कांग्रेस में घटते कद और कम होते रसूख से नाराज पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तोड़ा कांग्रेस पार्टी से 18 साल पुराना नाता

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कांग्रेस में घटते कद और कम होते रसूख से नाराज पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से 18 साल पुराना नाता तोड़ दिया और कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले 22 कांग्रेस विधायक भी सिंधिया के साथ है। इसे सियासी भूचाल की आहट माना जा रहा है। सिंधिया की एक साल की चुप्पी से यह अनुमान लगाया जा रहा था कि आने वाले दिनों में सिंधिया की चुप्पी कोई बड़ा गुल खिलाएंगी। आज वह दिन आ गया कि मध्यप्रदेष में कांग्रेस को सरकार हाथ से फिसलती नजर आ रही है। कष्मीर से धारा 370 वाले मुद्दे पर भी सिंधिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की थी। बावजुद इसके मध्यप्रदेष की कांग्रेस सरकार उनका इषारा और नाराजगी नहीं समझी। राजनीतिक गलियारों में चर्चा तो यह भी है कि अभी और विधायक कमलनाथ का साथ छोड़ सकते हैं। अब कांग्रेस ट्वीट के जरिये ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके अहसान गिना रही है। आइए बताते है आपको हमारी इस खास रिपोर्ट में।
ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के बड़े चेहरों में से एक गिने जाते हैं। लेकिन होली वाले दिन उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देकर सभी को चैंका दिया। उनके यूं पार्टी छोड़ने की बड़ी वजह मध्यप्रदेश सरकार की नीतियों से नाराजगी है। सिंधिया ने कहा कि उनकी पार्टी में उपेक्षा हुई है। लेकिन अब कांग्रेस पार्टी ने पिछले 18 साल की राजनीतिक सफर में उनके पदों के बारे में ट्वीट किया है। मध्यप्रदेश कांग्रेस ने सिंधिया पर निशाना साधते हुए उनके पदों के बारे में बखान किया है। ट्वीट के जरिये कांग्रेस ने बताया कि 17 साल सांसद, 2 बार केंद्रीय मंत्री, मुख्य सचेतक, राष्ट्रीय महासचिव, यूपी का प्रभारी, कार्यसमिति सदस्य, चुनाव अभियान प्रमुख बनाया। इसके साथ ही 50 टिकट और 9 मंत्री दिए। कांग्रेस का कहना है कि इसके बावजूद वे मोदी और शाह की शरण में गए।
ज्योतिरादित्य ने पार्टी छोड़ने के लिए खास दिन चुना। उन्होंने अपने पिता माधवराव सिंधिया की 75 वी जयंती के दिन ही कांग्रेस से अपना रिष्ता तोड़ा। हालांकि उनका इस दिन को चुनना कोई संयोग नहीं है। इस कदम के पीछे एक ऐतिहासिक महत्व है और इसके लिए ग्वालियर के राजवंश और गांधी नेहरू वंश के इतिहास को समझना आवश्यक है। ज्योतिरादित्य की दादी विजयाराजे सिंधिया ने 1967 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था और वह जनसंघ में शामिल हो गई थी। वह गुना लोकसभा सीट से जनसंघ के टिकट पर चुनाव जीती थी। वह भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थी। मौजूदा सियासी हलचल के बीच आज एक बार फिर से इतिहास ने खुद को दोहरा दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपने पिता और दादी की तरह कांग्रेस से अलग होने का ऐलान कर दिया।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के लिए ज्योतिरादित्य ने जी-तोड़ मेहनत की। यहां तक कि उन्होंने मुख्यमंत्री कमलनाथ से अधिक जनसभाएं कीं। इसमें कोई शक नहीं है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जीत में सिंधिया की एक बड़ी भूमिका रही, लेकिन कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश की पार्टी राजनीति में उनका दबदबा और रसूख कमजोर हुआ। कमलनाथ के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद सिंधिया चाहते थे कम से कम प्रदेश अध्यक्ष की कमान उन्हें सौंपी जाए, लेकिन उन्हें यह पद भी नहीं मिला। विगत महीनों में ऐसे कई अवसर आए जब सिंधिया ने यह महसूस किया कि प्रदेश की राजनीति में उन्हें कमजोर किया जा रहा है और जब वह इस बारे में आला कमान से मिले तो उनकी चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया गया। विधानसभा चुनावों के समय सिंधिया का नाम मुख्यमंत्री पद की रेस में था। सिंधिया भी चाहते थे कि कांग्रेस आलाकमान उन्हें सीएम बनाए लेकिन कमलनाथ बाजी मार ले गए। कहा जाता है कि कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने में दिग्विजय सिंह की भी अहम भूमिका रही। दिग्विजिय सिंह नहीं चाहते थे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री बनें। सिंधिया और राघोगढ़ रियासत के बीच तनातनी का पुराना इतिहास रहा है। आजादी से पहले दोनों रियासतों के बीच तलवारें खिंच चुकी हैं। पार्टी के लिए काम करते हुए भी दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और सिंधिया एक-दूसरे को सियासी पटकनी देने में पीछे नहीं रहे हैं। जब भी किसी को मौका मिलता वह अपना हिसाब-किताब चुकाता रहा है लेकिन स्थितियां कभी पार्टी छोड़ने तक की स्थिति तक नहीं पहुंची थीं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया और 22 विधायकों के साथ-साथ बिसाहूलाल ने भी कांग्रेस छोडकर बीजेपी का दामन थाम लिया। इसका असर ये हुआ कि कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई। एक तरफ सिंधिया के समर्थकों ने उनके इस फैसले का समर्थन किया तो वहीं कांग्रेस के कई नेता उनसे खफा हो गए। अब मध्य प्रदेश कांग्रेस पार्टी ने एक इमोशनल कविता ट्वीट की है जिसमें लिखा है कि
सम्मान-सौहार्द का, ये मंजर न मिलेगा
घर छोड़ कर मत जाओ, कहीं घर न मिलेगा
याद बहुत आएंगे, रिश्तों के ये लम्बे बरस
साया जब वहां कोई, सर पर न मिलेगा
नफरत के झुंड में, आग तो मिलेगी बहुत
पर यहां जैसा कहीं, प्यार का दर न मिलेगा
घर छोड़कर मत जाओ, कहीं घर न मिलेगा
यहां यह जानना जरूरी है कि विधायकों के इस्तीफ से कमलनाथ सरकार अपने आप नहीं गिरेगी। कमलनाथ खुद इस्तीफा दें या फ्लोर टेस्ट होने की स्थिति में वे बहुमत साबित न कर पाए, तभी सरकार गिरेगी। आईए आपको बताते है उन सियासी समीकरणों के बारे में।
पहला समीकरण – अगर विधायकों के इस्तीफें मंजूर हो जाए।
मध्यप्रदेष के दो विधायकों के निधन के बाद कुल सीटे है 228
इस्तीफा देने वाले कांग्रेस विधायक – 22
ये इस्तीफे स्पीकर ने मंजूर किए तो सदन में सीटें होगी 228-22 यानि 206 सीटें
इस स्थिति में बहुमत के लिए जरूरी है 104
भाजपा 107 सीट बहुमत से 3 ज्यादा
कांग्रेस 99 यानि बहुमत से 5 कम
इस स्थिति में भाजपा फायदे में रहेगी। उसके पास बहुमत के लिए जरूरी 104 से 3 ज्यादा यानी 107 का आंकड़ा रहेगा। वह सरकार बनाने का दावा पेष कर सकती है। कांग्रेस के 92 विधायक है।
दूसरा समीकरण अगर निर्दलीय विधायकों ने पाला बदला और विधायक के इस्तीफे के बाद उपचुनाव हुए तो।

