इंदौर। शहर में भिक्षुक मुक्त अभियान के पायलट प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक पूरा करने वाली संस्था प्रवेश आज अपनी मेहनत का फल पाने के लिए नगर निगम के दफ्तर के चक्कर लगा रही है। एक ओर, जहां देशभर में इस अभियान के लिए संस्था की सराहना हो रही है, वहीं दूसरी ओर, संस्था की संचालिका रुपाली जैन का संघर्ष रिश्वतखोरी के दलदल में फंसा हुआ है। यह कहानी सिर्फ एक संस्था की नहीं, बल्कि उन 74 परिवारों की है, जिन्होंने इस अभियान में अपनी पूरी ताकत झोंक दी, और आज वे अपनी मेहनत की कमाई के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
समर्पण और सेवा
रुपाली जैन, जिन्होंने अपना अमेरिका में रहते हुए आरामदायक जीवन छोड़कर समाज सेवा का मार्ग चुना।, आज नगर निगम की बेरुखी का सामना कर रही हैं। एक समय था जब वे अमेरिका में बड़ी-बड़ी परियोजनाओं का संचालन कर रही थीं, लेकिन उनके दिल में समाज के वंचित वर्ग के लिए कुछ करने का जुनून था। यही जुनून उन्हें इंदौर खींच लाया, जहां उन्होंने आचार्य विद्यासागर जी के सामने वैराग्य जीवन का संकल्प लिया। रुपाली जैन का कहना है कि पैसा कमाना उनके लिए कभी मुश्किल नहीं था, लेकिन समाज सेवा उनके जीवन का उद्देश्य बन गया।
भिक्षुक मुक्त अभियान का सफर
रुपाली और उनकी टीम ने दिन-रात मेहनत करके इंदौर को भिक्षुक मुक्त बनाने का सपना साकार किया। चौराहों से भिक्षुओं को हटाना, उनका पुनर्वास करना, और उन्हें समाज की मुख्यधारा में वापस लाना, यह सब एक बड़ी चुनौती थी। 25 महीने तक चले इस प्रोजेक्ट में संस्था ने अपनी जान झोंक दी, लेकिन आज उसी मेहनत का भुगतान फंसा हुआ है।
रिश्वत का अंधेरा
रुपाली का आरोप है कि नगर निगम की मॉनिटरिंग समिति के अधिकारी उनके प्रयासों को सराहने की बजाय उनसे 5% रिश्वत की मांग कर रहे हैं। जब उन्होंने यह रिश्वत देने से इंकार किया, तो उनका फंड रोक दिया गया। नतीजतन, आज 74 परिवार आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं। इन परिवारों ने अपने घर चलाने के लिए कर्ज लिया, लेकिन अब वह भी चुकाना मुश्किल हो गया है।
आशा की किरण और हताशा
रुपाली ने तीन बार नगर निगम आयुक्तों से शिकायत की, लेकिन हर बार उन्हें केवल आश्वासन ही मिला। वर्तमान आयुक्त शिवम वर्मा ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए समिति के सदस्यों को फटकार लगाई, लेकिन इसके बाद भी फंड रिलीज नहीं हुआ। ऐसा लगता है कि अधिकारियों की मोटी चमड़ी पर किसी भी नैतिकता का असर नहीं होता। रुपाली जैन ने कभी हार नहीं मानी। उनके लिए यह सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि उन 74 परिवारों के जीवन का सवाल है, जिन्होंने उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। उनके लिए यह लड़ाई अब सिर्फ एक फंड की नहीं, बल्कि एक मिशन की है।
समाज के असली नायक
समाज सेवा के उनके इस संकल्प को भले ही रिश्वतखोरी का साया घेरने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन रुपाली अपने संघर्ष में अडिग हैं। यह कहानी सिर्फ एक संस्था की नहीं, बल्कि उन हजारों लोगों की है, जो ईमानदारी और निष्ठा के साथ समाज सेवा में जुटे हैं। रुपाली जैन और उनके जैसे समर्पित लोग हमारे समाज के असली नायक हैं। उनका संघर्ष यह संदेश देता है कि जब तक समाज में ऐसी सोच रखने वाले लोग हैं, तब तक किसी भी प्रकार की भ्रष्टाचार की दीवार को गिराया जा सकता है। उम्मीद है कि जल्द ही रुपाली और उनकी टीम को उनकी मेहनत का न्याय मिलेगा।