
‘सरकार तो गई हुई है। इतना बड़ा आतंकी हमला हुआ, उन्हें कुछ पता ही नहीं है। नीचे आर्मी का बेस है, उन्हें पता ही नहीं है। कुछ भी है। पहलगाम में आर्मी रखो, भले दो-तीन रखो, लेकिन रखो।’
ये बात कहने वाले नक्श शैलेष कलाथिया के बेटे हैं। कश्मीर की वादियों में यादगार पलों की तलाश में गया गुजरात के सूरत का कलाथिया परिवार अब सदमे में है। परिवार के मुखिया शैलेष हिम्मतभाई कलाथिया का 23 अप्रैल को 44वां जन्मदिन था। वो परिवार के साथ इसे कश्मीर में सेलिब्रेट करना चाहते थे, लेकिन ये मुमकिन नहीं हो सका।
बर्थडे से एक दिन पहले 22 अप्रैल को पहलगाम की बैसरन घाटी में आतंकी हमला हुआ, जिसमें आतंकियों ने शैलेष की भी जान ले ली। उनकी खुशियों में शामिल होने गया परिवार अब पुलिस रिकॉर्ड में उनकी मौत का चश्मदीद बन चुका है। हमले को लेकर परिवार में जितना खौफ और गुस्सा है, सिस्टम और सरकार को लेकर उतने सवाल भी हैं।
24 अप्रैल को शैलेष का अंतिम संस्कार हुआ। इस दौरान हजारों लोग उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचे। पति को अंतिम विदाई देते हुए शीतलबेन ने कहा, ’आतंकवादियों से कह दो- मेरे पति हंसते हुए मरे, मैं भी नहीं रोई हूं। वो चाहते थे कि मेरा घर तबाह हो जाए, लेकिन ऐसा नहीं होगा।’
पहलगाम पहुंचने के डेढ़ घंटे बाद ही आतंकी हमला हो गया
शैलेष मूल रूप से अमरेली के रहने वाले थे। 4 बहनों में अकेले भाई थे। दो साल पहले शैलेष की मां की देहांत हो चुका है। उनके पिता गांव में रहते हैं। शैलेष स्टेट बैंक की मुंबई ब्रांच में पोस्टेड थे। सूरत में उनके पड़ोसी भिखा भाई बताते हैं, ‘कुछ समय पहले ही शैलेष परिवार के साथ मुंबई रहने गए थे। यहां सूरत में उन्होंने अपना मकान किराए पर दे रखा था। उनका यहां आना-जाना लगा रहता था।‘
हमले वाले दिन को याद करते हुए शैलेष की पत्नी शीतल बताती हैं, ‘हम 18 तारीख को मुंबई से जम्मू के लिए निकले थे। श्रीनगर में तीन रात रुकने के बाद 22 अप्रैल को दोपहर 1 बजे पहलगाम पहुंचे। वहां से घोड़े लेकर ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ कही जाने वाली बैसरन वैली चले गए।‘
ऊपर पहुंचते-पहुंचते दोपहर के करीब 2:30 बज गए थे। मुश्किल से 10-15 मिनट ही रुके थे। खाना खा रहे थे, तभी अचानक गोलियों की आवाज सुनाई दी।
‘पहले तो कुछ समझ नहीं आया। पास के दुकानदारों से पूछा तो वे भी डरे हुए थे और बोले कि इस इलाके में तो पहली बार ऐसी आवाज सुनी है। थोड़ी देर में फिर फायरिंग हुई, तब सबको एहसास हुआ कि ये आतंकी हमला है।‘
चुन-चुनकर हिंदुओं का कत्लेआम हुआ
शीतल आगे बताती हैं, ’लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागे, लेकिन छिपने के लिए ऐसी कोई जगह नहीं थी। तभी आतंकवादी सामने आ गए। एक आतंकी ने बोलना शुरू कर दिया कि जो हिंदू हैं, वे एक तरफ आ जाएं और मुसलमान दूसरी तरफ। हमारे आसपास जो मुसलमान थे, वे ‘मुसलमान… मुसलमान’ बोलने लगे।’
’ऐसा कहने पर हिन्दू एक तरफ हो गए और मुसलमान दूसरी तरफ हो गए। हम जैसे बैठे थे, उसी तरह बैठे रहे। उसी स्थिति में आतंकियों ने शैलेष को छाती में दाहिनी तरफ गोली मार दी। गोली लगते ही उनका सिर मेरी गोद में आ गिरा।’
