श्राद्ध हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जो मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है। इस अनुष्ठान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है पिंडदान. पिंडदान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मृतक के लिए पिंड बनाया जाता है और इसे जल में प्रवाहित किया जाता है।
पिंडदान के लिए यदि कोई पंडित उपलब्ध नहीं हो पा रहा है तो ऐसे में शास्त्रों ने इसका भी मार्ग बताया है, जिससे आप श्राद्ध-कर्म संपन्न कर सकते हैं।
वैसे तो पंडित द्वारा ही पिंडदान कराएं जाने का विधान है, लेकिन यदि पंडित उपलब्ध न हो तो आप क्या करेंगे? ऐसे में हमारे शास्त्रों ने स्वयं भी पिंडदान करने का अधिकार दिया है।
भगवान सूर्य को जगत का पंडित कहा गया है। पंडित का तात्पर्य है परम ब्रह्मज्ञानी और सूर्य से बड़ा जानी किसी और को नहीं माना गया है। इसलिए सूर्य को पंडित की संज्ञा दी गई है। ऐसे में भगवान सूर्य को ही पंडित मानते हुए पितरों के मोक्ष के लिए पिंडदान किया जा सकता है। इसके लिए किसी भी पावन तीर्थ स्थल पर जल धारा में खड़े होकर हाथ में जौ, तिल, चावल, दाल लेकर जल के साथ पितृ आत्माओं का नाम लेकर भगवान सूर्य को अर्पित करें। कम-से- कम ग्यारह बार प्रत्येक पितु आत्मा के लिए अंजुलि प्रदान करें। इसके अलावा जल में कच्चा दूध, चावल के लड्डू, अदरक, सूखे आंवले और कच्ची सूत के धागे बहते जल में प्रवाहित करें। दीपदान भी करें और तिलक, अक्षत, पुष्प व मिठाई भी अर्पित करें। पितरों के नाम से एक-एक नारियल भी जल में प्रवाहित करें। पिंडदान करने से पहले इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि शरीर पर सिले हुए वस्त्र धारण नहीं करें। श्राद्धकर्ता को स्नान करके पवित्र होकर धुली हुई धोती धारण करना चाहिए।
पितृपक्ष में क्या करना चाहिए
– पशु-पक्षियों को भोजन कराएं। गरीबों और ग्राहमणों को अपने सामर्थ्यानुसार दान करें।
-घर में कोई भी शुभ कार्य या नए कार्य की शुरुआत बाढ़ के दौरान नहीं करनी चाहिए।
– पितृस्तोत्र का पाठ करें, इससे भी पितर प्रसन्न होते हैं।
– धर्म ग्रंथों के अनुसार तर्पण का जल सूर्योदय से आधे प्रहर तक अमृत, एक प्रहर तक मधु डेढ़ प्रहर तक दुमद, साढ़े तीन प्रहर तक जस रूप से पितु को प्राप्त होता है।
– तिल कुशा सहित जल लेकर पितु तीर्थ यानी अंगूठे की ओर से धरती पर छोड़ने से पितरों को तृप्ति मिलती है।