हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (21 नवंबर, 2022 से 25 नवंबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं

पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

पॉक्सो एक्ट | बच्चे का यौन उत्पीड़न संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है: दिल्ली हाईकोर्ट दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि बच्चे का यौन उत्पीड़न यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO Act) अधिनियम, 2012 की धारा 12 के तहत दंडनीय अपराध है। इसके साथ ही उक्त अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध भी है।चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि अपराध दंड प्रक्रिया संहिता की अनुसूची I के भाग II की दूसरी श्रेणी के दायरे में आएगा। उक्त श्रेणी में कहा गया कि यदि अपराध तीन साल और उससे अधिक लेकिन सात साल से अधिक नहीं के कारावास से दंडनीय है, तो यह संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध होगा और प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय होगा।
केस टाइटल: आर.के. तरुण बनाम भारत संघ और अन्य।

सीआरपीसी की धारा 233(3)- ‘जिस अभियोजन पक्ष के गवाह का क्रॉस एग्जामिनेशन किया गया, उसे बचाव पक्ष के गवाह के रूप में कोर्ट में पेश होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता’: केरल हाईकोर्ट केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने कहा कि जिस अभियोजन पक्ष के गवाह से मुख्य रूप से पूछताछ की गई, क्रॉस एग्जामिनेशन और रि-एग्जामिनेशन किया गया, उसे सीआरपीसी की धारा 233 (3) के तहत बचाव पक्ष के गवाह के रूप में अदालत में पेश होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।सीआरपीसी की धारा 233(3) में प्रावधान है कि अगर अभियुक्त किसी गवाह को हाजिर होने या किसी दस्तावेज या चीज को पेश करने के लिए बाध्य करने के लिए किसी प्रक्रिया को जारी करने के लिए आवेदन करता है, तो न्यायाधीश ऐसी प्रक्रिया जारी करेगा, जब तक कि वह रिकॉर्ड किए जाने वाले कारणों पर विचार नहीं करता है, कि इस तरह के आवेदन को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए कि देरी करने या न्याय के उद्देश्यों को विफल करने के उद्देश्य से किया गया है।

केस टाइटल: सुजीत ए. वी. बनाम केरल राज्य और अन्य।

केवल एफआईआर दर्ज होना या जांच लंबित होना पासपोर्ट जारी करने/नवीनीकरण से इनकार करने का आधार नहीं: जेएंडके एंडएल हाईकोर्ट जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने बुधवार को एक फैसले में कहा कि एफआईआर दर्ज होना या जांच एजेंसी की ओर से जांच लंबित होना पासपोर्ट एक्ट 1967 के तहत पासपोर्ट जारी करने या नवीनीकरण से इनकार करने का आधार नहीं है। जस्टिस संजीव कुमार ने एक याचिका पर यह फैसला दिया, जिसके तहत याचिकाकर्ता ने पासपोर्ट प्राधिकरण द्वारा उसके पासपोर्ट नवीनीकरण आवेदन के क्लोज़र को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने पासपोर्ट प्राधिकरण को उसके पक्ष में पासपोर्ट को नवीनीकृत/पुनः जारी करने का निर्देश देने के लिए परमादेश रिट के लिए प्रार्थना की थी।

केस टाइटल: राजेश गुप्ता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया।

धारा 37 एनडीपीएस एक्ट का लागू करने भर से अभियुक्त जमानत से वंचित नहीं हो सकता, यदि उचित आधार मौजूद है तो राहत दी जानी चाहिए: जेएंडके एंडएल हाईकोर्ट जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि केवल इसलिए कि जहां वर्जित पदार्थ की वाणिज्यिक मात्रा शामिल है, वहां एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 लागू होती है, इसका मतलब यह नहीं है कि अभियुक्त जमानत का हकदार नहीं हो सकता है, परिस्थितियां जो भी हो… धारा 37 एनडीपीएस एक्ट के तहत निर्धारित कठोरता की व्याख्या करते हुए जस्टिस पुनीत गुप्ता ने कहा कि ‘उचित आधार’ को यह मानने के लिए दिखाया जाना चाहिए कि अभियुक्त धारा 19 या धारा 24 या धारा 27 के तहत अपराध और वाणिज्यिक मात्रा से जुड़े अपराधों के लिए का दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।
केस टाइटल: फूल चंद बनाम नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो।

