भोपाल। हजारों करोड़ रुपए के ई-टेंडर घोटाले में अधिकारियों द्वारा अपने डिजिटल हस्ताक्षरों को न केवल विभाग के साथियों को देकर टेंडर प्रक्रिया पूरी कराई गई बल्कि तबादलों के बाद भी उनके हस्ताक्षरों से ई टेंडर प्रक्रियाएं पूरी की गईं। आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) अहस्तांतरित डिजिटल हस्ताक्षरों का दूसरे व्यक्तियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने पर जांच कर रही है कि किसकी सहमति या आदेश से डिजिटल हस्ताक्षर का दूसरे व्यक्तियों ने उपयोग किया।
राज्य शासन द्वारा जिन नौ ई-टेंडर में छेड़छाड़ की प्रारंभिक जांच कर ईओडब्ल्यू को मामला सौंपा था, उसमें जिन अधिकारियों के डिजिटल हस्ताक्षर के उपयोग किए गए थे, उनके खिलाफ जांच शुरू हो रही है।
जल निगम में प्रवीण दुबे, जल संसाधन में आशीष महाजन, लोक निर्माण विभाग में अखिलेश उपाध्याय, मप्र सड़क विकास निगम में पीयूष चतुर्वेदी और पीआईयू में विजय कुमार सिंह के डिजिटल हस्ताक्षरों से ई-टेंडर प्रक्रिया पूरी हुई थी। जल निगम के दुबे और पीआईयू के विजयकुमार तो छेड़छाड़ के दौरान भी ई टेंडर प्रक्रिया से जुड़े थे लेकिन पीडब्ल्यूडी के उपाध्याय, सड़क विकास निगम के चतुर्वेदी व जल संसाधन के महाजन का तबादला हो चुका था।
सूत्रों के मुताबिक लोक निर्माण विभाग में उपाध्याय की जगह नरेंद्र कुमार तो आरडीसी में चतुर्वेदी की जगह आरके तिवारी ई टेंडर प्रक्रिया से जुड़े लेकिन उपाध्याय और चतुर्वेदी के डिजिटल हस्ताक्षरों का दोनों जगह उपयोग किया जाता रहा। इसी तरह जल संसाधन विभाग में महाजन के बाद कई अधिकारी ई टेंडर प्रक्रिया से जुड़े और सभी ने महाजन के डिजिटल हस्ताक्षरों का इस्तेमाल किया।
कई लोग जांच के घेरे में
बताया जाता है कि डिजिटल हस्ताक्षर का पासवर्ड कोई भी अधिकारी किसी को हस्तांतरित नहीं कर सकता। सूत्र बताते हैं कि ईओडब्ल्यू जांच कर रहा है कि तबादले के बाद भी अगर किसी अधिकारी के डिजिटल हस्ताक्षर से टेंडर प्रक्रिया की गई है तो उसमें शामिल सभी पक्षों के बयान लिए जाएंगे। जिस व्यक्ति के डिजिटल हस्ताक्षर हैं तो उसने स्वयं दूसरे व्यक्ति को पासवर्ड दिया या किसी अन्य अधिकारी के कहने पर दिया तो दोनों से ही पूछताछ की जाएगी। इसी तरह जिन अधिकारियों का तबादला नहीं हुआ लेकिन उन्होंने अपने पासवर्ड को अपने किसी भी साथी को दिया तो भी उन सभी लोगों के बयान लिए जाएंगे।