रामनवमी हिंसा को लेकर सुरक्षा एजेंसियों को पीएफआई पर संदेह, लग सकता है बैन

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नई दिल्ली: गृह मंत्रालय देश भर में हिंसक गतिविधियों में कथित संलिप्तता के लिए विवादास्पद इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर प्रतिबंध लगा सकता है. हाल ही में गृह मंत्रालय को सौंपे गए एक डोजियर में खुफिया एजेंसियों ने 10 अप्रैल को रामनवमी के जुलूस के दौरान कई राज्यों में हुई हिंसा में पीएफआई का हाथ होने की ओर इशारा किया है.

मध्य प्रदेश, राजस्थान, गोवा, गुजरात, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में रामनवमी जुलूस के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई. गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने खुफिया रिपोर्ट के हवाले से कहा, ‘खुफिया एजेंसियों ने हाल ही में हुई हिंसक घटनाओं में पीएफआई की संलिप्तता की ओर इशारा किया है.’ रिपोर्ट में देश के कई अन्य क्षेत्रों में पीएफआई की गतिविधियों पर प्रकाश डाला गया है.

2006 में बना इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया शुरुआत में कुछ दक्षिण भारतीय राज्यों केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक तक सीमित था. बाद में राष्ट्रीय विकास मोर्चा (एनडीएफ), तमिलनाडु स्थित मनिथा नीति पासराई और कर्नाटक स्थित फोरम फॉर डिग्निटी सहित कई संगठनों का विलय हो गया. अब इसका आधार दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम में हो गया है. असम, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक जैसी कुछ राज्य सरकारें पहले ही पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र से संपर्क कर चुकी हैं.

फरवरी में अपनी नई दिल्ली यात्रा के दौरान असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने के लिए गृह मंत्रालय से भी मांग कर चुके हैं. गृह मंत्रालय के अधिकारी के मुताबिक सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) में भी पीएफआई से जुड़ी खुफिया रिपोर्ट पर विस्तृत चर्चा होने की संभावना है. अधिकारी ने कहा, ‘अगर सरकार को लगता है कि देश भर में पीएफआई के कारण व्यापक प्रभाव के साथ आसन्न खतरा है, तो पीएफआई पर प्रतिबंध किसी भी समय लग सकता है.’

पहले भी संदिग्ध रही भूमिका : गौरतलब है कि पीएफआई का हाथ 2018 के सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान सामने आया, 2020 के दिल्ली दंगों, 2021 में मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में अशांति के साथ-साथ कर्नाटक के हिजाब विवाद में भी उसकी भूमिका संदिग्ध थी. खुफिया एजेंसियों के साथ-साथ असम सरकार ने भी पिछले साल सितंबर में राज्य के दरांग जिले में कब्जा हटाओ अभियान के दौरान हुई हिंसा में पीएफआई की भूमिका पर संदेह जताया है. हालांकि पीएफआई इससे इनकार करती है.

‘आरोप बेबुनियाद’ : पीएफआई महासचिव मोहम्मद इलियास ने कहा कि ‘हम किसी भी भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल नहीं हैं. न ही हम सांप्रदायिक हिंसा को भड़काते हैं. इसके बजाय, हम अल्पसंख्यक समुदाय और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के अधिकारों के लिए लड़ते हैं. हम समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने का इरादा रखते हैं.’ इलियास ने कहा, ‘सरकार हमारे खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगा रही है. केंद्र सरकार भी हम पर दबाव बनाने के लिए अपनी एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है.’

गौरतलब है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी पीएफआई और उसके नेताओं के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच कर रहा है. एनआईए मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत 2013 में टेरर फंडिंग के लिए दर्ज एक मामले के आधार पर जांच कर रही है. 2010 में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) ने पहली बार गृह मंत्रालय को एक डोजियर प्रस्तुत किया था, जिसमें समूह को ‘इस्लामिक संगठनों का एक परिसंघ कहा गया था जो प्रतिबंधित इस्लामी आतंकवादियों स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (SIMI) के साथ सहयोग कर रहा था.’ 2017 में एनआईए ने एमएचए को एक डोजियर भी प्रस्तुत किया थी जिसमें पीएफआई के आतंकवाद से संबंधित मामलों की पुष्टि की गई थी.

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