[एमवी एक्ट] मुआवजे के लिए मृतक की वास्तविक आय का निर्धारण करने के लिए नियोक्ता की ओर से जारी ‘फॉर्म 16’ विश्वसनीय सबूत: बॉम्बे हाईकोर्ट बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि आयकर के उद्देश्य से एक नियोक्ता की ओर से जारी फॉर्म 16 में यदि सैलरी स्लिप से ज्यादा पारिश्रमिक दिखाया जाता है तो यह मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजे के लिए एक विश्वसनीय सबूत है। जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस गौरी गोडसे की खंडपीठ ने कहा, “हमारा मानना है कि फॉर्म 16 मृतक की वास्तविक आय का निर्धारण करने के लिए एक विश्वसनीय सबूत है। इसका कारण यह है कि फॉर्म 16 पर मृतक के नियोक्ता ने हस्ताक्षर किए थे….।”

केस टाइटलः अंजलि विलास देशपांडे बनाम प्रभा राजेंद्र गुप्ता

कर्नाटक सोसायटी पंजीकरण अधिनियम की धारा 25 रजिस्ट्रार को चुनाव मामलों की जांच करने का अधिकार नहीं: हाईकोर्ट कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार, कर्नाटक सोसायटी पंजीकरण अधिनियम की धारा 25 के तहत जांच करने की अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए, चुनाव मामलों में साक्ष्य पर विचार करने के लिए एक सिविल कोर्ट की शक्ति ग्रहण नहीं कर सकते हैं। प्रावधान रजिस्ट्रार को स्वयं या समाज के बहुसंख्यक सदस्यों के आवेदन पर, एक पंजीकृत समाज के संविधान, कार्य और वित्तीय स्थिति की जांच करने का अधिकार देता है।
केस टाइटल: एसए आरए गोविंदु और अन्य बनाम कर्नाटक सरकार

बाल यौन शोषण की सूचना न देना पॉक्सो एक्ट के तहत एक जमानती अपराध: केरल हाईकोर्ट केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 की धारा 21 के तहत दंडनीय अपराध एक जमानती अपराध है। पॉक्सो एक्ट की धारा 21 के तहत एक अपराध की रिपोर्ट करने में विफलता को छह महीने तक कारावास और अगर व्यक्ति किसी संस्था या कंपनी का प्रभारी है, तो कारावास एक वर्ष तक बढ़ सकता है।

केस टाइटल: XXXXX बनाम केरल राज्य

सेवानिवृत्त कर्मचारी पेंशन और ग्रेच्युटी के लिए वार्षिक वेतन वृद्धि की मांग नहीं कर सकता है यदि यह सेवानिवृत्ति के एक दिन बाद देय हो: केरल हाईकोर्ट केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि एक सरकारी कर्मचारी जो पिछले महीने के अंतिम कार्य दिवस पर सेवानिवृत्त होता है और जिसकी वार्षिक वेतन वृद्धि अगले महीने की पहली तारीख को देय होती है, वह पेंशन और ग्रेच्युटी के उद्देश्य से वार्षिक वेतन वृद्धि की मंजूरी का हकदार नहीं है। जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस मोहम्मद नियास सीपी की खंडपीठ ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ यूनियन ऑफ इंडिया द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच में उपरोक्त आदेश पारित किया, जिसमें सेवानिवृत्त लोगों को इसके हकदार होने का अधिकार दिया गया।
केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम पवित्रन के और अन्य और अन्य जुड़े हुए मामले

विवाहित महिला से किया गया शादी का वादा रेप केस का आधार नहीं बन सकताः केरल हाईकोर्ट केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को दोहराया कि पहले से विवाहित महिला से शादी करने के लिए एक पुरुष द्वारा किया गया वादा कानून में लागू नहीं है, और इस तरह के वादे के आधार पर उनके बीच कोई भी यौन बनने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 की सामग्री आकर्षित नहीं होती है। वर्ष 2018 में पुनालूर पुलिस स्टेशन द्वारा दर्ज एक बलात्कार के मामले को खारिज करते हुए, जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि विवाहित महिला ने स्वेच्छा से ”अपने प्रेमी के साथ” यौन संबंध बनाए और वह अच्छी तरह से जानती थी कि वह उसके साथ वैध विवाह में प्रवेश नहीं कर सकती है क्योंकि वह पहले से ही शादीशुदा थी।
केस टाइटल- टीनो थंकाचान बनाम केरल राज्य व अन्य

