राज्य आधारित जातीय जनगणना की संवैधानिकता पर एक्सपर्ट उठा रहे सवाल

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नई दिल्ली : कई राजनीतिक दल और राज्य सरकारें कुछ समय से जाति आधारित जनगणना की मांग कर रही हैं. इस मुद्दे पर चर्चा और बहस के बीच, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति आधारित जनगणना पर चर्चा करने के लिए पटना में एक सर्वदलीय बैठक बुलाई. नीतीश ने कहा कि ‘बिहार सरकार जातीय जनगणना कराएगी, सभी संप्रदाय के जातियों की होगी गिनती.’

जहां कुछ विशेषज्ञ किसी भी राज्य सरकार द्वारा जाति आधारित जनगणना कराने की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाते हैं वहीं कुछ का यह भी मानना ​​है कि राजनीतिक दल इस मुद्दे पर सिर्फ राजनीतिक दिखावा कर रहे हैं. संवैधानिक वैधता नहीं होने से राजनीतिक दलों के रुख के पीछे की मंशा भी सवालों के घेरे में है क्योंकि कई लोग इस अभ्यास को राज्य सरकार की ओर से अव्यवहारिक मानते हैं. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी दुबे ने इस मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि चूंकि जनगणना करना पूरी तरह से केंद्र सरकार का काम है, अगर राज्य अपनी जनगणना करता है तो यह अमान्य होगा.

अश्विनी दुबे ने कहा कि ‘यह मांग समय-समय पर तब भी उठाई जाती रही है जब यूपीए सरकार थी. 2018 में केंद्र सरकार पिछड़ी जातियों की जनगणना के लिए सहमत हुई और राज्यों को उस पर फैसला लेना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बाद में राजनीतिक दल चाहते थे कि जनगणना यूपीए के समय तय किए गए प्रारूप के अनुसार हो. यह पूरी तरह से एक केंद्र का विषय है, इस प्रकार यदि कोई राज्य ऐसा करता है तो यह केवल राजनीतिक उद्देश्य के लिए होगा, यह कानूनी और संवैधानिक नहीं होगा.

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों का जिक्र करते हुए अश्विनी दुबे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसलों में केंद्र सरकार को जनगणना और जाति आधारित जनगणना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया. राज्य सर्वेक्षण कर सकते हैं लेकिन उसके आधार पर कोई नीतिगत निर्णय नहीं ले सकते. हालांकि जद (यू) के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी की राय अलग है. त्यागी ने ‘ईटीवी भारत’ से बात करते हुए कहा कि सवाल यह है कि जाति आधारित जनगणना जरूरी है या नहीं.

त्यागी बोले-सभी दल जाति आधारित जनगणना चाहते हैं : केसी त्यागी ने कहा कि ‘जब 1931 में जनगणना हुई थी, उस समय जातिगत भेदभाव व्यापक था इसलिए बहुत से लोग अपनी जातियों को छुपाते थे. उस समय उच्च जाति से संबंध सम्मान का प्रतीक था जबकि पिछड़ी जाति अपमान की तरह थी. जाति के आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए, यह संविधान में लिखा गया है. यहां तक ​​कि अंबेडकर और अन्य लोगों ने भी इसे उचित ठहराया है. इस प्रकार जब पिछड़ी जातियों के लोगों को जाति के आधार पर आरक्षण दिया जाता है, तो उनकी संख्या का अनुमान होना चाहिए. ऐसे समय में जब हम हैं आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं पिछड़ी जातियों के लोगों को भी इन 75 वर्षों में अपने सामाजिक आर्थिक विकास के बारे में जानने का अधिकार है.’

जाति आधारित जनगणना कराने में देरी पर सवाल उठाते हुए त्यागी ने कहा कि यह सिर्फ बिहार सरकार की मांग नहीं है. जब संसद में यह मुद्दा उठाया गया तो लगभग सभी दलों ने कहा कि जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि ‘यह केंद्र सरकार का काम है लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं करने के पीछे कुछ तकनीकी मुद्दों का हवाला दिया है, हालांकि उनके बहाने अमान्य और अनावश्यक हैं. कर्नाटक में यह पहले ही हो चुका है और अब बिहार सरकार ने इस मुद्दे को उठाया है जिसे भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों का समर्थन मिला है. हरियाणा, पंजाब, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल आदि के लगभग सभी राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन किया है, तो समस्या कहां है? बिहार में आज की बैठक के बाद सभी दल एक प्रस्ताव पारित करेंगे और फिर जल्द ही ऐसा शुरू होगा.’

राज्य सरकार की ओर से कराई जाने वाली जाति आधारित जनगणना की संवैधानिक वैधता के सवाल का जवाब देते हुए त्यागी ने कहा कि संविधान में कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि राज्य अपनी जनगणना नहीं कर सकते हैं. जब राज्य अपनी जाति आधारित जनगणना करेंगे और आंकड़े जारी करेंगे, तो केंद्र सरकार भी इसका पालन करेगी.

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