हिमाचल सरकार के खजाने में बीबीएमबी और एनएचपीसी को अब परियोजनाओं में चल रही बसों का टैक्स भरना होगा। इस टैक्स ने निजात पाने के लिए कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में हिमाचल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट में 15 साल तक मामला लंबित रहने के बाद कंपनियों को कोई राहत नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय पर मुहर लगाते हुए हिमाचल प्रदेश यात्री एवं माल कराधान अधिनियम में किए गए संशोधन को वैधानिक ठहराया है।
कंपनियों की तरफ नरम रुख अपनाते हुए अदालत ने उन्हें पहली अप्रैल 2023 से परियोजनाओं में चल रही बसों का टैक्स भरने के आदेश दिए हैं। अदालत ने कहा कि कंपनियों ने हिमाचल प्रदेश यात्री एवं माल कराधान अधिनियम में वर्ष 1997 में किए गए संशोधन को चुनौती दी है। अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता निजी बस ऑपरेटर नहीं हैं, ये जल-विद्युत परियोजनाओं में लगी हुईं सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां हैं। परियोजनाओं में अपने कर्मचारियों को कार्य स्थलों और कर्मचारियों के बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने के लिए इन्हें बसें चलानी पड़ती हैं।
कराधान विभाग ने कंपनियों पर परियोजनाओं में चल रही बसों का टैक्स भरने के लिए हिमाचल प्रदेश यात्री और माल कराधान अधिनियम 1955 के तहत नोटिस जारी किया था। कंपनियों को वर्ष 1984 से 1991 तक टैक्स जमा करवाने के आदेश दिए गए थे। कंपनियों ने हिमाचल प्रदेश यात्री एवं माल कराधान अधिनियम 1955 के प्रावधानों को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी। हाईकोर्ट ने 27 मार्च 1997 को हिमाचल प्रदेश यात्री एवं माल कराधान अधिनियम 1955 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि हिमाचल प्रदेश यात्री एवं माल कराधान अधिनियम 1955 में कोई ऐसा प्रावधान नहीं है, जिसके तहत कंपनियों की बसों को चलाने पर टैक्स वसूला जाए।
हाईकोर्ट के निर्णय के बाद सरकार ने हिमाचल प्रदेश यात्री एवं माल कराधान अधिनियम 1955 में वर्ष 1997 में इसके बारे में जरूरी संशोधन कर दिया। संशोधन के बाद कराधान विभाग ने दोबारा से कंपनियों को टैक्स जमा करने का आदेश पारित किया। कंपनियों ने दोबारा से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी गई कि सरकार ने हाईकोर्ट के निर्णय के बावजूद भी हिमाचल प्रदेश यात्री एवं माल कराधान अधिनियम 1955 में संशोधन किया है। हाईकोर्ट ने कंपनियों की याचिकाओं को खारिज करते हुए निर्णय सुनाया था कि सरकार ने वैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए संशोधन किया है। इस निर्णय को कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कंपनियों की अपीलों को खारिज करते हुए यह निर्णय सुनाया।