अयोध्या राम मंदिर : 200 फीट गहरी होगी नींव

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नई दिल्ली । अयोध्या में राम मंदिर की भव्यता देखते ही बनेगी। भूमि पूजन के बाद सबसे पहले मूल मंदिर का ढांचा खड़ा करने पर ही फोकस होगा। इसके लिए दो सौ फुट गहराई में नींव की खुदाई की जाएगी और स्तम्भ खड़े किए जाएंगे। टीले पर स्थित रामजन्मभूमि के निर्माणाधीन मंदिर को भूकंप रोधी बनाने के लिए गहराई में नींव खोदी जाएगी। नींव भरने के बाद मंदिर का ढांचा खड़ा किया जाएगा। रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय का कहना है कि मंदिर का मॉडल तब बना था जब हमारे पास जमीन ही नहीं थी। वह कहते हैं कि हमें उम्मीद नहीं थी कि राम मंदिर निर्माण के लिए 70 एकड़ जमीन मिल जाएगी। फिलहाल, जब मिल गयी है तो उसे व्यवस्थित रूप से विकसित किया जाएगा। इसी के चलते मास्टर प्लान तैयार किया जा रहा है। इस प्लान में मंदिर की भूमि को छोड़कर शेष भूमि पर यात्री सुविधाओं का विकास दर्शनीय स्थल एवं भगवान के जीवन चरित्र का गुणगान करते हुई कहानियों के चलचित्र भी डिजिटल से संचालित होंगे। मंदिर परिसर में कथा सत्संग के लिए भी स्थान तय किया जाएगा। पुजारियों व कर्मचारियों के आवास की व्यवस्था भी परिसर में होगी। रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने तय किया है कि राम मंदिर का निर्माण होने में जो निर्धारित समय है, वह तो लगेगा ही लेकिन जो कार्य हो, वह विधिक प्रक्रिया के अन्तर्गत हो। इसके लिए ट्रस्ट ने मंदिर का नक्शा भी स्वीकृत कराने का निर्णय लिया है। बताया गया कि मास्टर प्लान का ले-आउट जल्द ही तैयार कर नक्शा स्वीकृत कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। उन्होंने बताया कि ट्रस्ट सरकारी छूट का अभिलाषी नहीं है और वह जो भी निर्धारित शुल्क होगा, अदा करेगा। अनुमान है कि मंदिर का विधिक रीति से शुल्क एक से डेढ़ करोड़ रुपये होगा। राम मंदिर मॉडल के शिल्पकार निखिल सोमपुरा का कहना है कि रामजन्मभूमि की तुलना दुनिया के दूसरे मंदिरों से नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि हर मंदिर की अपनी शैली व कलात्मकता के स्थापत्य कला भी अलग है। मंदिर की ऊंचाई भी मायने नहीं रखती क्योंकि शास्त्रीय मर्यादा के अन्तर्गंत निर्माण की बाध्यता का अपना महत्व है। वास्तुविद सोमपुरा ने बताया कि रामजन्मभूमि का मंदिर मॉडल नागर शैली में बना है। उत्तर भारत में यही शैली प्रचलित है। इस मंदिर के निर्माण में प्राचीन वैदिक परम्परा के सभी मानकों का पालन किया गया जाएगा। इस मंदिर के निर्माण के बाद यह अपने आप में अदभुत होगा और उस समय तुलनात्मक समीक्षा करने वाले करेंगे। इसके अलावा महत्वपूर्ण बात यह है कि मंदिर के शिखर की परछाई कभी जमीन पर नहीं आनी चाहिए। इसका शास्त्रीय निषेध है। यही कारण है कि प्राचीनकाल के मंदिर तो भव्य होते थे लेकिन गर्भगृह जहां भगवान विराजमान होते हैं वह अपेक्षाकृत छोटा होता है।

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