जिंदगी से जंग लड़ रहे निशानेबाज लिंबाराम, तीरंदाजी में कभी भारत को चमकाया था

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उदयपुर : गरीबी और संसाधनों के अभाव के कारण बहुत से लोग अपने सपनों को न चाहते हुए भी मार देते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके हौसलों और हुनर के आगे गरीबी और अभाव जैसे शब्द बौने हो जाते हैं. कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं मशहूर तीरंदाज और पद्मश्री लिंबाराम. ये नाम तीरंदाजी की दुनिया में नया नहीं है. लिंबाराम वो शख्सियत हैं, जिन्होंने देश को दुनियाभर में खेल के मंच पर कई बार गौरवान्वित होने का मौका दिया है.

उनके खेल को सरकारों ने भी खूब सराहा, लेकिन आज की स्थिति अलग है. लिंबाराम गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. खेल की दुनिया में चमकता हुआ सितारा लिंबाराम गरीबी की बेड़ियां तोड़ते हुए न सिर्फ अपना नाम रोशन किया, बल्कि भारत के नाम में भी विश्व पटल पर चांर चांद लगाया. तीरंदाज अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री से सम्मानित लिंबाराम अब मुश्किल जिंदगी जी रहे हैं. लंबे समय से गंभीर बीमारी से जूझ रहे निंबाराम को अब सहारे की जरूरत है.

लिंबाराम गाजियाबाद के एक अस्पताल में भर्ती हैं. न्यूरोडीनरेटिव और सिजोफ्रेनिया बीमारी से जूझ रहे लिंबाराम बेनस्ट्रोक के चलते अस्पताल में लंबे समय से भर्ती हैं. एक वक्त था जब लिंबाराम का नाम सुनते ही हर कोई गर्व से उनके हुनर को देखने के लिए पहुंच जाता था. लेकिन आज के दौर में वे दिल्ली के एक अस्पताल में गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं, जहां उनकी पत्नी उनकी देखभाल कर रही हैं.

आदिवासी अंचल में गरीबी के बीच देखा बड़ा सपना : उदयपुर के आदिवासी अंचल में दो वक्त की रोटी की जद्दोजहद के बीच लिंबाराम ने मशहूर तीरंदाज बनने का सपना देखा था. सुविधाओं के अभाव में लिंबाराम अपने सपने को सच करने के लिए एक-एक कदम आगे बढ़ा रहे थे. 30 जनवरी 1972 को राजस्थान की अहारी जनजाति में जन्मे निंबाराम का जीवन शुरू से ही कठिनाई भरा रहा. तीतर बटेर, गौरैया, खरगोश,जानवरों का शिकार करते हुए वह भारतीय तीरंदाजी के शिखर पर चढ़े. उस समय खेल के लिए सरकार की ओर से कोई विशेष पैसा नहीं दिया जाता था. अच्छे कोच तक नहीं मिला करते थे.

15 साल की उम्र में बदल गई दुनिया : ये बात 1978 की है तब लिंबाराम 15 साल के रहे होंगे. उन्हें सूचना मिली कि तीरंदाज को सरकार ढूंढ रही है. ऐसे में लिंबाराम उस भर्ती में चले गए और सेलेक्ट भी हो गए. ये भर्ती स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की तरफ से की जा रही थी. एक आदिवासी लड़के को इस स्पोर्ट्स भर्ती के बारे में कुछ पता नहीं था. लेकिन उड़ती चिड़िया पर निशाने लगाने की अद्भुत कला का हुनर था. यही वजह रही कि बेंगलुरु में आयोजित जूनियर तीरंदाजी टूर्नामेंट में नेशनल चैंपियन बने.

इसके ठीक 1 साल बाद 1988 में लिंबाराम सीनियर टूर्नामेंट में भी जीते. बाद में साउथ कोरिया जाने का उन्हें मौका मिला. उन्हें समर ओलंपिक में भारत को रिप्रेजेंट करना था. 1989 में विश्व तीरंदाजी चैंपियन के क्वार्टर फाइनल में पहुंचे. इसी साल एशिया कप में भारत की टीम को गोल्ड मिला. 1990 में उन्होंने बीजिंग एशियाई खेलों में भारत को 4 स्थान तक पहुंचाया. 1991 में अर्जुन अवॉर्ड और 2012 में पद्मश्री के के रूप में उन्हें सम्मानित किया गया.

परिजनों का छलका दर्द : लिंबाराम के परिवार से जब बातचीत की तो परिजनों का दर्द छलक पड़ा. लिंबाराम के भांजे चतरलाल ने बताया कि लिंबाराम अपने अपने भाइयों में दूसरे नंबर के हैं. इनके अलावा इनका एक बड़ा भाई है और एक छोटा है. बड़े भाई अपने पैतृक गांव में खेती का काम करते हैं, जबकि छोटा भाई चौकीदारी का काम करता है. परिवार में बुजुर्ग मां भी हैं. हालांकि. इन लोगों की भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. लिंबाराम के बहाने चतरलाल भी तीरंदाजी में राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके हैं, जो वर्तमान में उदयपुर खेल गांव में नेशनल तीरंदाजी के लिए अपने साथियों के साथ तैयारी करने में जुटे हुए हैं.

25 बच्चे कर रहे हैं तैयारी : तीरंदाज लिंबाराम से प्रेरणा लेते हुए खेल गांव उदयपुर में 25 लड़के और लड़कियां तीरंदाजी की तैयारी कर रही हैं.जब इन खिलाड़ियों से लिंबाराम की वस्तु स्थिति के बारे में पूछा तो सबकी आंखें नम हो गईं. उन्होंने बताया कि जिस अद्भुत खिलाड़ी ने अपनी प्रतिभा के दम पर अनगिनत अवार्ड हासिल किए. उदयपुर खेल अधिकारी शकील हुसैन ने बताया कि लिंबाराम ने साधारण परिवेश में इतना अच्छा मुकाम हासिल किया जो आज हर खिलाड़ी के लिए सपना होता है.

उदयपुर के झाड़ोल तहसील के निवासी हैं लिंबाराम : लिंबाराम का जन्म 30 जनवरी 1972 को उदयपुर के झाड़ोल तहसील के सरदीत गांव में हुआ. उनका परिवार अहारी जनजाति से है. उन्हें बचपन से ही स्वदेशी बांस, धनुष और ईख के तीर चलाने का शौक था. 1987 में उनके एक चाचा ने खबर दी कि सरकार अच्छे तीरंदाजों को प्रशिक्षित करने के लिए पास के गांव में परीक्षण करेगी. इस परीक्षण में भारतीय खेल प्राधिकरण के चयनकर्ताओं ने 15 वर्षीय लिंबाराम को देखा और उन्हें आरएस सोढ़ी की कोचिंग में चार महीने के प्रशिक्षण शिविर स्पेशल एरिया गेम्स प्रोग्राम के लिए नई दिल्ली भेजा गया.

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