मां के कई रूप हैं और उसमें धैर्य है, प्यार है और इतनी फिक्र है कि उसका कर्ज उतारना मुश्किल है। मदर्स डे पर पढ़िए ऐसे ही किस्से जो उसकी इन्हीं खूबियों को बयां करते हैं…
बेटियों को मां की परछाई कहा जाता है वह मां के हर रूप से अच्छी तरह वाकिफ होती हैं और उन्हें सबसे करीब से समझती हैं। आज ऐसी ही कुछ बेटियां हमारे साथ साझा कर रही हैं अपनी सुपर मॉम्स की कहानी।
कहते हैं कि बच्चों को मां से बेहतर कोई नहीं जानता, कुछ ऐसा ही मां के साथ भी है। सुबह उठने से लेकर रात तक मां के संघर्ष को एक बच्चा बहुत करीब से देखता है। बेटियां मां की परछाईं होती हैं, जो उनके संघर्षों को करीब से देखती हैं, उनके दुख-सुख में भागी होती हैं। ऐसी ही मां के सुपर मॉम बनने की कहानी उनकी बेटियों ने इला कीर्ति से साझा की, Mother’s Day पर देखें यह खास स्टोरी.
मुश्किल में भी कभी हार नहीं मानी
पूजा बहल पर्यावरण ऐक्टिविस्ट हैं। उन्होंने आईपी कॉलोनी में एक ईको क्लब बनाया है, जो पॉलिथीन पर जागरूकता फैला रहा है। वह कचरे से खाद बनाने का काम भी करती हैं। उनसे जुड़ी महिलाएं कम्युनिटी लेवल पर खाद बनाती हैं। उनकी दो बेटियां हैं भव्या और कशिश। भव्या बताती हैं, ‘मेरी मां अपने काम को लेकर काफी समर्पित हैं। उनके सामने बहुत सारी दिक्कतें आईं। ईको क्लब के लिए फंड्स नहीं मिलते थे। तब भी वह लगी रहती थीं। हमने उनसे पौधों की अहमियत समझी। धरती और पर्यावरण को बचाने का फर्ज समझा। इन सारे कामों के साथ वह अपने परिवार को भी अच्छी तरह मैनेज करती हैं। उनकी लगन देखकर मुझे विश्वास हो गया कि कोई काम अगर शिद्दत से किया जाए तो सफलता जरूर मिलती है। मुझे एक बार याद है, जब ग्रीन बेल्ट में पेड़ लगाने थे तो आसपास के लोग उन्हें रोक रहे थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। आज उनकी मेहनत का नतीजा ही है कि वहां हरियाली है। हमारे बीच बहुत अच्छी अंडरस्टैंडिंग है। शायद ही कोई ऐसी बात हो, जो मेरे बारे में उन्हें न मालूम हो। दोस्त को भी जो बात नहीं बताती, वह मैं मां से शेयर कर लेती हूं।’
मल्टि-टास्कर हैं मां, हर काम में परफेक्ट
नीता अनेजा बिजनेस वीमेन हैं। वह ट्रेंज इंटरनैशनल और ट्रेंज इवेंट्स कंपनी की फाउंडर प्रेजिडेंट हैं। इसके साथ ही वह रंग सारथी थियेटर की फाउंडर प्रेजिडेंट भी हैं। उनकी दो बेटियां हैं। एक 21 साल और दूसरी 16 साल की। उनकी बड़ी बेटी श्रेया अनेजा ऑर्किटेक्ट स्टूडेंट हैं। वह बताती हैं कि मेरी मॉम मल्टी टास्कर हैं। वह हर चीज पूरे जूनून के साथ करती हैं, इतना तो हम नहीं कर पाते। वह चाहे कितनी भी व्यस्त हों, अगर मुझे कोई प्रॉब्लम हो तो सब काम छोड़कर मेरी बात सुनती हैं। जब मैं छोटी थी, उतना महसूस नहीं होता था। लेकिन अब जब कॉलेज में हूं तो महसूस करती हूं कि सारे काम मैनेज करना, सब खुद करना आसान नहीं होता। उनका एक बुक क्लब भी है। उनकी वजह से हम दोनों बहनों को रीडिंग की आदत भी पड़ी। अगर वह सौ चीजें कर रही होंगी तो हर एक काम में उतना ही पर्फेक्शन होगा। इस उम्र में उनमें जितनी एनर्जी है, उतनी तो मुझमें भी नहीं। जब वह थियेटर करती हैं, तो उनको देखती रह जाती हूं। कभी खाली बैठे नहीं देखा। उनकी सफलता का यही राज है कि वह हर काम में अपना सौ फीसदी देती हैं। मैं ऑर्किटेक्ट के तौर पर काम कर रही हूं, लेकिन मेरी समस्या भी मॉम सॉल्व कर देती हैं। वह क्रिएटिव भी हैं।’