छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर हुए उप-चुनाव के नतीजे शुक्रवार को आ गए। उत्तर प्रदेश में पूरी ताकत लगाने के बाद भी सत्ताधारी भाजपा को घोसी सीट पर विजय नहीं मिली। उत्तराखंड में बेहद कम अंतर से भाजपा अपनी सीट बरकरार रखने में कामयाब रही। वहीं, त्रिपुरा में भाजपा ने लेफ्ट के एक और किले में सेंध लगा दी। केरल में सहानभूति लहर पर सवार कांग्रेस ने अपनी सीट बरकार रखी। बंगाल में ममता ने भाजपा की सीट छीन ली। तो झारखंड में इंडिया और एनडीए के बीच रोचक लड़ाई में इंडिया को जीत मिली।आइये जानते हैं सभी सात सीटों पर कैसे रहे नतीजे, घोसी में सपा की जीत के क्या मायने? त्रिपुरा में लेफ्ट गढ़ कैसे ढहा? केरल से कांग्रेस को क्या मिला? बंगाल, झारखंड में क्या हुआ?
कुल मिलाकर कैसे रहे उपचुनाव के नतीजे?
जिन सात सीटों पर उप-चुनाव हुए उनमें से तीन भाजपा, एक-एक सीट सपा, कांग्रेस, माकपा और झामुमो के पास थीं। नतीजों के बाद इनमें से एक सीट भाजपा ने माकपा से छीन ली। वहीं, भाजपा की एक सीट टीएमसी ने छीन ली। इस तरह नतीजों के बाद भाजपा का कुल तीन सीटों पर कब्जा बरकार रहा। सपा, कांग्रेस और झामुमो अपनी सीटें बरकरार रखने में सफल रहे। जबकि, टीएमसी को एक सीट का फायदा हुआ तो माकपा को एक सीट का नुकसान हुआ।
सीटवार नतीजे क्या कहते हैं?
घोसी: दारा सिंह का दांव उल्टा पड़ा
उत्तर प्रदेश की घोसी सीट पर समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह जीतने में सफल रहे। सुधाकर सिंह ने भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह चौहान को हराया। दारा सिंह चौहान 2022 में इस सीट से सपा के टिकट पर जीते थे। उन्होंने विधायकी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया। इसके बाद हुए उप-चुनाव में भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाया। हालांकि, इस बार चौहान को जीत नहीं मिली।
घोसी में क्यों जीती सपा?
घोसी सीट पर भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह चौहान पर बाहरी का ठप्पा लगा रहा। दल बदलने की वजह से भी मतदाताओं में उनके प्रति नाराजगी बताई गई। साढ़े छह साल के भीतर घोसी के मतदाताओं के लिए यह चौथा चुनाव था। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि बार-बार चुनाव की वजह से भी दारा सिंह चौहान के दलबदल का मतदाताओं में गलत संदेश गया। इस सीट पर 70 हजार से अधिक दलित मतादात हैं। उप-चुनाव में बसपा ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था। इसके चलते ये मतदाता भी सपा और भाजपा में बंट गए। ज्यादातर विश्लेषक मानते हैं कि सपा उम्मीदवार सुधाकर सिंह को इनका ज्यादा साथ मिला। वहीं, ओम प्रकाश राजभर भी भाजपा के पक्ष में राजभर वोटरों को जोड़ने में उम्मीद के मुताबिक सफल नहीं हुए।
त्रिपुरा में और मजबूत हुई भाजपा
त्रिपुरा की दो सीटों बोक्सानगर और धनपुर पर उपचुनाव हुए थे। दोनों सीटें सत्ताधारी भाजपा जीतने में सफल रही। बोक्सानगर सीट माकपा विधायक समसुल हक के निधन की वजह से खाली हुई थी। यह सीट भाजपा ने माकपा से छीन ली। यहां माकपा उम्मीदवार मिजान हुसैन को कांग्रेस ने भी समर्थन दिया था। इसके बाद भी यहां से भाजपा तफज्जल हुसैन ने बहुत बड़ी जीत दर्ज की। तफज्जल को 34146 वोट मिले। जो कुल मतों का 87.97 फीसदी रहा। इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार मिजान हुसैन को महज 3909 वोट से संतोष करना पड़ा। मिजान अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। तफज्जल हुसैन को छोड़कर अन्य तीनों उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
