भोपाल। मध्य प्रदेश में शराबबंदी का मुद्दा एक बार फिर गरमा रहा है। इस बार भी इसे हवा दे रही हैं पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा की वरिष्ठ नेता उमा भारती। राज्य के विकास के लिए शराबबंदी को बहुत जरूरी बताते हुए उन्होंने सड़क पर उतरकर आंदोलन छेड़ने की घोषणा की है। यह भी साफ किया है कि यह आंदोलन सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि शराब के खिलाफ होगा। उनके बयान ने एक बार फिर राज्य में सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है। कांग्रेस ने बिना देर किए यह कहकर इसे लपकने का संकेत दे दिया कि शराबबंदी के खिलाफ उमा के आंदोलन को वह समर्थन देगी। जाहिर है कांग्रेस इसमें शिवराज सरकार को घेरने का रास्ता देख रही है। भाजपा की ओर से उमा के बयान पर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। इसका मतलब साफ है कि सरकार को असहज करने वाले इस आंदोलन को भाजपा का समर्थन नहीं मिलेगा।
दरअसल यह पहला अवसर नहीं है, जब उमा भारती शराबबंदी का मुद्दा उठाकर परोक्ष रूप से अपनी ही पार्टी की सरकार पर दबाव बना रही हैं। पहले भी वह इस मामले को लेकर आंदोलन छेड़ने का बयान दे चुकी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलकर इस पर चर्चा भी कर चुकी हैं। तब उनसे बातचीत के बाद कोरोना संकट को देखते हुए उन्होंने आंदोलन स्थगित कर दिया था। माना जा रहा था कि उमा सरकार के रुख से सहमत हो गई हैं और अब इस मुद्दे को नहीं उठाना चाहती हैं। इस बीच उन्होंने तीन दिन पूर्व पत्रकारों से चर्चा में यह कहकर हलचल मचा दी कि प्रदेश में शराबबंदी के लिए वह सड़क पर उतरेंगी। उमा भारती भाजपा की वरिष्ठ नेता हैं और प्रदेश में सरकार भी भाजपा की ही है। ऐसे में उनके बयान को स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस ने लपक लिया। उसने स्पष्ट किया कि वह उमा भारती के साथ आंदोलन में शामिल होगी।
कांग्रेस का यह बयान उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान दोनों के लिए असहज करने वाला है। सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या उमा भारती कांग्रेस के समर्थन से अपनी ही सरकार में शराबबंदी के लिए आंदोलन चलाएंगी। उमा अपना बचाव करते हुए जवाब दे रही हैं, ‘हमारा आंदोलन सरकार के नहीं शराब के खिलाफ है। कांग्रेस या कोई भी संगठन इसे सरकार विरोधी आंदोलन के रूप में प्रचारित करने की कोशिश न करे। मैं शिवराज सिंह चौहान एवं भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा से मिलकर बात करूंगी। दोनों ही सद्गुणों वाले नेता हैं। मुझे भरोसा है कि मेरी बात से वे सहमत होंगे।’
यह गौर करने वाला तथ्य है कि राज्य को केवल शराब की बिक्री से लगभग दस हजार करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व मिलता है। कोरोना संकट के बाद उपजी स्थितियों से अर्थव्यवस्था बेपटरी है। सरकार इसे संभालने के लिए लगातार कर्ज ले रही है। ऐसे में राजस्व प्राप्ति के बड़े स्रोत को बंद करने का निर्णय लेना लगभग असंभव है। कुछ माह पहले भी उमा भारती ने जब शराबबंदी की मांग की थी, तब शिवराज सिंह चौहान ने स्पष्ट कर दिया था कि वह केवल शराबबंदी ही नहीं, बल्कि पूर्ण नशाबंदी के समर्थक हैं। इसके लिए जनजागरूकता जरूरी है। यह काम लोगों को नशे से दूर रहने के लिए प्रेरित करके किया जाना चाहिए। उमा भारती इसके उलट बिहार और गुजरात जैसे राज्यों का उदाहरण दे रही हैं कि किस तरह वहां आय के दूसरे स्रोत विकसित कर शराबबंदी करके जनता को मरने से बचा लिया गया। उन्होंने एक और तर्क दिया है कि कोरोना संकट के कारण राज्य में जब शराब की दुकानें बंद थीं, तब शराब के कारण किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई, लेकिन शराब की उपलब्धता होते ही कई लोगों की जान चली गई है।
हालांकि यह किसी से छिपा नहीं है कि मानकों का उल्लंघन करके अवैध रूप से बनने और बिकने वाली शराब के कारण ही राज्य के कई हिस्सों में मौतें हुई हैं। एक तथ्य यह भी है कि प्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में शराब बेरोकटोक बनाई और बेची जाती है। यहां आदिवासी समुदाय के लोगों को पांच लीटर कच्ची शराब बनाने की छूट है। शराबबंदी करनी है तो सबसे पहले उन इलाकों से शुरुआत करनी होगी जिनके लिए सरकार ने ही शराब निर्माण की स्वीकृति दे रखी है। नशे के खिलाफ काम करने वाले लोगों का मानना है कि जन जागरूकता से ही इसे रोका जा सकता है। किसी प्रतिबंध को कानूनी तौर पर लागू कर उसके उद्देश्य को प्राप्त करना कभी आसान नहीं रहा है। यह सही है कि गुजरात और बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू है, लेकिन वहां से आए दिन अवैध शराब की गतिविधियों की खबरें आती रहती हैं। सामान्य तौर पर बिकने वाली शराब से ज्यादा घातक अवैध शराब का लोगों तक पहुंचना है। यदि वास्तव में उमा भारती जनजागरण के जरिये इसे हटाना चाहती हैं तो यह सार्थक कदम हो सकता है, लेकिन यदि यह सरकार पर दबाव बनाने का जरिया होगा तो शायद ही कामयाबी मिले।