धारा 164 सीआरपीसी के तहत पीड़िता का बयान में बलात्कार के अपराध का खुलासा आईपीसी की धारा 376 के तहत आरोप तय करने के लिए पर्याप्त: दिल्ली हाईकोर्ट दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि बलात्कार के अपराध का खुलासा करने वाली सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त होगा। अदालत ने कहा कि जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि एक अभियुक्त को केवल बलात्कार के मामले में आरोप मुक्त नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि पीड़िता ने अपनी एफआईआर में या एमएलसी के दौरान इसके बारे में नहीं कहा है।
केस टाइटल: राज्य बनाम मोहम्‍मद जावेद नासिर और अन्य।

सुरक्षित लेनदार द्वारा की गई कार्रवाई के खिलाफ सरफेसी अधिनियम की धारा 17 के तहत चुनौती, मध्यस्थता की कार्यवाही पर रोक नहीं लगाता: दिल्ली हाईकोर्ट दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया कि वित्तीय संपत्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा हितों के प्रवर्तन अधिनियम, 2002 (सरफेसी अधिनियम) के तहत कार्यवाही और मध्यस्थता की कार्यवाही साथ-साथ चल सकती है। जस्टिस वी कामेश्वर राव की एकल पीठ ने कहा कि भले ही कोई पक्ष ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) के समक्ष याचिका दायर करके सरफेसी अधिनियम की धारा 17 के तहत सरफेसी की धारा 13 (4) के तहत सुरक्षित लेनदार द्वारा की गई कार्रवाई को चुनौती देने के लिए कार्रवाई करने का इरादा रखता हो, यह सुरक्षित लेनदार द्वारा मध्यस्थता की कार्यवाही शुरू करने पर रोक नहीं लगाएगा।
केस टाइटल: हीरो फिनकॉर्प लिमिटेड बनाम टेक्नो ट्रेक्सिम (आई) प्रा लिमिटेड और अन्य।

अभियुक्त केवल उन दस्तावेजों की ‘सूची’ का हकदार है जिन पर जांच एजेंसी द्वारा ट्रायल शुरू होने पर भरोसा नहीं किया गया: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि मुकदमे की शुरुआत में आरोपी व्यक्ति उन दस्तावेजों की सूची का हकदार है, जिन पर जांच एजेंसी भरोसा नहीं करती। हालांकि, अभियुक्त अविश्वसनीय दस्तावेजों को प्रदान किए जाने की मांग नहीं कर सकता। याचिकाकर्ता-आरोपी ने यहां सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाया। उसने विशेष पीएमएलए जज के छापे के दौरान प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों की प्रतियों की आपूर्ति करने से इनकार करने के आदेश को चुनौती दी।
केस टाइटल: अशोक सोलोमन बनाम प्रवर्तन निदेशालय और मैसर्स क्यूवीसी रियल्टी कंपनी लिमिटेड और अन्य बनाम प्रवर्तन निदेशालय

अफीम पोस्ता की अवैध खेती एनडीपीएस अधिनियम की धारा 18(सी) के तहत एक अपराध; धारा 36ए के तहत डिफॉल्ट जमानत पर सख्ती लागू नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि अफीम पोस्ता की अवैध खेती, मात्रा के बावजूद नारकोटिक्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम की धारा 18 (सी) के दायरे में आएगी। जस्टिस रोहित आर्य और जस्टिस मिलिंद रमेश फड़के की खंडपीठ ने आगे कहा कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 18 (सी) के तहत दी गई सजा पर विचार करते हुए संबंधित आरोपी धारा 167 (2) (ए) (ii) सीआरपीसी के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए पात्र होगा।
केस टाइटल: कल्ला मल्लाह और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य।

गोद लिया बच्चा अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त करने का हकदार: कर्नाटक हाईकोर्ट कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि एक गोद लिया बच्चा अपने दत्तक माता-पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त कर सकता है, जो परिवार की देखभाल करता था। जस्टिस सूरज गोविंदराज और जस्टिस जी बसवराज की खंडपीठ ने कहा, “बेटा, बेटा होता है या बेटी, बेटी होती है, गोद ली गई है या अन्यथा, अगर इस तरह के अंतर को स्वीकार किया जाता है तो गोद लेने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।”
केस टाइटल: गिरीश पुत्र विनायक कुमुत्तत्ती बनाम कर्नाटक राज्य व अन्य

