फूंक फूंक कर कदम रखती भाजपा, आपस में उलझ रही कांग्रेस

राजनीति

भाजपा ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव को जीवन मरण का सवाल बना लिया है| हिमाचल के बाद अगर भाजपा कर्नाटक भी कांग्रेस के सामने हार गई तो इसका मतलब यह निकलेगा कि कांग्रेस फिर से जड़ें जमाने लगी है| विधानसभा चुनावों का भले ही लोकसभा चुनाव पर असर नहीं हो| 2013 में भाजपा मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जीत गई थी, लेकिन कुछ महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में हार गई| 2018 में भाजपा को कर्नाटक विधानसभा में बहुमत नहीं मिला था, कांग्रेस और जेडीएस ने मिल कर सरकार बना ली थी, लेकिन साल भर बाद जब लोकसभा के चुनाव हुए तो भाजपा लोकसभा की 28 में से 25 सीटें जीत गईं, जबकि 2014 में 17 जीती थीं| फिर भी अगर भाजपा कर्नाटक हारती है, तो मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरेगा, जहां इसी साल के आखिर में चुनाव हैं|

कर्नाटक के चुनाव सर्वेक्षणों ने भाजपा को ज्यादा परेशान किया हुआ है, लगभग सभी चुनाव सर्वेक्षण कांग्रेस की जीत बता रहे हैं| इन सर्वेक्षणों को देखने के बाद शरद पवार ने कहा है कि भले ही कर्नाटक में कांग्रेस जीत जाए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी हार रहे हैं| वैसे अगर भाजपा येदियुरप्पा को ही मुख्यमंत्री बनाए रखती, तो उसकी जीत की संभावना ज्यादा होती|

भाजपा इस बार लिंगायतों के साथ साथ वोक्कालिगा समुदाय को भी बेलेंस करके चल रही है, उसने नौकरियों में मुसलमानों का 4 प्रतिशत आरक्षण खत्म करके दोनों समुदाओं का 2-2 प्रतिशत आरक्षण बढ़ा दिया है| जिससे कांग्रेस और जेडीएस के वोक्कालिगा वोटबैंक में सेंध लगने की संभावना बनी है| लिंगायतों की आबादी 17 प्रतिशत है और 100 सीटों पर उनका प्रभाव है| वोक्कालिगा की आबादी 15 प्रतिशत है और करीब 80 सीटों पर प्रभाव है| लिंगायत बहुमत अगर भाजपा के साथ है, तो वोक्कालिगा जेडीएस और कांग्रेस के साथ ज्यादा हैं| भाजपा सरकार का दोनों समुदाओं का आरक्षण बढ़ाने का कदम जेडीएस और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हो सकता है| कांग्रेस का पलड़ा भले ही भारी दिखाई दे रहा है, लेकिन जहां भाजपा एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरी है, वहीं कांग्रेस आपसी लड़ाई से खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है| सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार मुख्यमंत्री पद के लिए खुलेआम लड़ रहे हैं| डी.के. शिवकुमार पर भारी पड़ने के लिए सिद्धारमैया ने घोषित कर दिया है कि यह उनका आख़िरी चुनाव है| डी.के. शिवकुमार ने सिद्धारमैया को रोकने के लिए कह दिया है कि अगर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को मुख्यमंत्री बनाया जाता है, तो वह उन्हें समर्थन देंगे| हालांकि अभी तो चुनाव भी नहीं हुआ, लेकिन सर्वेक्षणों के आधार पर ही कांग्रेसियों ने अपना मंत्रीमंडल बनाना शुरू कर दिया है| जबकि अगर त्रिशंकु विधानसभा आती है, तो उसे पिछली बार की तरह एच.डी. कुमार स्वामी को मुख्यमंत्री बनाना पड़ेगा| यूपी निकाय चुनाव: सपा ने जारी की महापौर प्रत्याशियों की लिस्ट 89 साल के पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौडा इस चुनाव को अपना आख़िरी चुनाव बताकर वोक्कालिगा समुदाय को भावनात्मक रूप से प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं| देवेगौडा चाहते हैं कि जो भी सरकार बने, जेडीएस के बिना न बने| इस स्थिति को टालने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद मोर्चा संभाल लिया है| लेकिन उनके सामने मुश्किल यह है कि कांग्रेस ने मौजूदा भाजपा सरकार पर हर काम में 40 प्रतिशत कमीशन खाने का आरोप लगा कर भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाया है| इसलिए मोदी के सामने बड़ा संकट यह है कि वह भ्रष्टाचार और परिवारवाद को चुनावी मुद्दा नहीं बना सकते| उन्हें सिर्फ डबल ईंजन की सरकार और केंद्र सरकार के विकास कार्यों पर जोर देना पड़ रहा है| ऊपर से पार्टी के भीतर बगावत का खतरा भी मंडरा रहा है| इसलिए भाजपा फूंक फूंक कर कदम रख रही है|

