गंगा दशहरा पर्व का जानें धार्मिक महत्व…

धर्म-कर्म-आस्था

हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हस्त नक्षत्र में जन-जन के हृदय में बसी मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। अत:इस दिन को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है ,जो इस बार  9 जून को है। इस दिन गंगा में स्नान एवं दान करने से प्राणी के सब दुःख दूर हो जाते हैं। गंगा दशहरा तन के साथ-साथ मन की शुद्धि का पर्व भी हैं

मां गंगा का कैसे हुआ धरती में अवतरण

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां गंगा का अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में हुआ था। माना जाता है भागीरथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए धरती पर गंगा को लाना चाहते थे। क्योंकि एक श्राप के कारण केवल मां गंगा ही उनका उद्धार पर सकती थी। जिसके लिए उन्होंने मां गंगा की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा ने दर्शन दिए और भागीरथ ने उनसे धरती पर आने की प्रार्थना की। फिर गंगा ने कहा “मैं धरती पर आने के लिए तैयार हूं , लेकिन मेरी तेज धारा धरती पर प्रलय ले आएगी। जिस पर भागीरथ ने उनसे इसका उपाय पूछा और गंगा ने शिव जी को इसका उपाय बताया। माना जाता है मां गंगा के प्रचंड वेग को नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में समा लिया जिससे धरती को प्रलय से बचाया जा सके। और उसके बाद नियंत्रित वेग से गंगा को पृथ्वी पर प्रवाहित करा। जिसके बाद भागीरथ ने अपने पूर्वजों की अस्थियां प्रवाहित कर उन्हें मुक्ति दिलाई।

गंगा स्नान का महत्व
मां गंगा शुद्ध,विद्यास्वरूपा,इच्छाज्ञान एवं क्रियारूप,दैहिक,दैविक तथा भौतिक तापों को शमन करने वाली,धर्म,अर्थ,काम एवं मोक्ष चारों पुरूषार्थों को देने वाली शक्ति स्वरूपा हैं। कहा गया है-‘गंगे तव दर्शनात मुक्तिः’अर्थात निष्कपट भाव से गंगाजी के दर्शन मात्र से जीवों को कष्टों से मुक्ति मिलती है और वहीं गंगाजल के स्पर्श से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। 

मान्यता है कि गंगा पूजन से मांगलिक दोष से ग्रसित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है एवं गंगा स्नान करने से अशुभ ग्रहों का प्रभाव समाप्त होता है। विधिविधान से गंगा पूजन करना अमोघ फलदायक होता है। अमावस्या दिन गंगा स्नान और पितरों के निमित तर्पण व पिंडदान करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं।

दशमी तिथि को दस चीजों का दान
स्कंद पुराण के अनुसार गंगा दशहरे के दिन श्रद्धालुजन दस-दस सुगंधित पुष्प,फल, नैवेद्य, दस दीप और दशांग धूप के द्वारा श्रद्धा और विधि के साथ दस बार गंगाजी की पूजा करें। जिस भी वस्तु का दान करें,उनकी संख्या दस होनी चाहिए और जिस वस्तु से भी पूजन करें, उनकी संख्या भी दस ही होनी चाहिए। ऐसा करने से शुभ फलों में वृद्धि होती है एवं मां गंगा प्रसन्न होकर मनुष्य को पापों से मुक्त करती हैं। इस दिन स्नान-दान करने से शरीर शुद्ध और मानसिक विकारों से रहित होता है। 

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