आतंकवाद के साये से बाहर निकला कश्मीर, स्थायी शांति बहाली की दिशा में आगे बढ़ा

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नई दिल्ली। पिछले तीन दशक से हिंसा से ग्रस्त जम्मू-कश्मीर के लोग अब आतंकवाद के अतीत से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार मकबूल बट और अफजल गुरू की मौत की बरसी पर बंद के आह्वान का बेअसर होना इसका सुबूत है। गृह मंत्रालय भी जम्मू-कश्मीर में स्थायी शांति बहाली की दिशा में इसे शुभ संकेत के रूप में देख रहा है। सुरक्षा एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 1984 के बाद से ही मकबूल बट की मौत की बरसी पर हर साल 11 फरवरी को जम्मू-कश्मीर में पूरा जनजीवन ठप हो जाता था। इसी तरह 2013 के बाद अफजल गुरू की बरसी पर नौ फरवरी को भी ऐसा होने लगा। 

सुरक्षा एजेंसियों का आकलन, मुख्य धारा में तेजी से शामिल हो रहे कश्मीरी

इस बार भी जेकेएलएफ ने नौ और 11 फरवरी को जम्मू-कश्मीर बंद का आह्वान किया था और श्रीनगर के कुछ इलाकों में हुर्रियत कांफ्रेंस के नाम पर छिटपुट पोस्टर भी लगे, लेकिन घाटी में इसका कोई असर नहीं दिखा। श्रीनगर में सुरक्षा कारणों से सार्वजनिक परिवहन सेवाएं बंद थीं, लेकिन निजी वाहन के साथ लोग धड़ल्ले से धूम रहे थे। गृह मंत्रालय को मिली रिपोर्ट में बताया गया कि श्रीनगर में भी कई स्थानों पर दुकानों के शटर बाहर भले गिरे हुए थे, लेकिन अंदर से दुकानदार सामान्य दिनों की तरह ग्राहकों को सामान की सप्लाई कर रहे थे। 

जनता के मिजाज में इस बदलाव को शुभ संकेत मान रहा है गृह मंत्रालय

गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार मकबूल बट और अफजल गुरू की बरसी पर घाटी में सामान्य जनजीवन का होना एक शुभ संकेत है और इससे पता चलता है कि जम्मू-कश्मीर के लोग किस तरह से हिंसा से ऊब चुके हैं और आतंकवाद के अतीत को पीछे छोड़कर विकास के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहते हैं। उनके अनुसार अनुच्छेद 370 खत्म होने के बावजूद पंचायत, ब्लाक व जिला विकास परिषदों के चुनाव जम्मू-कश्मीर के लोगों में शासन के प्रति भरोसा कायम करने में सफल रहे हैं। आतंकवादी गुटों से घाटी के युवाओं का मोहभंग और पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी को भी इसी रूप में देखा जा रहा है।

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