पश्चिमी यूपी में आसान नहीं बीजेपी की राह, किसान आंदोलन बन सकता है रोड़ा!

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लखनऊ: जाटलैंड कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस बार विधानसभा चुनाव में रोमांचक मुकाबला है. राष्ट्रीय लोकदल का गढ़ माने जाने वाले पश्चिमी यूपी में भारतीय जनता पार्टी की इस बार राह आसान नहीं दिख रही है. क्योंकि इस क्षेत्र में अधिकतर किसान हैं और यहां से अधिकतकर लोगों ने किसान आंदोलन का समर्थन किया. किसान आंदोलन के नेता राकेश टिकैत का पश्चिमी यूपी के कई जिलों में पकड़ है और वह लगातार भाजपा का विरोध कर रहे हैं.

पश्चिमी यूपी.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के बाद राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) को एक संजीवनी मिल गई है. इसके साथ ही चौधरी अजीत सिंह के देहांत के कारण भी रालोद को भावनात्मक रूप से फायदा मिला है. पश्चिमी यूपी के 14 जिले की 76 सीटों पर पहले और दूसरे चरण मतदान हुआ है. यहां प्रमुख पार्टियों के साथ निर्दलीय 784 उम्मीदवार चुनाव में ताल ठोंक रहे हैं. 2017 विधानसभा चुनाव में हिंदुत्व के मुद्दे ने पश्चिमी यूपी भारतीय जनता पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हुई थी. 76 सीटों में 66 सीटें भाजपा की झोली में आई थी.

पश्चिमी यूपी.
पश्चिमी यूपी.

किसान आंदोलन और राकेश टिकैत का असर
केंद्र सरकार के 3 कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन का मुख्य चेहरा बने राकेश टिकैत का यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों में बड़ा प्रभाव दिखा है. पश्चिमी यूपी की करीब 60 विधानसभा सीटों पर किसान आंदोलन भाकियू राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का प्रभाव माना जाता है. यूपी विधानसभा चुनाव के पहले फेज में करीब 11 जिलों की कुल 58 सीटों पर मतदान हुआ था. इनमें से मेरठ, शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, हापुड़, गाजियाबाद, बुलंदशहर की करीब 30 सीटों के नतीजों पर राकेश टिकैत का सीधा असर है. इन जिलों में ज्यादा संख्या में किसान रहते हैं और किसानों पर भारतीय किसान यूनियन का सीधा दखल है. यहां समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल को अपरोक्ष रूप से टिकैत का समर्थन मिला है. इसके अलावा राष्ट्रीय लोकदल की भी किसानों पर मजबूत पकड़ है.

पश्चिमी यूपी की सियासत और मुद्दे
पश्चिमी यूपी किसान बाहुल्य क्षेत्र हैं, यहां खेती-किसानी और फसल मूल्य का मुद्दा हर चुनाव में रहता है. पश्चिमी यूपी के लोग खेती और किसानों को मुद्दा को लेकर हमेशा सरकार चुनते हैं, लेकिन 2017 के चुनाव में यह मुद्दा गौण हो गया था. वहीं 2022 विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस बार कृषि कानून के विरोध में शुरू हुए आंदोलन ने पूरा समीकरण बदलता नजर आ रहा है. चुनाव शुरू होने से पहले और चुनाव के बीच किसान नेताओं ने गन्ना मूल्य और छुट्टा पशुओं का मुद्दा उठाया. इसके अलावा लखीमपुर खीरी के तिकोनिया कांड में मारे गए किसानों का मुद्दा इस चुनाव में हावी रहा.

यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में परिणाम

1. शामली : यहां कुल तीन विधानसभा सीटें हैं. 2017 में दो सीटों पर भाजपा, जबकि एक पर सपा प्रत्याशी की जीत हुई थी.

2. हापुड़ : यहां तीन विधानसभा सीटें हैं। पिछली बार इनमें से दो पर भाजपा जबकि एक पर बसपा की जीत हुई थी।

3. गाजियाबाद : एनसीआर में पड़ने वाले इस जिले में विधानसभा की कुल पांच सीटें हैं। 2017 में सभी सीटें भाजपा के खाते में गईं थीं.

4. मेरठ : यहां विधानसभा की सात सीटें हैं. पिछली बार इनमें से छह पर भाजपा जबकि एक पर सपा प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी.

5. मुजफ्फरनगर : पश्चिमी यूपी के इस महत्वपूर्ण जिले में पांच विधानसभा सीटें हैं. 2017 में सभी सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी.

6. बागपत: यहां विधानसभा की तीन सीटें हैं. 2017 में इनमें से दो पर भाजपा जबकि एक पर रालोद प्रत्याशी की जीत हुई थी.

7. बुलंदशहर: यहां सात विधानसभा सीटें हैं और 2017 में सभी भाजपा के खाते में गईं थीं.

8. नोएडा (गौतमबुद्ध नगर) : यहां की तीन सीटों पर 2017 में भाजपा उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी.

9. अलीगढ़ : यहां की सभी सात सीटों पर 2017 में भाजपा प्रत्याशियों ने ही जीत हासिल की थी.

10. आगरा : यहां विधानसभा की नौ सीटें हैं. 2017 में सभी सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी.

11. मथुरा : यहां पांच सीटें हैं और इनमें चार पर भाजपा ने जीत हासिल की थी, जबकि एक पर बसपा प्रत्याशी ने परचम लहराया था.

12-सहारनपुरः जिले की सात सीटों में से 2017 के चुनाव में भाजपा को 4 सीटों पर जीत मिली थी. जबकि कांग्रेस को 2 और सपा को एक ही सीट से संतोष करना पड़ा था.

13-कासगंजः यहां तीन सीटें हैं. 2017 विधानसभा चुनाव में सभी सीटों पर भाजपा की उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी.

14- फिरोजाबाद: जिले की पांच विधानसभा सीटों में से 2017 में भाजपा को दो सीटें मिलीं थी. जबकि समाजादी पार्टी की झोली में 3 सीटें आई थीं.

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