वहीं, सिपाहीजला जिले की धनपुर भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक के विधायक पद छोड़ने के बाद खाली हुई थी। कभी वाम दलों का मजबूत गढ़ रहे धनपुर में भाजपा की बिंदू देबनाथ जीतने में कामयाब रहे। उन्होंने माकपा के कौशिक देबनाथ को 18,871 वोट से हराया। देबनाथ को कुल 30,017 वोट मिले। वहीं, माकपा उम्मीदवार को महज 11,146 से संतोष करना पड़ा।
राज्य की सत्ता में काबिज भाजपा की सीटे बढ़कर 33 हो गई हैं। जबकि, माकपा के पास अब महज 10 सीटें रह गई हैं। 60 सदस्यीय विधानसभा में टिपरा मोथा के 13, कांग्रेस के 3 और आईपीएफटी का एक सदस्य है।
केरल में कांग्रेस ने बरकार रखी सीट
केरल की पुथुपल्ली विधानसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी के बेटे चांडी ओमान जीत गए हैं। उन्होंने माकपा के जैक सी थॉमस को 37,719 वोट से हराया। चांडी को 80,144 वोट मिले। माकपा उम्मीदवार को 42,425 वोट से संतोष करना पड़ा। पुथुपल्ली सीट पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी के निधन के बाद रिक्त हुई थी। चांडी ने मई 2011 से मई 2016 तक केरल के 10वें मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। कांग्रेस नेता का गले के कैंसर के कारण 18 जुलाई 2023 को 79 वर्ष की आयु में बेंगलुरु के चिन्मय मिशन अस्पताल में निधन हो गया। भाजपा उम्मीदवार और पार्टी के कोट्टायम जिला अध्यक्ष जी लिजिनलाल को महज 6,558 वोट मिले। लिजिनलाल अपनी जमानत भी नहीं बचा सके।
उत्तराखंड: बागेश्वर में भाजपा का कब्जा बरकार
उत्तराखंड की बागेश्वर (एससी) सीट भाजपा विधायक चंदन राम दास के निधन के बाद रिक्त हुई थी। इस सीट पर भाजपा ने अपना कब्जा बरकार रखा है। यहां से चंदन राम दास की पत्नी पार्वती दास जीतने में सफल रहीं। उन्होंने कांग्रेस के बसंत कुमार को 2,405 वोट से हराया। भाजपा उम्मीदवार को कुल 33,247 वोट मिले। वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार बसंत कुमार को 30,842 वोट से संतोष करना पड़ा। 2007 से लगातार चार चुनावों में इस सीट पर चंदन दास ने जीत दर्ज की थी। अब उनकी पत्नी ने यहां कमल खिलाने में कामयाबी पाई है।
पश्चिम बंगाल में टीएमसी ने छीनी भाजपा से सीट
पश्चिम बंगाल की धुपगुड़ी विधानसभा सीट पर टीएमसी के निर्मल चंद्र रॉय ने भाजपा की तापसी रॉय को 4,313 वोट से हराया। यह सीट भाजपा विधायक बिष्णु पांडे के निधन से खाली हुई थी। 2016 में यह सीट टीएमसी ने जीती थी। दो साल बाद एक बार फिर से ममता की पार्टी ने यह सीट जीत ली। निर्मल चंद्र को कुल 96,961 मिले। वहीं, तापसी रॉय को 92,648 वोट से संतोष करना पड़ा। माकपा के ईश्वर चंद्र रॉय को महज 13,666 वोट मिले। ईश्वर चंद्र रॉय अपनी जमानत भी नहीं बचा सके।
झारखंड: रोचक मुकाबले में झामुमो ने बरकरार रखा कब्जा
झारखंड की डुमरी विधानसभा सीट सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की बेबी देवी जीतने में सफल रहीं। उन्होंने एनडीए उम्मीदवार आजसू की यशोदा देवी को हराया। डुमरी सीट झामुमो विधायक जगरनाथ महतो के निधन के बाद खाली हुई थी।
डुमरी सीट पर शुरुआती चरणों में कभी झामुमो तो कभी आजसू को बढ़त मिलती रही। लगातार 10 चरण तक पिछड़ने के बाद 15वें चरण की मतगणना में बेबी देवी ने करीब डेढ़ हजार वोट की बढ़त बनाई। इसके बाद हर चरण की मतगणना के साथ बेबी देवी अपनी बढ़त को अतंर बड़ा करती गईं। सभी 24 चरण की मतगणना होने पर उनकी यह बढ़त 17,153 वोट की हो गई थी। बेबी देवी को कुल 1,00,317 वोट मिले। वहीं, आजसू की यशोदा देवी को 83164 वोट से संतोष करना पड़ा।