भोपाल/इंदौर:राजधानी में ब्लैक फंगस बीमारी से पीड़ित 80 से ज्यादा मरीज अलग-अलग अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं। इनमें से 22 मरीज ऐसे हैं, जिनको एक आंख से दिखना बंद हो गया है। डॉक्टरों के मुताबिक ऐसा इंफेक्शन के ब्रेन में पहुंचने से हुआ है। हमीदिया में 30, चिरायु में 10, बंसल में 17 और दिव्य एडवांस ईएनटी क्लीनिक में ऐसे 5 मरीजों का इलाज चल रहा है। शहर में हमीदिया अस्पताल, एम्स, बंसल सहित 10 से ज्यादा अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था है। शनिवार को चिरायु और नोबल में ब्लैक फंगस संक्रमित 6 मरीजों की सर्जरी की गई। वहीं इंदौर में शनिवार शाम तक अलग-अलग अस्पतालों में सवा सौ से ज्यादा मरीज इस समस्या को लेकर भर्ती हो चुके हैं। एमवायएच में दो दिन पहले तक 18 मरीज थे, जो अब 29 हो गए हैं। इसके लिए पांचवीं मंजिल पर एक और नया वार्ड बनाया जा रहा है। उधर ग्वालियर में पिछले 39 दिन में इस बीमारी के 27 मरीज मिल चुके हैं। पहला मरीज 6 अप्रैल को मिला था, हालांकि वहां अभी तक किसी मरीज के ऑपरेशन की नौबत नहीं आई है।
इंदौर में लेक्चरर का निधन, कोरोना के साथ ब्लैक फंगस भी हो गया था
देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के ईएमआरसी के लेक्चरर डॉ. ललित इंगले का शनिवार को निधन हो गया। वे कोरोना पॉजिटिव थे, इसी के साथ उन्हें ब्लैक फंगस भी हो गया था। निजी अस्पताल में उनकी आंखों के ऑपरेशन की तैयारी थी, लेकिन ऑक्सीजन लेवल मेंटेन नहीं हो पा रहा था, इस कारण एनेस्थीसिया देने में परेशानी आ रही थी। हालांकि उनका इलाज जारी था। शनिवार को उन्होंने दम तोड़ दिया। बताते हैं कि 21 अप्रैल को उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। इस दौरान भी उनका ऑक्सीजन लेवल कम-ज्यादा हो रहा था। कुछ दिन पहले उन्हें आईसीयू से सामान्य वार्ड में शिफ्ट किया गया था, लेकिन इसके बाद अचानक ब्लैक फंगस की समस्या शुरू हो गई।
पहला – एक आंख जन्म से नहीं थी, दूसरी ब्लैक फंगस ने छीन ली
टीला जमालपुरा के रहने वाले 25 साल के तरुण की एक आंख जन्म से नहीं थी। कोरोना होने के बाद वह ब्लैक फंगस का शिकार हो गया। अब उसकी दूसरी आंख भी चली गई। पहले उसे हमीदिया में भर्ती किया गया, वहां से चिरायु ले जाया गया। एम्स में आंख का इलाज चल रहा था, इसी दौरान लॉकडाउन लग गया। अब इलाज भी बंद है।
दूसरा – तेज दर्द हुआ, डायबिटीज बढ़ी और दिखना बंद हो गया
34 साल के शिवकुमार (परिवर्तित नाम) को छह महीने पहले कोविड हुआ था। कुछ दिन पहले उनकी आंखों में तेज दर्द होने की शिकायत दर्ज कराई। डायबिटीज बढ़ी हुई है। एक आंख से दिखना बंद हो गया है। परिजन उनके इलाज के लिए शहर के तमाम बड़े अस्पताल में उनको लेकर गए थे। लेकिन अंतिम में हमीदिया अस्पताल में इलाज शुरू हो सका।
इसे भी पढ़े –काली फंगस से बचाव के लिए कोविड मरीज़ों को क्या करना चाहिए?
कोरोना से महंगा इलाज, जान का खतरा भी ज्यादा
ब्लैक फंगस का इलाज कोविड ट्रीटमेंट की तुलना में महंगा है।
इसमें जान का खतरा भी ज्यादा है। इलाज के दौरान किसी भी स्टेज में मरीज की जान जाने का खतरा बना रहता है।
इस बीमारी में मरीज को एम्फोटेरेसिन इंजेक्शन दिन में कई बार लगाया जाता है। यह 21 दिन तक लगवाना होता है। एक इंजेक्शन 5 हजार रु. का आता है।
ब्लैक फंगस संक्रमित एक गंभीर मरीज के इलाज पर रोजाना औसतन करीब 25 हजार रुपए खर्च होते हैं।
संक्रमण का शुरुआती स्टेज में पता चलने पर सायनस की सर्जरी से इसे ठीक किया जा सकता है। इस स्टेज में इलाज खर्च करीब 3 लाख रुपए आता है।
लेकिन पहली स्टेज पार कर लेने पर इसका खर्च 5 से 10 लाख पहुंच जाता है। जिसमें ब्रेन और आंखों की सर्जरी करना पड़ सकती है।
वहीं कोरोना के सामान्य मरीज के इलाज का औसत खर्च 10 हजार रुपए है। इस खर्च में मरीज अपनी मेडिकल जांच कराने से लेकर उसे दी जाने वाली जरूरी दवाएं शामिल है।
लेकिन, कोविड के कांप्लीकेशन वाले ऐसे मरीज, जिन्हें अस्पताल में ऑक्सीजन बेड, आईसीयू और वेंटिलेटर पर इलाज की जरूरत हो, उन पर 2 लाख से 10 लाख रुपए तक खर्च होते हैं।