शहर के गढ़ा ब्राह्मण मोहल्ला में मालादेवी की प्रतिमा 14 सौ साल से है। यहां नवरात्र पर्व पर सुबह से जल ढारने के लिए भक्त पहुंचते हैं। खास बात यह है कि मां दिनभर में तीन बार अपना रंग बदलती है जिसका अहसास भक्तों को होता है।
इतिहास : मालादेवी का पूजन 6वीं शताब्दी से हो रहा है। ये कल्चुरी हैहय चंदेल क्षत्रिय वंश की कुलदेवी हैं। माला देवी भगवती महालक्ष्मी के स्वरूप में हैं। गोंडवंश की महारानी वीरांगना दुर्गावती नियमित रूप से आराधना कर अपने वैभव के आशीर्वाद मांगती थीं। वर्तमान स्थल के सामने राजा शंकर शाह का महल था, राजा शंकर शाह सुबह सबसे पहले भगवती के दर्शन करते थे। पहले मढ़िया में केवल एक पत्थर और वहां बानों को ही लोग पूजते थे, परन्तु 10वी शताब्दी में पत्थर की मूर्ति मढ़ा दी गई थी। अभी भी वही मूर्ति पूजी जा रही हैं। मालादेवी गढ़ा राजवंश की आराध्या थी अब जनसाधारण की पूज्य देवी हैं।
नारंगी, लाल और पीत वर्ण: माला देवी की मूर्ति में सूर्योदय से सूर्यास्त तक तीन रंगों में दर्शन होते हैं। देवी माई सुबह नारंगी, दोपहर लाल और शाम को पीत वर्ण में दर्शन देती हैं। अद्भुत अलौकिक स्वरूप में सूर्य घड़ी के अनुसार रंग बदलकर दर्शन आज भी विज्ञान के लिए पहेली है। एक पत्थर पर बने श्रीविगृह में सात प्रतिमाए हैं। भगवती माला देवी महालक्ष्मी का एकमात्र श्रीविगृह है, भगवती के नीचे कुबेर, ऋषि जाबलि, देव कन्या, गणिका उत्कीर्ण है, भगवती महामाया अष्ट कमल पर विराजित हैं।