इंदौर: एक मार्च को देश भर में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा. मध्य प्रदेश में भी भक्त शिवलिंग पर जल अभिषेक कर आशीर्वाद लेंगे. प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में प्राचीन कालीन शिव मंदिर बने हैं. इनमें उज्जैन, ग्वालियर, जबलपुर, दमोह, मंदसौर, विदिशा, मुरैना के शिव मंदिरों की काफी मान्यता है. आज हम इस रिपोर्ट में प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरों की चर्चा करेंगे. जहां लाखों की संख्या में भक्तों का तांता लगता है.
उज्जैनः बाबा महाकालेश्वर
उज्जैन में भगवान शिव धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए. नाराज शिव ने अपनी एक हुंकार से ही दूषण राक्षस को भस्म कर दिया. भक्तों की वहीं रुकने की मांग से अभीभूत होकर भगवान वहां विराजमान हो गए. इसी वजह से इस जगह का नाम महाकालेश्वर पड़ा गया, जिसे आप महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं. विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल की नगरी में एक मार्च को मनाए जाने वाला महाशिवरात्रि का पर्व ऐतिहासिक पर्व होने वाला है. 21 लाख दीपक शहर भर में जलाए जाएंगे तो वहीं सभी घाट पर 14 लाख दीपों को जलाने की तैयारियों में कई स्वयंसेवक संघ के लोग जुटे हैं, जिसमें विद्यार्थी, सामाजिक संघठन, विभागीय टीमें शामिल हैं. इस बार महाशिवरात्रि पर सांस्कृतिक एवं पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर ने महाशिवरात्रि पर हर घर में 5 दिए जलाने की अपील की है.
ग्वालियरः बाबा अचलेश्वर मंदिर
बाबा अचलेश्वर मंदिर ग्वालियर में स्थित है. इस मंदिर का इतिहास लगभग 750 वर्ष पुराना है. जिस स्थान पर आज यह मंदिर है, वहां कभी पीपल का पेड़ हुआ करता था. यह पेड़ सड़क के बीचो बीच था. इससे लोगों के आवागमन में परेशानी उत्पन्न होती थी. विजयदशमी के अवसर पर शाही सवारी निकलते वक्त काफी दिक्कत होती थी. पेड़ को हटाने के लिए शासक ने आदेश दिए. जब पेड़ काटा गया तो वहां शिवलिंग प्रकट हो गई. उसे हटाने के लिए काफी मेहनत की गई, लेकिन कोशिशें नाकामयाब हो गईं. सिंधिया परिवार ने भी खुदाई की, लेकिन कोई सफलता हाथ नहीं लगी. इसके बाद यहां मंदिर बनाया गया. अब यहां भक्तों की काफी भीड़ लगी रहती है. अचलेश्वर महादेव पर कई बड़ी राजनीतिक हस्तियां भी दर्शन के लिए पहुंचती है.
जबलपुरः गुप्तेश्वर मंदिर
जबलपुर के गुप्तेश्वर मंदिर को रामेश्वरम के उपलिंग स्वरूप का मंदिर भी कहा जाता है. यहां भगवान श्रीराम ने यहां स्वयं शिवलिंग बनाया और उसका करीब एक माह तक अभिषेक भी किया था. उसके बाद वे यात्रा के लिए आगे बढ़ गए. मान्यता है कि इस मंदिर में आने वालों की मनोकामनाएं जल्द पूरी होती हैं. 14 साल के वनवास के दौरान उत्तर से दक्षिण की ओर रास्ते पर जब भगवान श्रीराम निकले तब सुद्रीक्षण ऋषि के आश्रम में उनकी मुलाकात अनेक संतों और स्वयं ऋषि जबाली से हुई. जबाली ऋषि ने भगवान राम के वनवास का स्मरण किया तो पता चला कि ये कि ये पूरा कुचक्र मंथरा ने कैकई के द्वारा कराया था.
दमोहः भगवान जागेश्वर नाथ
जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर कटनी रेलखंड की तरफ बांदकपुर धाम प्राचीन काल से अव्यवस्थित है. यह धाम भगवान शिव एवं माता पार्वती के धाम के रूप में प्रसिद्ध है. यहां की अनेक कथाएं और संस्मरण चमत्कारों से भरे पड़े हैं. मंदिर निर्माण की पूर्व यहां केवल भगवान शिव की विशालकाय स्वयंभू लिंग रूप में विराजमान थे. करीब 300 वर्ष पूर्व मराठा काल में 1711 ईस्वी में मराठा राज्य के दीवान बालाजी राव चांदोरकर ने मंदिर का पुनःनिर्माण कराया था. ब्रिटिश लेखक आरवी रसल ने 1906 के गजेटियर में उल्लेख किया है कि बालाजी राव चांदोरकर को भगवान जागेश्वर नाथ ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर मंदिर निर्माण कराने का आदेश दिया था.
मंदसौर भगवान धर्मराजेश्वर मंदिर
मंदसौरः भगवान धर्मराजेश्वर मंदिर
जिले के गरोठ उपखंड में स्थापित धर्मराजेश्वर मंदिर एक अद्भुत विशालकाय मंदिर है, जो आज की इंजीनियरिंग को चुनौती देता हुआ प्रतीत होता है. एकात्मक शैली से बना यह मंदिर पहले सीकर से निर्माण शुरू हुआ जो मंदिर की नींव तक गया धर्मराजेश्वर मंदिर शिव और विष्णु की प्रतिमा विराजमान है. शिवरात्रि को यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. विभिन्न कलाकृतियों से निर्मित यह मंदिर विभिन्न कलाकृतियों को दर्शाता है. 1415 मीटर में बना यह विशालकाय मंदिर सात छोटे मंदिर व एक बड़ा मंदिर हैं. 9 मीटर गहरा खोद कर 200 छोटी बड़ी गुफाएं इस मंदिर साथ निर्माण किया गया है, जो अजंता एलोरा गुफाओं से मिलता जुलता है. अजंता एलोरा की गुफाओं में कैलाश मंदिर की तुलना धर्मराजेश्वर मंदिर से की जा सकती है.
विदिशा बांग्ला घाट के राजा भोलेनाथ
विदिशाः बांग्ला घाट के राजा भोलेनाथ
बेतवा नदी के किनारे एक प्रसिद्ध बंगला घाट, जो अंग्रेजो के समय काल से प्रसिद्ध है. यहां अति प्राचीन शिव जी नंदी जी एक साथ चबूतरे पर विराजमान हैं. बांग्ला घाट के राजा भोलेनाथ का इतिहास लगभग 400 साल पुराना है. महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां तीन दिवसीय आयोजन किया जा रहा है. समापन दिवस महाशिवरात्रि पर भगवान भोलेनाथ को दूल्हा बनाकर लोगों की मौजूदगी में एक शोभायात्रा भी निकाली जाएगी.
मुरैनाः बरई कोट महादेव
मुरैना जिले के पहाड़गढ़ क्षेत्र में एक प्राचीन मंदिर है. इसका नाम “बरई कोट महादेव” है. शिवरात्रि के समय यहां पर बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. शिवरात्रि के दिन यहां पूजा अर्चना करने से विशेष फल मिलता है. मंदिर तक पहुंचने के लिए कच्चे रास्तों पर ही जाना पड़ता है. घने जंगल में होने की वजह से यहां केवल दिन में ही लोग जाते हैं. मान्यता के अनुसार इस मंदिर की गुफा में पांडवों ने अज्ञातवास काटा था. गुफा में शिव परिवार विराजमान है. प्राचीन शिवलिंग पर 24 घंटे पानी की अविरल धारा प्रवावित होती है.