विधानसभा चुनाव से पहले छवि को फिर से स्थापित करने में जुटे नीतीश कुमार

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विधानसभा चुनाव से पहले बिहार के मुख्यमंत्री अपनी छवि को फिर से स्थापित करने में जुटे हुए हैं। चुनाव में भले ही अभी काफी समय बाकी है लेकिन वह इसका पूरा फायदा उठाना चाहते हैं।
  • नीतीश कुमार खुद को राज्य का सबसे प्रतिष्ठित नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं
  • पिछले 15 दिनों में जेडीयू प्रेसिडेंट को एनडीए के किसी भी दूसरे घटक दल से ज्यादा सुर्खियां मिली हैं
  • लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार उन गैर-बीजेपी वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, जो विपक्ष के साथ हैं

नई दिल्ली : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्र में एनडीए सरकार बनने के बाद से ही खुद को राज्य का सबसे प्रतिष्ठित नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। बीजेपी ने 303 लोकसभा सीटें जीती हैं, जिसने गठबंधन में दूसरी सहयोगी दलों के महत्व को काफी कम कर दिया है। हालांकि पिछले 15 दिनों में जेडीयू प्रेसिडेंट को एनडीए के किसी भी दूसरे घटक दल से ज्यादा सुर्खियां मिली हैं। यह बताता है कि चुनाव से पहले नीतीश अपनी छवि को एक बार फिर से स्थापित करने में जुट गए हैं।

राजनीतिक तेवर
नीतीश ने सांकेतिक प्रतिनिधित्व के खिलाफ आवाज उठाते हुए केंद्रीय कैबिनेट में शामिल होने से इनकार कर दिया था। इसके दो दिनों के अंदर उन्होंने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करते हुए 8 नए लोगों को शामिल किया और उनमें से एक भी बीजेपी का सदस्य नहीं था। शपथ ग्रहण के बाद उन्होंने कहा कि बीजेपी ने जेडीयू का एक मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया था।

नीतीश के 2017 में बीजेपी के साथ वापस हाथ मिलाने के बाद मंत्री बने पशुपति कुमार पारस अब हाजीपुर से एलजीपी सांसद हैं। एलजीपी उनकी जगह कैबिनेट में एक सीट की उम्मीद कर रही थी, लेकिन नीतीश ने मंत्रिमंडल विस्तार के समय रामविलास पासवान की पार्टी से एक भी मंत्री नहीं बनाया। पारस ने उस समय कहा था, ‘यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है कि वह अपने मंत्रिमंडल में किसे शामिल करते हैं।’ इसके साथ ही जेडीयू के वाइस-प्रेसिडेंट प्रशांत किशोर ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथ मुलाकात की और रिपोर्ट्स के मुताबिक दो साल बाद राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाने में उनकी मदद पर सहमति जताई। इस पर जेडीयू महासचिव के सी त्यागी ने बताया, ‘ममता बनर्जी के लिए प्रशांत किशोर काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनकी कंपनी काम करेगी। हमारा उस कंपनी से कोई लेना-देना नहीं है।’ वहीं, राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के एक हफ्ते के अंदर ममता के साथ प्रशांत किशोर की बैठक पर सवाल उठाने वाले अजय आलोक ने पार्टी के प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया।

समाज सुधारक
लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार उन गैर-बीजेपी वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, जो विपक्ष के साथ हैं। वह समाज सुधारक की अपनी छवि को फिर से स्थापित कर रहे हैं, जिसने उन्हें महिलाओं समेत राज्य के सभी जातीय समूहों में समर्थन दिलाया था। नीतीश 12 जून को शराबबंदी अभियान को नए स्तर पर ले गए। उन्होंने सभी एसएचओ को यह अंडरटेकिंग देने का आदेश किया कि अगर उनके इलाके में अवैध शराब पकड़ी गई तो वह अगले 10 साल तक किसी पुलिस स्टेशन में पोस्टिंग नहीं मांगेंगे। त्यागी ने कहा, ‘शराबबंदी अभियान में महिलाएं हमारे साथ हैं। उन्होंने बड़ी संख्या में नीतीश के लिए वोट किया है।’

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