राष्ट्रव्यापी बैंक हड़ताल से देश एवं प्रदेश के बैंकों में काम-काज ठप्प

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भोपाल । ऑल इंडिया बैंक एम्प्लाईज एसोसिएशन एवं बैंक एम्प्लाईज फेडरेशन ऑफ इंडिया के आह्वान पर देशभर के करीब 5 लाख बैंक कर्मियों ने आज “बैंकों के विलय” के विरोध में 22 अक्टूबर 2019 को “राष्ट्रव्यापी बैंक हड़ताल” में भाग लिया। हड़ताली बैंक कर्मियों की माँग है कि- “बैंकों के विलय को रोका जाए, जन-विरोधी बैंकिंग सुधारों को रोका जाए, खराब ऋणों की वसूली सुनिश्चित कर ऋण चूककर्ताओं पर कड़ी कार्यवाही की जाए, दण्डात्मक शुल्क लगाकर ग्राहकों को प्रताड़ित न किया जाए, सेवा शुल्कों में वृद्धि न की जाए, जमा राशियों पर ब्याज दर बढ़ाई जाए, नौकरी एवं नौकरियों की सुरक्षा पर हमले रोके जाएँ, सभी बैकों में समुचित भर्ती की जाए” आदि। हड़ताल के कारण देश एवं प्रदेश की राष्ट्रीयकृत बैंकों के साथ-साथ पुराने निजी क्षेत्र की बैंकों में कामकाज ठप्प रहा। 
राजधानी में भोपाल एवं आस-पास के करीब 2000 हड़ताली बैंक-कर्मी आज प्रात: 10:30 बजे ओरियेन्टल बैंक ऑफ कॉमर्स रीजनल आफिस प्रेस काम्पलेक्स एम.पी. नगर, जोन-।, भोपाल के सामने इकट्ठे हुए। उन्होंने अपनी मांगों के समर्थन में जोरदार नारेबाजी कर प्रभावी प्रदर्शन किया। तत्पश्चात एक विशाल रैली प्रारम्भ हुई। रैली में हजारों बैंक कर्मी हाथों में प्ले कार्डस, लाल रंग के झण्डे लिए हुए दो-दो की पंक्ति में जोशीले नारे लगाते हुए अनुशासित रूप से चल रहे थे। लाल झण्डों से रैली रंगीन नजर आ रही थी। रैली में युवा एवं सैकड़ों महिला बैंक कर्मियों की उपस्थिति उल्लेखनीय थी। रैली प्रेस काम्पलेक्स का चक्कर लगाते हुए वापिस ओरिएन्टल बैंक ऑफ कॉमर्स के सामने आकर सभा में परिवर्तित हो गई। सभा को बैंकवाईज संगठनों, बैंक कर्मचारी संगठनों एवं अन्य श्रमिक संगठनों के नेताओं साथी वी.के. शर्मा, नज़ीर कुरैशी, संजय कुदेशिया, डी.के. पोद्दार, जे.पी. झवर, एम.जी. शिन्दे, एम.एस. जयशंकर, आर.के. हीरा, प्रभात खरे, जे.पी. दुबे, बाबूलाल राठौर, जे.डी. मलिक, देवेन्द्र खरे, अशोक पंचोली, सी.एस. शर्मा, सौरभ पाराशर, योगेश मनूजा, किसन खैराजानी, मंगेश दवांदे, सतीश चौबे, सत्येन्द्र चौरसिया, श्याम रैनवाल के अलावा केन्द्रीय श्रमिक संगठनों के नेताओं कॉम. रूपसिंह चौहान (एटक), पूषण भट्टाचार्य (सीटू), बैंक रिटायरीज एसोसिएशन के नेता कॉम. ए.एस. तोमर आदि ने सम्बोधित किया। 
वक्ताओं ने बताया कि हाल ही में देश की वित्त मंत्री द्वारा दस सरकारी क्षेत्र के बैंकों का विलय कर चार बड़े बैंक बनाने की घोषणा की है। यानि कि 6 सरकारी क्षेत्र के बैंकों को बन्द कर उन्हें चार सरकारी क्षेत्र के बैंकों के साथ विलय कर दिया जावेगा। इसके तहत ओरियेन्टल बैंक ऑफ कॉमर्स एवं यूनाईटेड बैंक ऑफ इंडिया का पंजाब नैशनल बैंक में, कार्पोरेशन बैंक एवं आन्ध्रा बैंक का यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में, सिन्डिकेट बैंक का कैनरा बैंक में तथा इलाहाबाद बैंक का इन्डियन बैंक में विलय कर दिया जावेगा। सरकार इसे विलय कह सकती है, लेकिन सच्चाई यह है कि 6 बैंकों की नृशंस हत्या है, क्योंकि विलय के पश्चात ये 6 बैंक जिन्हें बनने में वर्ष़ों लगे हैं, बैंकिंग के परिदृश्य से लुप्त हो जावेंगे। सरकार का यह कदम जन एवं श्रम विरोधी आर्थिक और बैंकिंग सुधारों से सम्बन्धित एजेण्डा का हिस्सा है। प्रस्तावित विलय बैंकों के निजीकरण करने के प्रयासों की दिशा में बढ़ता हुआ कदम है। इसका पुरजोर विरोध करने की जरूरत है। विलय की यह सारी कवायद विशाल खाराब ऋणों को बड़ी बैलेन्स शीट की आड़ में छुपाने का एक बहाना मात्र है। यह हम सबके लिए चिंता का विषय है कि कार्पोरेट ऋण चूककर्ताओं को प्रदाय की जा रही राहतें, कटौती, छूट और राईट-ऑफ का सारा बोझ बैंक के साधारण ग्राहक के कन्धों पर दण्डात्मक शुल्क और बढ़े हुए सेवा प्रभारों के रूप में थोपा जा रहा है। 

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