इलेक्टोरल बॉन्ड पर चुनाव से पहले बैन: बीजेपी के लिए कितना बड़ा झटका, 3 प्वाइंट्स में समझिए यह

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चुनावी साल में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी चंदा को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. अब भारत में राजनीतिक पार्टियां इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा नहीं ले पाएंगी. 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दे दिया.

इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है, जिसे बैंक नोट भी कहते हैं. 2000 रुपये से अधिक का चंदा लेने के लिए इसका उपयोग किया जाता है. 2017 में भारत सरकार ने पहली बार चुनावी चंदा लेने के लिए इसे प्रयोग में लाया था.

भारत सरकार ने उस वक्त तर्क दिया था कि जो चंदे की नकद व्यवस्था है, उससे कालेधन को बढ़ावा मिलता है, इसलिए इलेक्टोरल बॉन्ड की सुविधा शुरू की गई है. हालांकि, कई दलों ने इसका विरोध किया था.

4 साल तक केस पेंडिंग, 3 दिन की सुनवाई
इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने 2019 में याचिका दाखिल की थी. एडीआर ने अपनी याचिका में इस पर बैन लगाने की मांग की थी. एडीआर का कहना था कि यह बॉन्ड चुनावी सुधार की दिशा में गलत कदम है.

सुप्रीम कोर्ट में यह मामला 4 साल तक पेंडिंग रहा. नवंबर 2023 में इस पर संवैधानिक बेंच ने सुनवाई की. इस बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे.

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने पूरे मामले में 3 दिन की सुनवाई की और 2 नवंबर 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. सुनवाई पूरी करने के 105 दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाया है।

तर्क, जिसने बॉन्ड को बैन कराया

  1. इलेक्टोरल बॉन्ड रिश्वत, इससे सत्ताधारी दल को ज्यादा चंदा मिला
    इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुनवाई के दौरान एडीआर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने इसे रिश्वत बताया. इसे साबित करने के लिए भूषण ने एडीआर के हवाले से एक रिपोर्ट भी कोर्ट में दाखिल किया. इसमें पिछले 5 सालों में राजनीतिक दलों को मिले चंदे के बारे में विस्तार से बताया गया था.

एडीआर के मुताबिक 2017 से 2022 तक इलेक्टोरल बॉन्ड से बीजेपी को 5271.97 करोड़ रुपये मिले. कांग्रेस को इस दौरान इलेक्टोरल बॉन्ड से सिर्फ 952.29 करोड़ रुपये मिले.

ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस इलेक्टोरल बॉन्ड से 767.88 करोड़ रुपये तो एनसीपी को 63.75 करोड़ रुपये चंदा मिले.

2017 से 2022 के दौरान केंद्र के साथ-साथ बीजेपी बिहार, यूपी, हरियाणा, गुजरात जैसे राज्यों की सत्ता में काबिज थी. कांग्रेस इस दौरान राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब की सत्ता में थी.

ममता की पार्टी बंगाल की सरकार में थी तो वहीं एनसीपी कुछ सालों के लिए महाराष्ट्र की सत्ता में रही. एडीआर के मुताबिक जो दल पिछले 5 साल से विपक्ष में है, उसे 1 प्रतिशत से भी कम का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिला.

एडीआर ने कहा कि चुनावी साल 2019 में बीजेपी को रिकॉर्ड 2555 करोड़ रुपये का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड से मिला. इस साल कांग्रेस को सिर्फ 317 करोड़ रुपये ही चंदा मिले।

  1. ईडी और सरकार जान सकती है, तो आम जनता क्यों नहीं?
    सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान एडीआर के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि इसको लेकर जो व्यवस्था बनाई गई है, उसके मुताबिक एसबीआई को पता होगा कि चंदा किसने दिए. एसीबीआई सरकार के अधीन है.

भूषण का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के नियम में बताया गया है कि ईडी दानदाताओं के बारे में बैंक से जानकारी ले सकता है. ईडी भी केंद्र के ही अधीन है.

ऐसे में ईडी अगर इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में जान सकती है. एसबीआई अगर जान सकती है. सरकार अगर जान सकती है, तो आम नागरिक क्यों नहीं?

  1. आम नागरिकों की आवाज दब जाएगी, लोकतंत्र का मतलब नहीं
    सुप्रीम कोर्ट मे इसके तर्क में जो तीसरा महत्वपूर्ण तर्क दिया गया, वो आम नागरिकों से जुड़ा हुआ था. सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा- जो पैसा देगा, सरकार भी उसी के लिए काम करेगी, फिर आम नागरिकों का क्या होगा? अगर यह प्रक्रिया पारदर्शी होता है, तो कॉरपोरेट सेक्टर का दबदबा कम होगा.

प्रशांत भूषण ने कोर्ट में जयंतीलाल रणछोड़दास कोटिचा वर्सेस टाटा आयरन केस का उदाहरण दिया. इस केस में जस्टिस छांगला ने टिप्पणी की थी कि राजनीतिक योगदान देना किसी अलग कानूनी इकाई के हितों की पूर्ति नहीं करता, बल्कि उसके एजेंटों के हितों की पूर्ति करता है.

एडवोकेट निजाम पाशा ने अपने दलील में कहा कि चीनी कंपनियों से इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा लिया जाता है, लेकिन उसे विनिर्माण की इजाजत नहीं दी जाती है. यह कैसा नियम है? अगर विनिर्माण पर रोक है, तो चीनी कंपनियों से चंदा पर भी रोक लगनी चाहिए.

भूषण ने इस दलील के समर्थन में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का एक पत्र भी कोर्ट में दाखिल किया, जिसमें कहा गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के आने से शेल कंपनियों का पैसा आसानी से राजनीतिक दलों को चंदा के रूप में मिल सकेगा।

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