देपालपुर(इंदौर)। मध्यप्रदेश के इंदौर से 60 किलोमीटर दूर गौतमपुरा नगर अपनी हिंगोट की सदियों पुरानी परंपरा के लिए पूरे विश्व मे जाना जाता है, जो की दीपावली के एक दिन बाद धोक पड़वा की शाम को मनाई जाती है। इसमें हींगोरिया नामक फल जिसे योद्धा सुदूर जंगलों से लाकर उसको तैयारी के साथ सफाई कर उसके खोल को बारूद भरकर रॉकेट जैसा तैयार करते है।हिंगोट युद्ध में तुर्रा ओर कलंगी दो दल होते है, जिनके योद्धा खुद अपने-अपने हाथों से अपने अपने हिंगोट तैयार करते है। युद्ध के दिन तुर्रा ओर कलंगी दल के रूप में आमने सामने लड़ाई लड़ते है। इसमें कई लोगों को चोट भी आती है, लेकिन परंपरा के नाम पर इस युध्द में लड़ने वाले योद्धा कोई किसी का दुश्मन नहीं रहता। इसके बाद सभी लोग एक दूसरे के गले मिल दुश्मनी भूल जाते है।
क्या है मान्यता
यह परंपरा कई सालों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। जिसमें तुर्रा और कलंगी दोनों दल आमने सामने हिंगोट फेंककर एक दूसरे पर वार करते है।
ऐसे होता है हिंगोट तैयार
यह योद्धा जैसे ही दशहरा होता है वैसे ही जंगलों में जाकर हिंगोरिया के फल को तोड़कर लेकर आते हैं। उसके बाद उसे छीलकर फल के अंदर से गुदे को निकाला जाता है। जिसके अंदर बारूद भरकर पीली मिट्टी से डाट लगाकर एक बॉस की छोटे आकार की पतली लकड़ी लगाकर उसे राकेट की तरह तैयार करते हैं और अग्निबाणों की तरह एक दूसरे पर हिंगोट से वार करते हैं शाम होते होते युद्ध का मैदान सरसराते अग्निबाणो हिंगोट की रोशनी से सराबोर हो जाता है। हिंगोट युद्ध का इन योद्धाओं को पूरे साल बेसब्री से इंतजार रहता है और दशहरे के बाद से ही हिंगोट बनाने की यह प्रक्रिया यह योद्धा शुरू कर देते हैं।
हिंगोट पर भी पड़ी महंगाई की मार
योद्धाओं की माने तो जैसे-जैसे साल बीतते जा रहे हैं, वैसे-वैसे अब हिंगोट के दामों में भी वृद्धि हो रही है। क्योंकि अब सारा सामान महंगा हो गया है। पहले हिंगोट 2 से 5 रुपए तक तैयार हो जाता था, जिसके बाद कुछ सालों पहले 7 से 8 रुपए में यह हिंगोट बंद कर तैयार होता था, लेकिन अब हिंगोट बनाने में उपयोग आने वाली बारूद और अन्य सामग्रियों के दाम बढ़ने से अब यह हिंगोट 10 से 12 रुपए तक बनकर तैयार हो रहा है। योद्धाओं की माने तो हिंगोट पर भी महंगाई की मार तो पड़ी है।
जैसे-जैसे साल बीते जा रहे हैं वैसे-वैसे हिंगोट युद्ध की व्यवस्थाएं भी दुरुस्त होती जा रही है। युद्ध के दौरान कोई भी दर्शक घायल न हो इसके लिए प्रशासन द्वारा युद्ध मैदान के चारों ओर बड़ी-बड़ी जालियां लगाई गई है। गौतमपुरा में रहने वाले निवासियों की माने तो यह केवल हिंगोट युद्ध नहीं बल्कि एक परंपरा और गौतमपुरा की पहचान है। जिससे पूरे विश्व में गौतमपुरा को पहचाना जाता है। वहीं साल में एक दिन हिंगोट युद्ध वाले दिन हर घर में मेहमान भी होते हैं, जो इस बहाने सबक मिलना जुलना भी होता है, जिसे पूरा नगर धरोहर के रूप में मानता है।