  • भाजपा के पास 107 विधायक है। 4 निर्दलीय उसके समर्थन आए तो भाजपा $ की संख्या 11 हो जाती है।
  • कांग्रेस विधायकों की छोड़ी 22 सीटों और 2 खाली सीटों को मिलाकर 24 सीटों पर उपचुनाव होने पर भाजपा को बहुमत के लिए 5 और सीटों की जरूरत होगी।
  • अगर निर्दलीय ने भाजपा का साथ नहीं दिया तो उपचुनाव में पार्टी की नौ सीटें जीतनी होगी।
  • वहीं कांग्रेस को निर्दलीयों के साथ रहने पर उपचुनाव में 17 और निर्दलियों के पाला बदलने पर 21 सीटें जीतनी होगी।
    तीसरा समीकरण – बसपा के दो और सपा के एक विधायक भी भाजपा के साथ आ जाएं तो
  • भाजपा के पास 107 विधायक है। 4 निर्दलीय, 2 बसपा और 1 सपा का विधायक भी साथ आ जाएं तो भाजपा $ की संख्या 114 हो जाती है।
  • उपचुनाव होने पर भाजपा को बहुमत के लिए सिर्फ दो और सीटों की जरूरत होगी।
  • वहीं कांग्रेस को निर्दलीय विधायकों के साथ मिलने पर 20 सीटों की जरूरत होगी। निर्दलीय विधायक अलग हो गए तो कांग्रेस को सभी 24 सीटें जीतनी होगी।
    चैथा समीकरण – अगर सभी विधायकों को स्पीकर अयोग्य करार दे दें तो
    इस स्थिति में सिर्फ अयोग्य करार दिए गए विधायक उपचुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
    पांचवा समीकरण -अगर कांग्रेस के सभी विधायकों ने इस्तीफे दे दिए तो
    इस स्थिति में राज्यपाल तय करेंगे कि मध्यावधि चुनाव कराने है या उपचुनाव। उपचुनाव होने की स्थिति में भाजपा फायदे में रहेगी और राज्यपाल उसे सरकार बनाने का मौका देंगे।
    स्पीकर इन विधायकों को बुलाकर पूछेंगे कि क्या ये इस्तीफे उन्होंने अपनी मर्जी से दिए है। अगर ऐसा है तो इस्तीफा स्वीकार करने के अलावा स्पीकर के पास कोई विकल्प नहीं रहेगा। हालांकि कर्नाटक में विधानसभा अध्यक्ष ने विधायकों को करार दे दिया था और उन्हें सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा था। बहरहाल मध्यप्रदेष में चल रहे सियासी हंगामे के बीच कांग्रेसियों को अब किन चुनौतियों से निपटना पड़ेगा जानने के लिए देखते रहिए न्यूज 29 इंडिया के साथ एक देष सारे प्रदेष।

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