भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व भी भगवान विष्णु को समर्पित है, जिन्हें ब्रह्मांड के संरक्षक के रूप में जाना जाता है। इस दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु के अनंत रूपों की पूजा-अर्चना करने का विधान है, इसलिए इसे अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। कई जगह इसे चौदस के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से जीवन की कई समस्याएं दूर हो जाती हैं और शुभ फल मिलता है। अनंत चतुर्दशी पर अनंत सूत्र (पीला धागा) बांधना शुभ माना जाता है। इस सूत्र में चौदह गांठें होती हैं। मान्यता के अनुसार, इस सूत्र को बांधने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। अनंत चतुर्दशी के दिन धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना के लिए व्रत किया जाता है।
पौराणिक कथाओं और धर्म शास्त्रों के अनुसार, पांडवों ने कौरवों के साथ खेले गए जुए के खेल में सारा धन और वैभव खो दिया था। परिणामस्वरूप उन्हें बारह वर्षों के वनवास के लिए जाना पड़ा। धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से इस कठिन समय से बाहर निकलने का उपाय पूछा। भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि वे भगवान अनंत की पूजा एवं व्रत का करें। इससे ही उनकी खोई हुई संपत्ति, वैभव और राज्य वापस मिलेंगे। इस दिन गणपति बप्पा का विसर्जन भी किया जाता है। यह दस दिनों तक मनाए जाने वाले गणेश उत्सव का अंतिम दिन भी होता है।
अनंत चतुर्दशी का महत्व
भगवान विष्णु की पूजा: इस दिन भगवान विष्णु को अनंत रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि अनंत रूप में भगवान विष्णु संपूर्ण ब्रह्मांड को अपने में समेटे हुए हैं।
मां लक्ष्मी की पूजा: इस दिन मां लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि मां लक्ष्मी धन की देवी हैं और उनकी पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
व्रत का महत्व: अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखने का विशेष महत्व है। व्रत रखने से मन को शांत किया जा सकता है और भगवान की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
अनंत सूत्र: इस दिन अनंत सूत्र बांधने का भी रिवाज है। अनंत सूत्र को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है।
पूजा विधि
अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि इस प्रकार है:
- प्रातःकाल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को साफ-सुथरा करके उस पर एक चौकी रखें।
- चौकी पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- दीपक जलाकर धूप-दीप करें।
- भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का गंगा जल से अभिषेक करें।
- फूल, चंदन, रोली आदि से श्रृंगार करें।
- अनंत सूत्र बांधें और भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को अर्ध्य दें।
- मंत्रों का जाप करें।
- अंत में आरती करें और प्रसाद चढ़ाएं।