भोपाल । लगातार टलते आ रहे और कोर्ट-कचहरी का भी शिकार बने पंचायतों के साथ नगरीय निकायों के चुनाव भी अब मई-जून में ही हो सकेंगे, क्योंकि राज्य निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची के पुनरीक्षण का जो नया कार्यक्रम घोषित किया है जिसमें परिसीमन के आधार पर मतदाता सूची बनाने को कहा है। पिछले दिनों पंचायत चुनाव ऐन वक्त पर सारी तैयारियों के बाद निरस्त करना पड़े, तो नगर निगम के चुनाव तो बीते दो सालों से ही टलते आ रहे हैं और पार्षदों-महापौर की बजाय प्रशासन द्वारा निगम चलाया जा रहा है। 23 हजार से अधिक पंचायतों और 457 नगरीय निकायों के चुनाव लम्बित पड़े हैं, जिसमें 16 नगर निगम भी शामिल है। इंदौर नगर निगम भी इनमें से एक है, जहां पर दो सालों से प्रशासक राज ही चल रहा है। हालांकि इससे नेतागिरी और दखल भी कम है। नतीजतन निर्णय भी फटाफट हो रहे हैं और स्वच्छता सहित कई मामलों में नगर निगम ने अपनी एक अलग साख बनाते हुए कई उपलब्धियां भी हासिल कर ली है।
सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी की भी आखिरकार हो गई नियुक्ति
लम्बे समय से खाली पड़े मध्यप्रदेश राज्य सहकारी प्राधिकरण के चेयरमैन के पद पर आखिरकार सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी एमबी ओझा की नियुक्ति कर दी गई है, जो कि मुख्यमंत्री के विश्वसनीय अधिकारियों में गिने जाते हैं। दरअसल पिछले दिनों सेवानिवृत्त हुए सहकारिता आयुक्त नरेश पाल और पूर्व आयुक्त आबकारी रजनीश श्रीवास्तव भी इस दौड़ में शामिल थे। मगर सहकारिता विभाग में रहते हुए दागी गृह निर्माण संस्थाओं पर प्रभावी कार्रवाई ना करने और कई भूमाफियाओं को बचाने के आरोप भी पूर्व सहकारिता आयुक्त पाल पर लगे, जिसके चलते उनका नाम चेयरमैन की दौड़ से कट गया। अब तीन हजार सहकारी समितियों के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो सकेगी।