भाजपा ने मंगलवार रात को 189 उम्मीदवारों की जो पहली सूची जारी की, उसमें पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टर की सीट पर उम्मीदवार घोषित नहीं किया| जिन विधायकों का उम्र की वजह से टिकट कट रहा था, भाजपा के दिल्ली कार्यालय से उन विधायकों को पहले ही फोन कर दिया गया था कि पार्टी उन्हें रिटायर करना चाहती है, इसलिए वे खुद रिटायरमेंट का एलान करें| जगदीश शेट्टर को भी फोन गया था, लेकिन उन्होंने टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है| इसलिए भाजपा ने उनकी सीट पर अभी उम्मीदवार का एलान रोक दिया| भाजपा उन्हें मनाने की कोशिश कर रही है, अगर वह मैदान से हटने को राजी नहीं हुए तो हो सकता है कि उनके परिवार से किसी को टिकट देकर भाजपा इस संकट से निकले| दूसरे बड़े नेता पूर्व उप मुख्यमंत्री के.एस. ईश्वरप्पा की सीट पर भी उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया, कभी वह मुख्यमंत्री की रेस में शामिल थे, लेकिन अब वह चुनाव की राजनीति से ही बाहर हो गए हैं| इसकी दो वजहें बताई जा रही हैं, एक वजह तो उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप हैं, जिस कारण साल भर पहले उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था| यह वही ईश्वरप्पा हैं, जिन्होंने एक भाषण के दौरान अज़ान शुरू होने पर कहा था कि इसे सुन कर उनका सिर दर्द होना शुरू हो जाता है| यह बंद होनी चाहिए| इस पर बड़ी कंट्रोवर्सी हुई थी, और भाजपा बेकफुट पर आ गई थी|

लेकिन उनका चुनावी राजनीति से सन्यास का कारण यह नहीं है, बल्कि कारण यह है कि वह अपने बेटे को टिकट दिलाना चाहते हैं, क्योंकि भाजपा में एक परिवार से एक को ही टिकट देने का फार्मूला बना हुआ है, इसलिए उन्होंने खुद को रिटायर कर लिया| इसके बावजूद भाजपा ने पहली सूची में उनकी सीट के उम्मीदवार का एलान नहीं किया है| भाजपा कैसे फूंक फूंक कर कदम रख रही है, इसका अंदाज इस बात से भी लगा सकते हैं कि पहली सूची में सिर्फ आठ विधायकों के टिकट काटे गए हैं, जबकि हिमाचल जैसे छोटे राज्य में दस विधायकों का टिकट कट गया था, गुजरात में तो 38 विधायकों का टिकट काट दिया गया था| लेकिन कर्नाटक में भाजपा इतना बड़ा रिस्क नहीं ले पा रही|

भाजपा हाईकमान ने येदियुरप्पा के बेटे विजेंद्र को शिकारीपुरा से टिकट दे दिया है, उनकी टिकट पर पार्टी में विवाद खड़ा हो गया था क्योंकि येदुरप्पा ने काफी पहले खुद ही अपनी विधानसभा सीट से विजेंद्र को चुनाव लड़वाने का एलान कर दिया था। इस पर पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि ने कहा था कि भाजपा की टिकटें किसी के किचन में तय नहीं होती| रवि क्योंकि अमित शाह के करीबी हैं, इसलिए माना जा रहा था कि विजेंद्र को टिकट नहीं मिलेगा, लेकिन बाद में खुद अमित शाह ने येदियुरप्पा के घर जाकर मेसेज दिया कि होगा वही जो येदुरप्पा चाहेंगे| और अब भाजपा ने उसी सीट से विजेंद्र को टिकट दिया है, जिसका एलान येदियुरप्पा ने पहले ही कर दिया था|

हालांकि बोम्मई भी लिंगायत समाज से आते हैं, लेकिन लिंगायतों में येदुरप्पा का सम्मान बोम्मई से कहीं ज्यादा है| भाजपा क्योंकि बोम्मई को ही मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर के चुनाव लड़ रही है, इस लिए लिंगायत वोटों का रुझान अभी भी भाजपा के पक्ष में ही है|

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