आगे की जांच के दौरान, पुलिस प्रारंभिक अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के बाद की प्रासंगिक सामग्री को शामिल कर सकती है: केरल हाईकोर्ट केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि पुलिस द्वारा प्रारंभिक अंतिम रिपोर्ट (Initial Final Report) दाखिल करने के बाद अतिरिक्त चार्जशीट में घटनाओं/सामग्रियों को शामिल करना कानूनी रूप से स्वीकार्य है। इसमें कहा गया कि जब तक एकत्र किए गए सबूत और उसके बाद की घटनाएं अपराध के कमीशन की ओर इशारा करती हैं, जिसके लिए रिपोर्ट दायर की गई है, जांच एजेंसी ऐसी सामग्री को इकट्ठा करने में भी न्यायसंगत होगी और वास्तव में इसे रिपोर्ट के साथ आगे बढ़ाने के लिए बाध्य है।
केस टाइटल: कुरियाचन चाको व अन्य बनाम केरल राज्य व अन्य और जॉय जॉन और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य।

पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट यदि मजिस्ट्रेट की स्वीकृति के लिए लंबित है, तो पासपोर्ट जारी करने से इनकार किया जा सकता है : कर्नाटक हाईकोर्ट कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि भले ही न्यायाधिकार क्षेत्र वाले कोर्ट के समक्ष पुलिस की ओर से बी रिपोर्ट (क्लोजर रिपोर्ट) दाखिल कर दी गयी हो, लेकिन उसे स्वीकार किया जाना बाकी है, तो इसका मतलब यह नहीं होगा कि आरोपी मामले में बरी हो गया है और ऐसी स्थिति में पासपोर्ट अधिकारियों के पास पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज जारी करने से मना करने का अधिकार होगा। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल बेंच ने कहा, “(पासपोर्ट) एक्ट की धारा 6(2)(एफ) की कठोरता केवल तभी समाप्त होती है जब आपराधिक कार्यवाही या प्राथमिकी का सामना कर रहे आवेदक को बरी कर दिया जाता है, आरोप मुक्त कर दिया जाता है या उक्त आवेदक के खिलाफ कार्यवाही एक सक्षम कोर्ट द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए रद्द कर दी जाती है। केवल ‘बी’ रिपोर्ट दाखिल करने का मतलब यह नहीं होगा कि याचिकाकर्ता पासपोर्ट एक्ट की धारा 6(2)(एफ) के अनुसार आरोप मुक्त हो गया है।”

केस टाइटल: काजल नरेश कुमार बनाम भारत सरकार और अन्य

फैमिली कोर्ट डिफॉल्ट के खारिज होने के बाद सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन को बहाल कर सकता है: उड़ीसा हाईकोर्ट उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट के पास सीआरपीसी की धारा 125 आवेदन को बहाल करने के लिए ‘अंतर्निहित शक्ति’ है, जिसे पहले गैर-अभियोजन के लिए खारिज कर दिया गया था। जस्टिस राधा कृष्ण पटनायक की एकल पीठ ने कहा, “जब रखरखाव की कार्यवाही डिफ़ॉल्ट के कारण खारिज कर दी जाती है और यदि यह दावा किया जाता है कि किसी प्रावधान के अभाव में इसे बहाल करने के लिए अदालत के अधिकार क्षेत्र का अभाव है, तो इसे गैर-अभियोजन के लिए कैसे खारिज किया जा सकता था, फिर से सीआरपीसी में कोई प्रावधान नहीं है। न्यायालय के अनुसार चूंकि इस तरह की कार्रवाई मुख्य रूप से दीवानी प्रकृति की है, सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कार्यवाही को बहाल करने की शक्ति निहित है।”
केस टाइटल: सचिंद्र कुमार सामल बनाम मधुस्मिता सामल @ स्वाइन और अन्य।

