हर माह की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस दिन शिव-शक्ति की विधि-विधान से पूजा की जाती है। साथ ही सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए व्रत रखे जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत रखने से साधक को धरती पर सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। साथ ही अच्छे स्वास्थ्य का वरदान प्राप्त होता है। इसलिए त्रयोदशी तिथि पर साधक भगवान शिव और माता पार्वती की भक्ति भाव से पूजा-अर्चना करता है। आइए जानते हैं रवि प्रदोष व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त-
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 15 सितंबर को देर रात 01:42 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, यह शुभ तिथि 16 सितंबर को देर रात 12:19 मिनट समाप्त होगी। इस प्रकार रवि प्रदोष व्रत 15 सितंबर, रविवार को है। इस दिन प्रदोष काल यानि पूजा का समय शाम 06:26 मिनट से रात 08:46 मिनट तक है। इस दौरान भक्त भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा कर सकते हैं।
प्रदोष व्रत शुभ योग
ज्योतिषियों के अनुसार रवि प्रदोष व्रत पर सुकर्मा योग बन रहा है। इसके साथ ही रवि प्रदोष व्रत पर शिववास योग भी बन रहा है। इस योग में शिव-शक्ति की पूजा करने से भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है। इस दिन भगवान शिव कैलाश पर विराजमान रहेंगे। इसके बाद भगवान शिव नंदी पर सवार होंगे।
प्रदोष व्रत पंचांग सूर्योदय – सुबह 05:06 मिनट पर
सूर्यास्त – शाम 06:26 मिनट पर
ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04:33 मिनट से सुबह 05:19 मिनट तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 02:19 मिनट से दोपहर 03:09 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त – शाम 06:26 मिनट से शाम 06:49 मिनट तक
निशिता मुहूर्त – रात 11:53 मिनट से दोपहर 12:40 मिनट तक
शिव आवाहन मंत्र
ॐ मृत्युंजय परेशान जगदाभयनाशन ।
तव ध्यानेन देवेश मृत्युप्राप्नोति जीवती ।।
वन्दे ईशान देवाय नमस्तस्मै पिनाकिने ।
नमस्तस्मै भगवते कैलासाचल वासिने ।
आदिमध्यांत रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे ।।
त्र्यंबकाय नमस्तुभ्यं पंचस्याय नमोनमः ।
नमोब्रह्मेन्द्र रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे ।।
नमो दोर्दण्डचापाय मम मृत्युम् विनाशय ।।
देवं मृत्युविनाशनं भयहरं साम्राज्य मुक्ति प्रदम् ।
नमोर्धेन्दु स्वरूपाय नमो दिग्वसनाय च ।
नमो भक्तार्ति हन्त्रे च मम मृत्युं विनाशय ।।
अज्ञानान्धकनाशनं शुभकरं विध्यासु सौख्य प्रदम् ।
नाना भूतगणान्वितं दिवि पदैः देवैः सदा सेवितम् ।।
सर्व सर्वपति महेश्वर हरं मृत्युंजय भावये ।।