उत्तराखंड : भाजपा के सामने गढ़वाल और कुमाऊं के बीच समीकरण साधने की बड़ी चुनौती

देहरादून : उत्तराखंड पर एक बार फिर सियासी संकट मंडराता दिखाई दे रहा है. राज्य में पूर्ण बहुमत वाली बीजेपी सरकार के 5 वर्ष के कार्यकाल में उत्तराखंड को 2 मुख्यमंत्री मिल चुके हैं और अब आगे भी नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं सुर्खियों में हैं. उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से यहां प्रत्येक 5 साल में सरकारें बदली हैं और राज्य में 2 मंडल होने के मद्देनजर राजनीतिक पार्टियों ने भी पार्टी कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने और चुनावी समीकरण साधने के लिए सीएम और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के पद में संतुलन बनाया है. प्रदेश में हमेशा देखा गया है कि मुख्यमंत्री गढ़वाल मंडल का होने पर पार्टी प्रदेश अध्यक्ष कुमाऊं का बनाया जाता है. वहीं, अगर सीएम कुमाऊं मंडल का हो तो पार्टी अध्यक्ष गढ़वाल का रहता है.

  • बीजेपी का क्षेत्रीय समीकरण

उत्तराखंड में इस वक्त बीजेपी की सरकार है. बीजेपी-कांग्रेस दोनों ने उत्तराखंड में हमेशा से क्षेत्रीय और जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है. उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार रहते ऐसा सिर्फ 2 ही बार ऐसा हुआ है जब राज्य के दो बड़े पद (मुख्यमंत्री-पार्टी प्रदेश अध्यक्ष) एक मंडल के नेताओं के पास रहे हों. ऐसा पहली बार तब हुआ था, जब भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे, उस वक्त पूरन चंद्र शर्मा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष थे. यह दोनों नेता कुमाऊं मंडल से थे, लेकिन यहां पर भी बीजेपी ने जातीय समीकरण साधने की कोशिश की थी. वर्तमान में उत्तराखंड में दूसरी बार 2 दो बड़े पद एक मंडल के नेताओं के पास हैं.

  • कोश्यारी से तीरथ तक बीजेपी का जातीय और क्षेत्रीय समीकरण

2007 में भुवन चंद्र खंडूरी उत्तराखंड के सीएम बने तो तब कुमाऊं के बची सिंह रावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने का यह सिलसिला रमेश पोखिरियाल निशंक, त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत की मुख्यमंत्री रहते भी बरकरार रहा. निशंक के समय में कुमाऊं से बिशन सिंह चुफाल पार्टी अध्यक्ष रहे और उसके बाद क्रमशः अजय भट्ट, बंशीधर भगत और अब मदन कौशिक पार्टी अध्यक्ष बनाए गए. इसके अलावा बीजेपी ने हमेशा से इन पदों पर राजपूत-ब्राह्मण का संतुलन भी बनाए रखा है.

  • उत्तराखंड में गढ़वाल का पलड़ा भारी

उत्तराखंड की राजनीति को समझने के लिए पहाड़ी और मैदानी इलाकों का समीकरण समझना जरूरी है. 2017 चुनाव और उसके बाद से गढ़वाल क्षेत्र में बीजेपी की पलड़ा भारी हुआ है. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने वाले नेताओं ने इस क्षेत्र में बीजेपी को मजबूती दी है.

  • कांग्रेस का समीकरण

बीजेपी की तरह ही कांग्रेस भी जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने में लगी रही. उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2002 में विधानसभा चुनाव कराए गए थे और कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई थी. उस दौरान कुमाऊं रीजन के नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया गया था. उस वक्त कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत थे. राज्य को 3 मुख्यमंत्री देने वाली कांग्रेस के समय में 2 बार ऐसा हो चुका है जब एक ही रीजन के सीएम और पार्टी अध्यक्ष बनाए गए हैं. हालांकि, इसमें जातीय समीकरण बरकरार था.

  • कुमाऊं को मिल सकता है सीएम की कुर्सी
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