शास्त्रों के अनुसार, पुत्र ही पिता का श्राद्ध-कर्म करता है। ऐसे में जो लोग निस्संतान थे, उन्हें तृप्ति कैसे मिलेगी? शास्त्रों ने उनके लिए भी कुछ विधान बताए हैं।पुत्र कर्तव्यों को पूर्ण कर पिता का अन्वर्थ ‘पु’ नामक नरक से ‘प्र’ त्राण करने वाला पुत्र बनूंगा। माता-पिता का बाद्ध पुत्र का कर्तव्य पूर्ण करूंगा। शाम्त्रों के अनुसार, पितृ ऋण से मुक्ति पाने का उपाय है ब्राद्ध-कर्म। श्राद्ध-कर्म करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। बाद्ध माता-पिता, गुरुजनों की आज्ञा का पालन करने बाला उनकी मृत्यु उपरांत औध्वं दैहिक संस्कार, पिंड पसल, ब्राह्मण भोज आदि कार्य करने तथा गया जी तीर्थ जाकर पिंडदान करने से पुत्रता सिद्ध होती है। मगर सवाल यह है कि जो लोग निस्संतान हैं, उनको कैसे तृप्ति मिलेगी? तो इनके लिए भी शास्त्रों में कुछ विधान दिए गए हैं।
निसंतान स्त्री-पुरुष का श्राद्ध
जहां तक निस्संतान के श्राद्ध का संबंध है, तो सारे भाइयों में से किसी का पुत्र उस निस्संतान स्त्री-पुरुष का श्राद्ध कर सकता है। इसी प्रकार यदि भाइयों में केवल एक भाई विवाहित हो और उसके कोई संतान न हो, ती उसकी स्त्री या पत्नी का श्राद्ध दूसरे अविवाहित भाई यानी देवर कर सकता है। किंतु भाई-भाभी के बच्चे, स्त्री के भाई मुक्ति श्राद्ध नहीं कर सकते।
कुछ बातों का विशेष ध्यान
■ सूर्य उदय के साथ स्नान आदि कर शुद्ध धुले वस्त्र पहनकर एक लोटा जल पीपल से प्रसन्न होते हैं। इसलिए श्राद्ध जिसका भी कर रहे हैं, ध्यान रखें कि उसको भोजन में क्या-क्या पसंद है। उसकी पसंद का भोजन बनाना शुभ रहता है। ब्रह्म भीज से पहले गाय, कुत्ते, पक्षी आदि के लिए बनाए गए भोजन में से संकल्प कर उन्हें खिलाएं। फिर ब्राहमण भोज कराएं। गाय, कुत्ते, पक्षी या ब्राह्मण के भोजन का संकल्प दक्षिण मुख कर करना चाहिए, क्योंकि पितरों का निवास दक्षिण दिशा में माना गया है।
■ ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीहरि के पसीने से तिल और रोम से कुश की उत्पत्ति हुई है। इसलिए तिल और कुश का उपयोग तर्पण में नित्य करना चाहिए। सफेद चंदन और सफेद पुष्प का प्रयोग करें।
■ तर्पण करते समय अंगूठे से ही पिंड पर जलांजलि समर्पित करें। ऐसी मान्यता है कि अंगूठे से दी गई जलांजलि पितरों तक पहुंचती है।
■ बच्चों और सन्यासियों के लिए पिंडदान नहीं किया जाता, अर्थात बाद्ध उन्हीं का होता है, जिनको मैं और मेरे की आसक्ति होती है।
■ श्राद्ध संपन्न होने पर कौवे, गाय, कुत्ते, चींटी और भिखारी को भी यथा नियम भोजन वितरित करना चाहिए। पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर, परिवार व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है।