
राजगढ़। मध्य प्रदेश के डीजीपी कैलाश मकवाना ने पुलिस मुख्यालय में जनसुनवाई की थी। इस दौरान उन्होंने राजगढ़ एसपी को फोन पर निर्देश दिये। जिसके परिणाम स्वरूप राजगढ़ पुलिस ने 30 घंटे में ही सुनीता को सुरक्षित उनके घर वालों को सौंपा।दरअसल, सुनीता (नाम बदला हुआ) अचानक घर से लापता हो गई। जिससे उसके माता-पिता के दिलों में घबराहट और डर का माहौल था। वे अपनी बेटी की खोज में हर संभव प्रयास कर चुके थे, लेकिन फिर भी कोई सफलता हाथ नहीं लगी। इसके बाद उन्होंने राज्य स्तर पर डीजीपी द्वारा शुरू किए गए जनसुनवाई में अपनी शिकायत पुलिस महानिदेशक के समक्ष रखी। डीजीपी मकवाना ने आवेदक की उपस्थिति में ही एसपी राजगढ़ से चर्चा कर सुनीता को खोजने के निर्देश दिये।
डीजीपी के निर्देश के बाद पुलिस ने इसे एक प्राथमिकता के रूप में लिया। पुलिस अधिकारियों की एक समर्पित टीम ने दो राज्यों में फैले इस मामले की जांच शुरू की। यह एक जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्य था, क्योंकि आरोपित, देव करन (नाम परिवर्तित) को पकड़ने के लिए पुलिस को 2400 किलोमीटर से अधिक उसका पीछा कर उसको भनक लगे बिना अपहर्ता को सकुशल लाना था।
पुलिस ने दिन-रात काम किया, डेटा का विश्लेषण किया और संदिग्धों से पूछताछ की। पुलिस के तकनीकी विशेषज्ञों और जमीनी टीमों ने मिलकर इस मामले की तेजी से जांच की। केवल 30 घंटे के भीतर पुलिस ने सुनीता को सुरक्षित ढूंढ लिया और उसे उसके माता-पिता से मिलवाया। सुनीता के माता-पिता का आभार और राहत देखने योग्य था, और उनकी आंखों में आंसू थे, लेकिन ये आंसू खुशी और राहत के थे। आरोपित देवकरन को गिरफ्तार कर लिया गया और न्याय की प्रक्रिया शुरू हुई।
राजगढ़ पुलिस की 30 घंटे में की गई त्वरित कार्रवाई इस बात का उदाहरण है कि तकनीकी कौशल, टीमवर्क और मानवीय संवेदनाओं का समावेश पुलिस के कामकाज में कितना महत्वपूर्ण है। सुनीता के माता-पिता की राहत और खुशी ने यह संदेश दिया कि पुलिस और जनता के बीच समन्वय होने पर, न्याय और सुरक्षा की भावना को और अधिक मजबूती मिलती है।