अग्रिम जमानत केवल एक वैधानिक अधिकार है जो अनुच्छेद 21 से जुड़ा नहीं है; उत्तरोत्तर याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत का अनुरोध करना केवल एक वैधानिक अधिकार है, इस सप्ताह के शुरू में कहा कि दूसरी बार और उत्तरोत्तर अग्रिम जमानत अर्जी सुनवाई योग्य नहीं है। जस्टिस सुरेश कुमार गुप्ता की पीठ ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 439 (नियमित जमानत याचिकाओं को नियंत्रित करने वाला प्रावधान), जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 से उत्पन्न होती है, के विपरीत सीआरपीसी की धारा 438 केवल एक वैधानिक अधिकार है और अग्रिम जमानत प्रदान करने की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 21 से प्रवाहित नहीं होती है।
केस टाइटल – राज बहादुर सिंह बनाम उप्र सरकार [क्रिमिनल मिसलेनियस अग्रिम जमानत याचिका 438 सीआरपीसी संख्या – 8376/2022]

मुस्लिम शादियां पॉक्सो एक्ट से बाहर नहीं, शादी की वैधता के बावजूद नाबालिग से शारीरिक संबंध अपराध: केरल हाईकोर्ट केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने फैसला सुनाया है कि व्यक्तिगत कानून के तहत मुसलमानों के बीच विवाह को पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) के दायरे से बाहर नहीं किया गया है। जस्टिस बेचू कुरैन थॉमस ने कहा कि अगर विवाह में एक पक्ष नाबालिग है, तो विवाह की वैधता के बावजूद, पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध लागू होंगे।

केस टाइटल: खालेदुर रहमान बनाम केरल राज्य और अन्य।

किशोर न्याय अधिनियम के तहत जन्म तिथि के प्रमाण के लिए आधार कार्ड को दस्तावेज के रूप में मान्यता नहीं : केरल हाईकोर्ट केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा है कि आधार कार्ड को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 द्वारा एक्ट के तहत आरोपी की जन्म तिथि के प्रमाण के दस्तावेज के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने कहा कि जब किसी आरोपी की उम्र के संबंध में कोई विवाद होता है और यदि स्कूल से मिला प्रमाण पत्र उपलब्ध है, जो जन्म तिथि निर्दिष्ट करता है, तो केवल उसी पर जेजे अधिनियम, 2015 की धारा 94(2)(i) के तहत कथित बच्चे के जन्म की तारीख की पहचान करने के उद्देश्य से गौर किया जा सकता है।
केस टाइटल- सोफिकुल इस्लाम बनाम केरल राज्य

मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी से पैदा हुआ बच्चा अनुकंपा नियुक्ति पाने के योग्यः राजस्थान हाईकोर्ट राजस्थान हाईकोर्ट (जोधपुर बेंच) ने माना है कि मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी से पैदा हुआ बच्चा अनुकंपा नियुक्ति पाने के लिए योग्य है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस कुलदीप माथुर की पीठ ने मुकेश कुमार बनाम भारत संघ 2022 लाइव लॉ (एससी) 205 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया है कि अनुकंपा नियुक्ति नीति मृतक कर्मचारी के बच्चों को वैध और नाजायज के रूप में वर्गीकृत करके केवल वंश के आधार पर किसी व्यक्ति के खिलाफ भेदभाव नहीं कर सकती है।
केस टाइटल – हेमेंद्र पुरी बनाम जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी व अन्य,डी.बी. विशेष आवेदन रिट नंबर 1565/2018

कानूनी वारिसों को रिकॉर्ड में लाए बिना मृत व्यक्ति के खिलाफ पारित आदेश शून्यः दिल्ली हाईकोर्ट दिल्ली हाईकोर्ट ने मृत व्यक्ति के खिलाफ उसके सभी कानूनी प्रतिनिधियों को रिकॉर्ड में लाए बिना पारित कर निर्धारण/आकलन आदेश को शून्य(निरर्थक) करार देते हुए रद्द कर दिया है। जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि निर्धारिती (assessee) की मौत की सूचना उसके कानूनी वारिसों ने दी थी। आईटीआर में भी यह खुलासा किया गया था कि यह कानूनी प्रतिनिधि द्वारा दायर की गई है। हालांकि, रिकॉर्ड पर तथ्यों की जानकारी की कमी के कारण, कानूनी रूप से आवश्यक के रूप में उसके सभी कानूनी उत्तराधिकारियों को रिकॉर्ड में लाए बिना मृत निर्धारिती के नाम पर जांच की कार्यवाही गलत तरीके से आयोजित की गई थी।
केस टाइटल-विक्रम भटनागर बनाम एसीआईटी

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