कोलकाता : पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय एक बार फिर तृणमूल कांग्रेस के हो गए हैं। बरसों तक तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल रहे मुकुल रॉय ने सितंबर 2017 में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) छोड़ दी थी, जिसके कुछ दिनों बाद नवंबर 2017 में वे भाजपा में शामिल हो गए थे।
उसके बाद से पिछले विधानसभा चुनाव तक उन्होंने बंगाल में भाजपा को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार और ममता बनर्जी की अगुवाई में तृणमूल कांग्रेस की शानदार जीत के बाद सूबे के सियासी समीकरण तेजी से बदले हैं जिसका नतीजा मुकुल रॉय की घर वापसी के तौर पर देखने को मिल रहा है।
तो नहीं हुईं उम्मीदें पूरी
-दरअसल मुकुल रॉय के तृणमूल में वापसी की कई वजहें हैं। सूत्रों का कहना है कि 2017 में ममता का साथ छोड़कर मुकुल रॉय ने जिन उम्मीदों के साथ भाजपा का दामन थामा था, वह चार साल बाद भी पूरे नहीं हुए। हो ना हो मुकुल के मन में केंद्र में अहम मंत्री पद की तमन्ना थी। यही वजह है कि वो फिर से घर वापसी कर गए हैं। पहले तो प्रदेश नेतृत्व ने उनको खास तवज्जो नहीं दी और बाद में बंगाल चुनाव से पहले उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। भाजपा ने भले ही उपाध्यक्ष का पद मुकुल रॉय को दे दिया हो, लेकिन बंगाल की सियासत के तमाम निर्णय केंद्रीय नेतृत्व ही लेता रहा। मुकुल रॉय को भाजपा में शामिल हुए चार साल हो गए थे, लेकिन पार्टी में कभी भी वो सम्मान नहीं मिल पाया।
सुवेंदु अधिकारी का कद बढ़ने से बेचैन थे मुकुल
-सियासत पर नजर रखने वालों का यह भी मानना है कि बंगाल भाजपा में सुवेंदु अधिकारी का कद लगातार बढ़ने से भी मुकुल रॉय बेचैन थे।विधानसभा चुनाव के बाद प्रतिपक्ष के नेता के चयन का मामला आया तो उनकी जगह हाल ही में पार्टी में शामिल सुवेंदु अधिकारी को इस पद पर बिठा दिया गया, जो उन्हें रास नहीं आया। क्योंकि वो सुवेंदु से ज्यादा वरिष्ठ और अनुभव वाले नेता के तौर पर बंगाल में जाने जाते हैं। यही वजह है कि चुनाव के बाद मुकुल रॉय ने खुद को अलग कर लिया। विधायक के तौर पर शपथ लेने के बाद उनको सार्वजनिक तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं देखा गया है। उससे पहले चुनाव के दौरान भाजपा के राज्य अध्यक्ष दिलीप घोष के साथ उनके अंदरूनी टकराव की खबरें भी आती रहती थीं।
विधानसभा चुनाव में भी नहीं मिली अहम जिम्मेदारी
-इतना ही नहीं विधानसभा चुनाव के दौरान भी उन्हें कोई खास अहमियत नहीं मिली और वो अपने विधानसभा क्षेत्र तक सीमित रहे। पूरे चुनाव के दौरान मुकुल रॉय अलग-थलग रहे।
तृणमूल में मिल सकती है अहम जिम्मेदारी
-विधानसभा चुनाव के बाद कई नेताओं ने फिर से तृणमूल में लौटने की मंशा जाहिर की है लेकिन तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने अभी तक ऐसे नेताओं की अपील को खास अहमियत नहीं दी हैं। ऐसे में मुकुल रॉय की घर वापसी यह बताती है कि ममता की नजर में वे अब भी भरोसेमंद हैं। यहां तक कि 2012 में ममता बनर्जी ने जब दिनेश त्रिवेदी से नाराज होकर केंद्रीय रेल मंत्री के पद से उनका इस्तीफा ले लिया, तो उनकी जगह मुकुल रॉय ही केंद्रीय रेल मंत्री बनाए गए थे। इधर पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार की योजना बनाई है। अब माना जा रहा है कि इस योजना के क्रियान्वयन में मुकुल की अहम भूमिका हो सकती है।
संगठनात्मक क्षमता के लिए जाने जाते हैं मुकुल
-बताते चलें कि मुकुल रॉय खासतौर से टीएमसी के संगठनात्मक क्षमता के लिए जाने जाते रहे हैं।जब वह टीएमसी में हुआ करते थे तो पार्टी का चेहरा भले ही ममता बनर्जी रही हैं, लेकिन चुनावी प्रबंधन का काम उनके कंधों पर हुआ करता था। बंगाल में टीएमसी के बूथ स्तर तक का प्रबंधन संभालते थे। बंगाल की सत्ता के सिंहासन पर ममता के दो बार काबिज होने के पीछे मुकुल रॉय के चुनावी प्रबंधन का ही कमाल था।