इंदौर: हम कालेज में पढ़ाई कर रहे थे और अचानक बम फटने की आवाज आई। कुछ ही देर में गोलियां चलने लगीं और फिर सैकड़ों लोगों की चीख पुकार ने हमारा दिल दहला दिया। हमने कभी सोचा भी नहीं था कि अपने ही देश में हम कभी इस तरह के हालात देखेंगे। यह बातें शहर के स्टूडेंट अक्षय गुप्ता ने अमर उजाला से बातचीत में बताई। वे मणिपुर की एनआईटी यूनिवर्सिटी में एमएससी फिजिक्स में पढ़ाई कर रहे हैं और बुधवार रात शहर लौटे हैं। मणिपुर से इंदौर लौटे 23 स्टूडेंट्स में से तीन इंदौर के हैं। बाकि सब स्टूडेंट्स मप्र के अलग अलग जिलों के हैं।
अक्षय ने बताया कि हम मणिपुर में हिंसा शुरू होने के बाद कैंपस में ही कैद रहे। आखिरी के दिनों में तो हमें खाना भी ठीक से नसीब नहीं हो रहा था। सभी का कालेज के बाहर आना जाना बंद था और हिंसा थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। हमने कभी नहीं सोचा था कि हमें यहां पर यह दिन भी देखने पड़ेंगे। घर वालों के लगातार फोन आ रहे थे और वे हमारे लिए बेहद परेशान थे। हालांकि, हमें प्रशासन और सरकार का पूरा सहयोग था और हमें सुरक्षित इंदौर आने में सभी ने मदद की।
मंगेतर और बहन ने बताया कैसे निकले दिन
अक्षय को एयरपोर्ट पर लेने के लिए मंगेतर शैली गुप्ता और बहन हिमांगिनी गुप्ता आईं थी। दोनों ने बताया कि हिंसा शुरू होने के बाद ही पूरा परिवार परेशान था। हमें बस यह लग रहा था कि कैसे भी अक्षय इंदौर पहुंच जाए। हमसे उसकी लगातार बात होती थी और वह वहां के हालातों के बारे में बताता था। इससे हमारी चिंता और भी बढ़ जाती थी। गनीमत रही की वह समय पर इंदौर पहुंच गया।
15 दिन में वापस बुला रहा है कालेज
अक्षय ने बताया कि कालेज 15 दिन में वापस बुला रहा है। मैनेजमेंट का कहना है कि एक सप्ताह में हालात सामान्य हो जाएंगे और आपको वापस आना होगा। हम अभी वापस नहीं जाना चाहते क्योंकि इस हालात में हम किसी भी तरह की रिस्क नहीं लेना चाहते हैं।
मणिपुर हिंसा के बीच से लौट बेटा, एयरपोर्ट पर देखकर छलक उठी आंखें
गीतांजलि कुंडे स्पोट् र्स न्यूट्रिशियनिस्ट हैं। जैसे ही एयरपोर्ट पर उनका बेटा कर्ण पहुंचा उनकी आंखें खुशी से छलक उठीं। साथ में कर्ण को लेने पहुंचे पिता प्रशांत कुंडे ने बताया कि बेटे को देखकर हमें तसल्ली मिली। हमें सुरक्षा बलों, सरकार और प्रशासन पर पूरा भरोसा था लेकिन हालात बहुत खतरनाक थे। वह हमें वहां से बता रहा था कि कितने खतरनाक हालात के बीच वह रह रहा है इसलिए हमारी चिंता बनी हुई थी। आज उसे देखकर हमें राहत मिली है।