मोदी-शाह का विरोध कर जो पटेल सियासत में “बढ़े”, उनका “हार्दिक स्वागत” करने से क्यों नहीं हिचकी BJP? समझें सियासी गणित

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गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। हार्दिक पटेल का नाम मौजूदा समय में उन गिने चुने नेताओं में शामिल हैं जिनकी राजनीति मोदी- शाह का विरोध कर आगे बढ़ी और जनता के बीच समर्थन जुटा पाए हैं। आखिर ऐसी क्या वजह रही जो हार्दिक का स्वागत करने में भाजपा नहीं हिचकी?

गुजरात में पाटीदार वोट: पाटीदार आंदोलन के कारण 2017 विधानसभा चुनावों में भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ था। गुजरात में पाटीदार समुदाय की आबादी करीब 1.5 करोड़ है और कुल 182 विधानसभा सीटों में से 70 पर पाटीदार समुदाय का प्रभाव माना जाता है या फिर कहे तो जीत-हार तय करते हैं। गुजरात के कुल वोटरों में 14 फीसदी पाटीदार वोट है जिसमें कड़वा और लेउवा पटेल आते हैं। हार्दिक पटेल कड़वा पटेल है।

1980 से भाजपा के वोटर रहा है पटेल समुदाय: 1980 दशक में कांग्रेस गुजरात में सत्ता में थी। तब कांग्रेस से चार बार मुख्यमंत्री रहे माधव सिंह सोलंकी KHAM  थ्योरी के जरिए सत्ता तक पहुंच बना पाते थे।   KHAM का मतलब  क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी, मुस्लिम  जिसके कारण सोलंकी चार बार मुख्यमंत्री बने और इस दौरान पटेल समुदाय को कांग्रेस से दूर हटकर भाजपा के ज्यादा करीब चला गया।

2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान: 2015 में हार्दिक पटेल ने पाटीदार समुदाय को आंदोलन छेड़ा था, जिसका प्रभाव 2017 के विधानसभा चुनावों में दिखा था। इस चुनाव में हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को समर्थन दिया था और कांग्रेस ने गुजरात में 182 विधानसभा सीटों में से 77 सीटें जीतकर बीते 3 दशक में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया था। वहीं, भाजपा ने इस चुनाव में 99 सीटें जीती थीं।

भाजपा की पटेलों की लुभाने की कोशिश: भाजपा नेतृत्व को पता है कि अगर 2012 वाले विधानसभा चुनाव प्रदर्शन की दोहराना तो पटेल समुदाय के बड़े हिस्से का वोट फिर से चाहिए होगा। इस कारण से भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को बनाया है। वहीं, राजनीतिक पंडित इसे नरेश पटेल के कांग्रेस में जाने की अटकलों के बीच एक डैमेज कंट्रोल मान रहे हैं। नरेश पटेल राजकोट के एक बिजनेसमैन हैं और श्री खोडलधाम ट्रस्ट के चेयरमैन है। नरेश लेउवा पटेल है और इनका पटेलों में अच्छा प्रभाव माना जाता है।

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