केंद्र और क्षेत्रीय दलों के बीच ‘चुभने’ वाला मुद्दा है कश्मीर का परिसीमन

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नई दिल्ली : केंद्र की एनडीए सरकार ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में निर्वाचित सरकार लाने के लिए परिसीमन कराने पर जोर दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में हुए इस फैसले के बाद ये मुद्दा केंद्र सरकार और घाटी के क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के बीच काफी चुभने वाला होने जा रहा है.परिसीमन अभ्यास नई विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों में यूटी की आबादी को व्यवस्थित करेगा. ऐसे में मौजूदा राजनीतिक समीकरण भी बदल जाएंगे. गुरुवार को प्रधानमंत्री की ओर से बुलाई गई बैठक में मौजूद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इसका कड़ा विरोध किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक के बाद एक ट्वीट में कहा, ‘परिसीमन तेज गति से होना चाहिए ताकि चुनाव हो सकें और जम्मू-कश्मीर को एक चुनी हुई सरकार मिले जो जम्मू-कश्मीर के विकास पथ को मजबूती दे.’ प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार की प्राथमिकता जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर के लोकतंत्र को मजबूत करना है.

परिसीमन, चुनाव राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए महत्वपूर्ण : गृह मंत्री

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि परिसीमन अभ्यास और शांतिपूर्ण चुनाव संसद में किए गए वादे के अनुसार राज्य का दर्जा बहाल करने में महत्वपूर्ण मील के पत्थर हैं. तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य जिसे अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया था. 87 सीटों पर चुनाव हुए और 24 सीटें पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र के लिए आरक्षित थीं, जिसे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के रूप में जाना जाता है. जम्मू और कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन के बाद केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में 4 विधानसभा सीटें चली गईं. पहले की व्यवस्था के तहत, कश्मीर घाटी क्षेत्र में 46 सीटें थीं जबकि जम्मू क्षेत्र में 37 सीटें थीं.

2014 में ये थी पार्टियों की स्थिति
2014 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (JKPDP) ने 28 सीटें जीतीं, उसके बाद भाजपा (25), जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (15), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (12), JK पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ( 2), सीपीएम (1) और निर्दलीय उम्मीदवार 3 सीटें जीतने में सफल रहे.

त्रिशंकु विधानसभा के परिणामस्वरूप भाजपा और पीडीपी ने राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाने के लिए हाथ मिलाया था. भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार जून 2018 तक चली. इसके बाद भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया और पूर्व राज्य को राष्ट्रपति शासन के अधीन कर दिया गया.

हालांकि, चल रहे परिसीमन अभ्यास के तहत, मौजूदा विधानसभा क्षेत्रों को फिर से तय किया जाएगा. यह ऐसा कदम है जिसका पीडीपी और फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाले जेके नेशनल कॉन्फ्रेंस दोनों ने विरोध किया था.

बैठक के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि परिसीमन प्रक्रिया में सभी की भागीदारी के मुद्दे पर बैठक में गहन चर्चा हुई. सिंह ने एक बयान में कहा, ‘बैठक में मौजूद सभी राजनीतिक दलों ने परिसीमन अभ्यास में भाग लेने के लिए अपनी सहमति व्यक्त की है.’

उमर अब्दुल्ला ने किया परिसीमन का विरोध

नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने परिसीमन अभ्यास का कड़ा विरोध किया. पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री के साथ बैठक के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘अगर अगस्त 2019 में लिए गए निर्णय का विचार जम्मू और कश्मीर राज्य को शेष भारत के बराबर लाना था, तो चल रही परिसीमन प्रक्रिया ही उद्देश्य को विफल कर देती है.’अब्दुल्ला ने कहा कि देश के बाकी हिस्सों में परिसीमन अभ्यास 2026 में किया जाएगा और विधानसभा चुनाव से पहले परिसीमन अभ्यास के लिए केवल जम्मू और कश्मीर को चुना गया है. प्रधानमंत्री के साथ चर्चा के बारे में बात करते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि उनकी पार्टी ने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की और वह सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ना जारी रखेगी. उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘हमने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से कहा कि हम अगस्त 2019 में लिए गए फैसले के साथ नहीं हैं.’

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