इंदौर:मध्य प्रदेश के सबसे ज्यादा वोटर वाले इंदौर में चुनाव आयोग को गर्मी के साथ वोटर्स की ठंडक से भी जूझना पड़ रहा है। कांग्रेस के उम्मीदवार अक्षय कांति बम के अचानक हटने के बाद मतदान का दिन एक तरफा होने जैसा लग रहा है। 40 से अधिक उम्र के लोग वोट देने के इंट्रेस्टेड नहीं लग रहे हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता।
खजुराहो में भी हुआ यही हाल
खजुराहो में जो हुआ, उसे देखते हुए वहां एकतरफा लड़ाई के कारण मतदान में 11.4% की गिरावट आई। यह अब तक की सबसे अधिक गिरावट है। चुनाव आयोग को इंदौर में संख्या बढ़ाने के लिए एक कठिन लड़ाई लड़नी होगी। इंदौर में बम और सात अन्य उम्मीदवारों के नाम वापस लेने के बाद यहां 14 उम्मीदवार मैदान में बचे हैं। यहां अब भाजपा के मौजूदा सांसद शंकर लालवानी, बसपा से एक और 12 निर्दलीय या छिटपुट राजनीतिक संगठनों के सदस्य बचे हैं। कुल मिलाकर लालवानी के सामने कोई वास्तविक चुनौती नहीं है।
क्या बोल रहे वोटर्स?
पक्षी विज्ञानी अजय गडिकर ने नोटा वोटों में वृद्धि की भविष्यवाणी करते हुए कहा कि ‘इंदौर में हमेशा भाजपा और कांग्रेस के बीच द्विध्रुवीय लड़ाई रही है। इस बार स्थिति के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। लोगों के लिए मतदान करना कठिन होगा।’
2019 में, इंदौर का मतदान 69.3% था, जिसमें 21 उम्मीदवार मैदान में थे। एक वरिष्ठ चुनाव अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर स्वीकार किया कि परिस्थितियों को देखते हुए इस बार 50% मतदान भी ‘संतोषजनक’ माना जा सकता है।
खजुराहो में भी ऐसा ही माहौल देखने को मिला था, क्योंकि सपा उम्मीदवार मीरा यादव का नामांकन जांच के दौरान खारिज कर दिया गया था। उन्होंने डॉक्युमेंट्स पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, जिससे बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को राहत मिली। कांग्रेस, जिसने इंडिया ब्लॉक डील के तहत यह सीट एसपी के लिए छोड़ दी थी, फॉरवर्ड ब्लॉक के उम्मीदवार का समर्थन कर रही है, लेकिन वोटर्स को लोकतंत्र के त्योहार से वंचित होने का अहसास था। यहां मतदान प्रतिशत 68.3% से गिरकर 56.9% हो गया।
पन्ना के निवासी अरुण दीक्षित ने कहा कि ‘वोटर्स के हर वर्ग में उदासीनता की भावना थी। मेरा वोट लगभग 100 किमी दूर मेरे पैतृक गांव में है। ईमानदारी से कहूं तो मैं वोट देने नहीं गया। मुझे लगा कि वोट देने के लिए इतनी दूर परेशानी उठाकर जाने का मेरे पास कोई कारण नहीं है। शायद इससे कोई फर्क भी नहीं पड़ेगा।’
मुख्य चुनाव आयुक्त क्या बोले?
इंदौर में, राज्य के मुख्य चुनाव आयुक्त अनुपम राजन ने कहा कि ईसीआई पहले दो चरणों में मतदान प्रतिशत में गिरावट के बाद तीसरे और चौथे चरण में मतदान प्रतिशत में सुधार के लिए एक विस्तृत योजना पर काम कर रहा है। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि सभी राज्यों में जहां मतदान हुआ है, मतदान प्रतिशत कम रहा है। हम मतदाताओं से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं और व्यक्तिगत रूप से उनसे बात करके उन्हें मतदान के लिए प्रेरित कर रहे हैं। मतदान को बढ़ावा देने के लिए बूथ स्तर पर गतिविधियां आयोजित की जाएंगी। शहरी इंदौर में, हम आरडब्ल्यूए से संपर्क कर रहे हैं।’
राजन ने स्वीकार किया कि मौसम मतदाताओं के लिए बाधा बन सकता है, लेकिन उन्होंने कहा कि हमने मतदान केंद्रों पर गर्मी से बचने के लिए इंतजाम किए हैं। हम लोगों से पहली छमाही में मतदान करने के लिए भी कह रहे हैं।’
निराश हैं वोटर्स
इंदौरवासी इस बात से ज्यादा चिंतित नजर आ रहे हैं कि लड़ाई में कोई गर्माहट नहीं बची है। एक कामकाजी पेशेवर हेमाली अभोले ने कहा, ‘जिस तरह से चीजें चल रही हैं उससे मैं बहुत निराश हूं। अब यह चुनाव जैसा नहीं लगता। अगर विपक्ष नहीं होगा तो लोकतंत्र कैसे ठीक से काम करेगा?’
पूर्व प्राचार्य डॉ. ओपी जोशी ने कहा, ‘चुनाव सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार को चुनने के लिए बनाए जाते हैं, लेकिन जब कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं होता है, तो चुनाव निरर्थक हो जाते हैं। पहली बार, ऐसे शहर में मतदान में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई जा रही है, जहां राज्य में मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है।’
मोटिवेशनल स्पीकर स्वाति जैन ने कहा, ‘अब तक मैंने जितने भी चुनावों में मतदान किया है, हमेशा दो प्रमुख पार्टियां और उनके उम्मीदवार एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे थे। इस बार वो स्थिति नहीं है इसलिए मुझे सोचना पड़ेगा कि वोट देने जाऊं या नहीं।’
यही भावना खजुराहो संसदीय क्षेत्र में भी देखने को मिली। छतरपुर के निवासी अधिवक्ता संजय शर्मा ने कहा, ‘मेरे जैसे लोग, जो मतदान करना अपना कर्तव्य समझते हैं, उन्होंने जाकर मतदान किया। यहां तक कि मेरे बुजुर्ग पिता ने भी मतदान किया, लेकिन हर तरफ उदासीनता का माहौल था क्योंकि वहां कोई मुकाबला ही नहीं था।’
खजुराहो के एक व्यापारी गोविंद गौतम ने कहा: ‘हमारे राज्य में, यह ज्यादातर भाजपा बनाम कांग्रेस है। कांग्रेस के मतदाताओं का एक वफादार वर्ग हमेशा से रहा है, लेकिन कोई पार्टी या गठबंधन का उम्मीदवार नहीं होने के कारण वे घर के अंदर ही रहे। मैंने देखा कि कई भाजपा मतदाताओं ने भी वोट देने के लिए कतार में खड़े होने का कष्ट नहीं उठाया क्योंकि उन्हें लगा कि उनका उम्मीदवार वैसे भी जीत जाएगा।’