इंदौर में पहली बार ‘डॉ. भीमराव अम्बेडकर के आर्थिक विचार’ पर नेशनल ब्लॉगर्स समिट 2020 का आयोजन इंदौर के प्रेस क्लब में किया गया। ब्लाॅगर्स अलायंस मध्यप्रदेष छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष प्रकाश हिंदुस्तानी ने बताया कि समिट में देश के प्रबुद्ध लेखक-ब्लॉगर्स शामिल हुए। इस दौरान सभी ब्लाॅगर्स ने डाॅक्टर भीमराव अंबेडकर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। समिट की षुरूआत आज सुबह 11 बजे से हुई जिसका समापन 17 मार्च को किया जाएगा। इस दौरान सभी का सेनेटाइजर और मॉस्क से स्वागत किया गया।
ब्लाॅगर्स अलायंस के सेके्रटरी देवेंद्र जायसवाल ने कहा कि ये ब्लाॅगर अलायंस पर दो साल से काम कर रहे थे। वे बड़े अर्थशास्त्री भी थे, ब्रिटिश हुकूमत ने अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए सलाह भी ली थी, उनकी प्रतिभा को फैलाने के लिए यह समिट आयोजित की। वहीं ब्लाॅगर्स अलायंस मध्यप्रदेष छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष प्रकाश हिंदुस्तानी ने कहा कि पहले यह आयोजन महू में होना था, ऐन वक्त पर प्रेस क्लब में करना पड़ा। देश में दो ही राजनेता जो अर्थशास्त्री भी थे वो डॉ अंबेडकर और डॉ लोहिया थें। उन्होंने कहा कि कोरोना के दबाव, राजनीतिक उठापटक के चलते सब अस्तव्यस्त हो गया। फिर भी 80 फीसदी वक्ता आयोजन में आए है। आयोजन में पूरा प्रिकाॅशन रखा है। हमारी कोशिश ब्लॉगर के माध्यम से समाज बदलाव करना है।
आयोजन में राजेश बादल ने कहा कि डॉ अंबेडकर को संविधान निर्माता से आगे सोचते ही नहीं। वे मूलत अर्थशास्त्री ही थे, सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय उनका था। गांधी के बाद डॉ अंबेडकर को विश्व ख्याति मिली है जो आश्वस्त करती है कि उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। गांधी और डॉ का चिंतन लगभग समान ही था। गांधी से मतभेद थे लेकिन दोनों की आर्थिक सोच समान थी। दोनों कृषि के सहकारीकरण के पक्ष में थे। बाबा साहब मशीनीकरण के पक्ष में थे, गांधी भी पक्षधर थे। बाबा साहेब की रिपोर्ट पर ही भारतीय रिजर्व बैंक का गठन हुआ। इस दौरान भारतीय प्रेस आयोग सदस्य जयशंकर गुप्ता ने कहा कि इस देश में जो हालत है उसमें या तो बाबा साहब के समर्थक हैं या विपोधी। देश की राजनीति में जब वे सक्रिय हुए तब गांधी विचारधारा, वामपंथी विचारधारा, आरएसएस की विचारधारा थी। इनका तो आर्थिक दृष्टिकोण आज तक नहीं दिखा। अंबेडकर ने आर्थिक चिंतन के साथ जातिवाद पर प्रहार किया, वे दुनिया के प्रमुख अर्थशास्त्री होते।
एडिटर्स गिल्ड आॅफ इंडिया के पूर्व महासचिव प्रकाश दुबे ने बताया कि डॉ अंबेडकर ने जीवन के अंतिम दिनों में चंद्रपुर की सभा में कहा था कि जिन लोगों को ताकत मिली है वो वंचित लोगों के साथ भागीदारी नहीं करना चाहते। सुबह अटलजी, दोपहर में काशीरामजी आए थे, रात में राजीव गांधी को लेकर शरद पंवार के साथ आए थे। आर्थिक ताकत मजबूत होने पर ही बदलाव होगा। गांधी और अंबेडकर के नजरिए में फर्क है। अंबेडकर मानते थे कि कौशल नहीं बढ़ा रहे पुश्तैनी रूप से बांट रहे थे। वो गांव के स्वरूप को बदलना चाहते थे। उन्होंने कहा कि अंबेडकर ने गांव के लोगों को सुरक्षित करने पर दबाव डाला, क्योंकि वे जानते थे कि शहर आधारित अर्थव्यवस्था से गांवों की तरक्की नहीं हो सकती। अंबेडकर ने मुंबई शहर में महानगरपालिका में मजदूरों की पहली यूनियन बनाई थी। अंबेडकर ने जो उस समय सोचा। बाबा उस समय से वोट कमाने की बहुत बड़ी ताकत बने। उन्होंने झोपड़ियों को जब जब बदलने की कोशिश की।