शारदीय नवरात्रि का पहला दिन आज, कलश स्थापना का सही वक्त और मंत्र जानें

धर्म-कर्म-आस्था

माँ दुर्गा जगदम्बा की आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्र सोमवार  को शुरू हो गयी है. शारदीय नवरात्र में विशेषकर शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वती जी की विशेष आराधना फलदायी मानी गई है. श्रद्धा भक्ति के साथ व्रत उपवास रखकर पूर्ण शुचिता के साथ माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना करना लाभकारी रहता है. नवरात्रि में माता की आराधना के साथ ही कलश स्थापना का विशेष महत्व माना जाता है. 9 दिनों तक चलने वाली मां दुर्गा की आराधना के प्रथम दिवस कलश स्थापना का सही मुहूर्त और माता का आगमन किस वाहन या किस तरीके से बोला यह भी महत्वपूर्ण होता है.

इस बार माता दुर्गा हाथी पर सवार होकर अपने भक्तों के बीच आ रही हैं. उनकी विदाई यानी 9 दिनों के बाद यानी पूजन पाठ और अनुष्ठान संपन्न होकर जब माता को विदा किया जाएगा, तो माता हाथी पर ही सवार होकर वापस भी जाएंगी, जो ज्योतिषीय दृष्टि से काफी अच्छा माना जा रहा है. ज्योतिषाचार्यों की माने तो माता का आगमन और गमन हाथी पर होना इस बार सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से काफी अच्छा होगा और हर तरफ सुख संपन्नता और वैभव दिखाई देगा.

इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि वर्ष में चार नवरात्र होते हैं. इनमे 2 प्रत्यक्ष नवरात्र (चैत्र व आश्विन के शुक्लपक्ष) और 2 गुप्त नवरात्र (आषाढ़ व माघ के शुक्लपक्ष) माना जाता है. जिस तरह से चेक करना हो रहा है तू ग्रीष्म ऋतु की आहट मानी जाती है वैसे ही शारदीय नवरात्र  शरद ऋतु के आगमन का उत्सव है. पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि माता के 9 दिन नौ स्वरूप की आराधना की जाती है पहले दिन कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है, लेकिन इसके पहले धर्मशास्त्र माता के आगमन और उनकी विदाई के तरीके को महत्वपूर्ण मानते हैं हर साल माता का आगमन कभी नौका पर तो कभी डोली में और कभी हाथी पर होता है.

माता की विदाई भी इन्हीं चीजों पर मानी जाती है और इस बार माता का आगमन और विदाई दोनों ही गजराज यानी हाथी पर हो रही है” जो वैभव की दृष्टि से महत्वपूर्ण है. माता लक्ष्मी के दोनों तरफ हाथियों का होना, देवराज इंद्र की सवारी भी हाथी का माना जाना, देवताओं में प्रथम पूज्य गणेश जी का स्वरूप भी इस रूप में होना. इसलिए माता का आगमन गज पर होना विशेष फलदाई है. इससे सामाजिक दृष्टि से आर्थिक लाभ लोगों को होगा और मौसम की दृष्टि से वृष्टि अच्छी होने के साथ ही शरद ऋतु भी काफी लाभ देगी.

ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा: पंडित द्विवेदी का कहना है कि प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर भगवती माँ दुर्गा की पूजा का संकल्प लेना चाहिए. माँ जगदम्बा के नियमित पूजा में कलश की स्थापना की जाती है. कलश स्थापना के पूर्व गणेशजी का विधिविधान पूर्वक पूजन करना चाहिए. कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त प्रातः काल से ही प्रारम्भ हो जाता है, जो कि लगभग सूर्योदय से चार घण्टे तक रहता है. इस बार कलश स्थापना 26 सितम्बर सोमवार को की जाएगी. कलश स्थापना का सर्वश्रेष्ठ शुभमुहूर्त 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक (अभिजीत मुहूर्त) है. कलश स्थापना रात्रि में नहीं की जाती. कलश लोहे या स्टील का नहीं होना चाहिए. शुद्ध और स्वच्छ मिट्टी तथा शुद्ध जल से वेदिका बनाकर जौं के दाने भी बोए जाते हैं. इन्हें जयन्ती कहा जाता है, इनकी वृद्धि के फलस्वरूप सुख-समृद्धि का आंकलन कहा जाता है. माँ जगदम्बा को लाल चुनरी, अठ्ठल के फूल की माला, नारियल, ऋतुफल, मेवा मिष्ठान आदि अर्पित किए जाते हैं.

घट स्थापना का मुहूर्त: पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि इस बार नवरात्र नौ दिन का है. नवरात्र 26 सितम्बर, सोमवार से प्रारम्भ होकर 4 अक्टूबर, मंगलवार तक रहेगा. धार्मिक व पौराणिक मान्यता है कि रविवार या सोमवार को नवरात्र का प्रथम दिन या प्रतिपदा होने पर दुर्गाजी का वाहन हाथी माना गया है. जिसका प्रभाव सुदृष्टि जलदृष्टि का योग बनता है. इस बार आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 2 अक्टूबर रविवार को सायं 6 बजकर 48 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 3 अक्टूबर सोमवार को दिन में 4 बजकर 38 मिनट तक रहेगी. इसके बाद नवमी तिथि लग जाएगी, जो कि 4 अक्टूबर मंगलवार को दिन में 2 बजकर 22 मिनट तक रहेगी.

माता को पसंद हैं ये चीजें- नवरात्र में यथासम्भव रात्रि जागरण करना चाहिए. माता जगत जननी की प्रसन्नता के लिए सर्वसिद्धि प्रदायक सरल मंत्र ॐ एं हीं क्लीम, चामुण्डायै विच्चे’ का जप अधिकतम संख्या में नियमित रूप से करना चाहिए. नवरात्र के पावन पर्व पर माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना करके अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए. नवरात्र में कलश स्थापना के साथ श्री दुर्गा सप्तशती के सम्पुट पाठ करने का विधान है. कार्य विशेष के लिए श्रीदुर्गा सप्तशती के ही मन्त्र का सम्पुट लगाकर पाठ करना विशेष फलदायी माना गया है.

हर कार्य की सिद्धि का है अलग मंत्र:

  • सर्वमंगल के लिए- सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ।।
  • सौभाग्य और आरोग्य के लिए- देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥
  • आपत्ति उद्धारक- शरणागतदीनार्त परित्राणपरायणे। सर्वस्वार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ लरोगनाशक :- रोगानशेषापहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विप

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