कहानी ‘सूर्य तिलक’ की, इन मंदिरों में भी किरणें करती हैं देवी-देवताओं का अभिषेक?

राम नवमी के दिन राम लला का सूर्य तिलक किया जाएगा। 17 अप्रैल को दोपहर 12:00 बजे राम लला का सूर्य अभिषेक किया जाएगा। सूर्य तिलक मैकेनिज्म का उपयोग पहले से ही कुछ जैन मंदिरों और कोणार्क के सूर्य मंदिर में किया जा रहा है।

इस वर्ष राम नवमी का पर्व खास होने जा रहा है। अयोध्या में भव्य मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद यह पहली राम नवमी है। राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने राम नवमी की विशेष तैयारियां की हैं। इसके तहत राम नवमी के दिन रामलला का सूर्य तिलक किया जाएगा। इसके लिए 17 अप्रैल दोपहर 12:00 बजे का समय तय किया गया है। इसी समय राम लला का सूर्य अभिषेक किया जाएगा।

आइये जानते हैं आखिर राम लला का सूर्य तिलक किस तरह से किया जाएगा? और किन मंदिरों में सूर्य तिलक होता है?

राम लला का सूर्य तिलक किस तरह से किया जाएगा?
दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें राम लला के मस्तक पर पड़ेंगी। निरंतर चार मिनट तक किरणें राम लला के मुख मंडल को प्रकाशमान करेंगी। राममंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि श्रीराम लला का सूर्य तिलक करने की तैयारी संपूर्ण परिश्रम से हो रही है। संभव है कि राम नवमी पर वैज्ञानिकों का प्रयास फलीभूत हो जाए। तकरीबन 100 एलईडी स्क्रीन के जरिए इसका सीधा प्रसारण किया जाएगा।

और किन मंदिरों में सूर्य तिलक होता है?
सूर्य तिलक मैकेनिज्म का उपयोग पहले से ही कुछ जैन मंदिरों और सूर्य मंदिरों में किया जा रहा है। हालांकि, उनमें अलग तरह की इंजीनियरिंग का प्रयोग किया गया है। राम मंदिर में भी मैकेनिज्म वही है, लेकिन इंजीनियरिंग बिल्कुल अलग है।

गुजरात का जैन मंदिर
सूर्य तिलक गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में स्थित कोबा जैन तीर्थ में भी होता है। कोबा प्राचीन जैन ग्रंथों पर एक विशाल संग्रह रखने के लिए जाना जाता है। इसे गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स का उत्कृष्टता प्रमाण पत्र भी मिल चुका है। अहमदाबाद में यह मंदिर इस तरह बनाया गया है, जहां जैन धर्म और विज्ञान का संगम होता है। यहां हर साल 22 मई को लाखों जैनियों की उपस्थिति में सूर्य अपनी किरणें श्री महावीर स्वामी भगवान के मस्तक पर डालता है। यह अनोखी घटना करीब तीन मिनट तक होती है।

कोबा जैन आराधना केंद्र के ट्रस्टी बताते हैं, ‘1987 से हर साल सूर्य तिलक 22 मई को दोपहर 2.07 बजे होता है। आज तक इस समय बादलों को सूर्य की किरणों में बाधा डालते नहीं देखा गया है। ट्रस्टी का यह भी कहना है कि कोई जादू नहीं है, बल्कि गणित, खगोल विज्ञान और मूर्तिकला के पारंपरिक ज्ञान के सही उपयोग के साथ मंदिर के कुशलतापूर्वक निर्माण के कारण ऐसा सूर्य तिलक संभव हुआ है।’

महालक्ष्मी मंदिर का प्रसिद्ध किरणोत्सव
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी मंदिर किरणोत्सव के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण सातवीं सदी चालुक्य वंश के शासक कर्णदेव ने करवाया था। मंदिर में दुर्लभ किरणोस्तव की घटना तब घटती है, जब सूर्य की किरणें सीधे देवी की मूर्ति पर पड़ती हैं। ऐसा साल में दो बार होता है। 31 जनवरी और 9 नवंबर को सूर्य की किरणें माता के चरणों पर पड़ती हैं। 1 फरवरी और 10 नवंबर को सूर्य की किरणें रश्मि मूर्ति के मध्य भाग पर गिरती है। 2 फरवरी और 11 नवंबर को सूर्य की किरणें पूरी मूर्ति को अपनी रोशनी से नहला देती हैं। इस अद्भुत घटना को एलईडी स्क्रीन के जरिए लाइव स्ट्रीम किया जाता है। सूर्य की किरणों का उत्सव महालक्ष्मी मंदिर में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

दतिया का बालाजी सूर्य मंदिर
मध्य प्रदेश के दतिया में स्थित उनाव बालाजी सूर्य मंदिर में सूर्य किरण से जुड़ी घटना होती है। दतिया से 17 किमी दूर स्थित यह एक बहुत पुराना मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य मंदिर प्री-हिस्टोरिक समय का है। पहाड़ियों में स्थित इस सूर्य मंदिर पर सूर्योदय की पहली किरण सीधे मंदिरके गर्भागृह में स्थित मूर्ति पर पड़ती है।

मोढेरा, गुजरात में सूर्य मंदिर
मेहसाणा से लगभग 25 किमी दूर मोढेरा गांव में सूर्य मंदिर है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार, मंदिर का निर्माण 1026-27 ईस्वी में चौलुक्य वंश के भीम प्रथम के शासनकाल के दौरान किया गया था। मंदिर को इस तरह से बनाया गया था कि 21 मार्च और 21 सितंबर को सूर्य की किरणें सीधे मंदिर में प्रवेश करेंगी और सूर्य की मूर्ति पर पड़ेंगी। यह मंदिर आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित एक संरक्षित स्मारक है।

कोणार्क में सूर्य मंदिर
ओडिशा में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। कोणार्क में सूर्य देव को समर्पित एक विशाल मंदिर है। गंगा राजवंश के महान शासक राजा नरसिम्हदेव प्रथम ने 13वीं शताब्दी के मध्य में इस मंदिर का निर्माण कराया था।

यह मंदिर पूर्वी भारत का एक वास्तुकला चमत्कार और भारत की विरासत का प्रतीक माना जाता है। इसकी वास्तुकला इस प्रकार है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर के मुख्य द्वार पर पड़ती है। फिर सूर्य का प्रकाश इसके विभिन्न द्वारों के जरिए मंदिर में प्रवेश कर गर्भगृह को प्रकाशमान करता है।

राजस्थान का रणकपुर मंदिर
पाली जिले के उदयपुर शहर से लगभग 90 किलोमीटर दूर स्थित राजस्थान का रणकपुर मंदिर मघई नदी के तट पर स्थित है। अरावली पहाड़ियों के जंगलों में छिपा हुआ रणकपुर 15वीं शताब्दी के जैन मंदिर के रूप में एक भव्य स्थान है। रणकपुर मंदिर जैनियों के लिए सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पूजा स्थल भी है। सूर्य का प्रकाश मंदिर में प्रवेश कर मंदिर के अंदर के हिस्से को रोशन करता है। मंदिर की वास्तुकला इस तरह से है कि दिन के समय सूर्य की किरणें सूर्य भगवान की मूर्ति पर पड़ती हैं।

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