगाकर भी हो सकता है और लाखों लगाकर भी. लाखों लगाने का काम तो बीकानेर के एक प्रोफेसर साहब ने किया है. प्रयास ऐसा कि यूएन ने भी सराहा. डूंगर कॉलेज के शिक्षक श्यामसुंदर ज्याणी अब तक करीब 35 लाख पौधे अभियान चलाकर लगवा चुके हैं.
और मिशन बन गया: बीकानेर स्थित डूंगर कॉलेज में समाजशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं श्यामसुंदर ज्याणी. जानते थे कि बीकानेर की रेतीले भूमि किसी चैलेंज से कम नहीं उनके लिए. उन्होंने ये चैलेंज एक्सेप्ट किया. शुरुआत अपने घर यानी शैक्षिक संस्थान से ही की. स्कूली विद्यार्थियों और शिक्षकों को जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूक किया. फिर उनकी मदद से उनके गांव, घर और परिवार तक पहुंचे. पेड़ और पर्यावरण के बारीक पहलुओं से लोगों का साक्षात्कार कराया. नतीजा ये है कि आज पश्चिमी राजस्थान की रेगिस्तानी भूमि में लाखों पेड़ इस ‘ग्रीन मैन’ की मेहनत की गवाही दे रहे हैं. इसको शिद्दत से यूएनसीसीडी ने भी महसूस किया. ये संयुक्त राष्ट्र संघ के भूमि संरक्षण से सम्बंधित सबसे बड़े संगठन के तौर पर जाना जाता है. हर दो साल के अंतराल पर भूमि संरक्षण के लिए समर्पित शख्सियत को सम्मानित करता है. इसी संगठन ने दुनिया के सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड ‘लैंड फॉर लाइफ’ से इन्हें नवाजा.
दो दशक का समर्पण है ये: ये कोई एक दो दिन में की गई कोशिशों का परिणाम नहीं है बल्कि इस ग्रीन मैन ने बीते 2 दशक धरती को हरा भरा करने में बीता दिए हैं. ज्याणी 20 साल से पश्चिमी राजस्थान की मरू भूमि को सींच रहे हैं. पेड़ों का परिवार खड़ा कर दिया है. हर घर को वृक्षारोपण का उद्देश्य समझाया है. सकारात्मक बदलाव लाने में कामयाब हुए हैं. राजकीय डूंगर कॉलेज परिसर में ही ज्याणी ने 6 हैक्टेयर भूमि पर 3000 पेड़ों का एक जंगल खड़ा कर दिया. पारिवारिक वानिकी को बढ़ावा देने की बात कहते हुए ज्याणी अपने इस वनखंड को संस्थागत वन कहते हैं.
क्या है पारिवारिक वानिकी: पारिवारिक वानिकी पेड़ को परिवार का हिस्सा बनाकर परिवार के स्तर पर पर्यावरण संवेदना का विकास करने की प्रक्रिया है. यह एक समाजशास्त्रीय अवधारणा है. ज्याणी ने साल 2006 में इसकी सोच को आकार दिया. पारिवारिक वानिकी का आधार यह मूल विचार है कि पेड़ परिवार का हरित सदस्य है और हमारा परिवार तब तक अधूरा है जब तक कोई हरित सदस्य उसका हिस्सा नहीं है. जैसे ही पेड़ परिवार में शामिल होता है तो परिवार के सदस्य खासकर बच्चे उस पेड़ के जरिए पर्यावरण को अनुभव करने लगते हैं.
जनजागृति यात्रा: एसोसिएट प्रोफेसर ज्याणी पर्यावरण दिवस से पश्चिमी राजस्थान के 100 गांवों में पर्यावरण जागृति यात्रा पर जा रहे हैं. इन गांवो को पर्यावरण चिंतक जसनाथ महाराज की जन्म स्थली डाबला तालाब से जोड़कर वहां की 300 बीघा भूमि को पर्यावरण तीर्थ के रूप में विकसित करने का लक्ष्य रखा है. उम्मीद है कि धुन के पक्के ज्याणी से पूरा कर भी लेंगे.