शीतल बताती हैं, ’आतंकियों ने गोली मारने से पहले तीन बार ‘कलमा’ पढ़ने को कहा। जो मुसलमान थे या कलमा पढ़ सके, उन्हें छोड़ दिया। जो हिंदू थे या कलमा नहीं बोल पाए, उन्हें निशाना बनाया गया। इसके बाद आतंकियों ने बर्बरता की हद पार कर दी।’
’आतंकियों ने इतने करीब से गोलियां चलाईं कि दो-तीन मिनट में सब खत्म हो गया। वह तब तक वहीं खड़े रहे, जब तक लोग तड़प-तड़पकर मर नहीं गए। इस दौरान वे लगातार हंस रहे थे। उसने करीब 6-7 हिंदू पुरुषों को गोली मारी, लेकिन महिलाओं और बच्चों को छोड़ दिया।’
बेटी को डॉक्टर और बेटे को इंजीनियर बनाने का सपना
शीतल आगे बताती हैं, ’हम अपने बेटे को इंजीनियर और बेटी को डॉक्टर बनाना चाहते थे। शैलेष हमेशा कहते थे कि खराब आर्थिक हालात के चलते मैं विदेश पढ़ने नहीं जा सका। मुझे अपनी बेटी और बेटे को विदेश ही पढ़ने भेजना है।’ यह उनका सपना था, लेकिन अब अकेले ये सपना कैसे पूरा होगा।’
पति का शव उसी हालत में छोड़कर जाना पड़ा
शीतल बताती हैं, ‘आतंकियों के वहां से जाने के बाद अफरा-तफरी का माहौल हो गया। लोकल लोगों ने जिंदा बचे लोगों को पहाड़ी से तुरंत नीचे उतरने को कहा। मैं और मेरी बेटी पैदल ही किसी तरह पहाड़ से नीचे उतरे। बाकी कई लोग घोड़े पर बैठकर नीचे आए।’
’हालात ऐसे हो गए थे कि मुझे अपने पति को गोली लगी हुई हालत में ही वहीं छोड़ना पड़ा। बेटी-बेटे को बचाने के लिए उन्हें लेकर मैं पहाड़ियों से नीचे उतरने लगी। नीचे उतरने का रास्ता पता नहीं था। रास्ते में जगह-जगह बहुत खून फैला हुआ था। पैरों में जूते भी नहीं थे।’
आतंकी कैमरे पर रिकॉर्ड कर रहे थे मौत
शीतल की तरह उनके बेटे नक्श खौफनाक मंजर को याद करते हुए कहते हैं, ’आतंकियों ने वहां मौजूद सभी हिंदू पुरुषों को गोलियों से मार दिया। मेरे पापा को भी गोली मारी।’ हमलावर का हुलिया बताते हुए नक्श कहते हैं, ’वो गोरा और दाढ़ी वाला था। सिर पर टोपी थी, जिस पर कैमरा लगा हुआ था। उसने सफेद टी-शर्ट और काली जींस पहनी थी।’
नक्श का कहना है कि उन्हें सिर्फ दो आतंकवादी दिखे थे। शीतल ने भी एक लंबे, गोरे, दाढ़ी वाले आतंकवादी का जिक्र किया, जिसने हरे रंग का पठानी सूट और नमाज वाली टोपी पहनी थी। उसके हाथ में लंबी बंदूक (AK-47 जैसी) थी, जिस पर कैमरा लगा था।
शैलेष के भतीजे अंकुरभाई सुतरिया कहते हैं, ’हमने अब तक कई आतंकवादी हमले देखे हैं, लेकिन ये एक नस्लीय हमला था। ये लोग पहचान पूछ-पूछकर हमला कर रहे थे। इस हमले ने कई लोगों को बेसहारा कर दिया है।’
पत्नी बोलीं- देर से मिली आर्मी की मदद
शीतल ने आगे बताया, ‘हम जिन घोड़ों पर सवार होकर बैसरन गए थे, वो घुड़सवार भी जा चुके थे। मेरा एक घोड़ा था, जिस पर मैंने बेटी और बेटे को बिठा दिया। गिरते-पड़ते जैसे-तैसे 45 मिनट में हम नीचे उतरे। हमने आर्मी कैंप में पहुंचकर मदद के लिए तुरंत हेलिकॉप्टर पहुंचाने की गुजारिश की, क्योंकि बहुत से लोगों को गोली लगी थी। साथ ही वहां पहुंचने लायक पक्का रास्ता भी नहीं था, पर हमें जवाब मिला- ‘ठीक है, रिलैक्स।’
’नीचे उतरने से पहले ही मैंने अपने पति के फोन से कश्मीर में रहने वाले उनके दोस्त अरिज मनयर को फोन किया। इसके बाद उन्होंने कश्मीर पुलिस से कॉन्टैक्ट किया।’
शीतल का आरोप है कि नीचे आर्मी कैंप होने के बावजूद तुरंत कोई मदद नहीं मिली। वे कहती हैं, ’हमने आर्मी कैंप में चिल्ला-चिल्लाकर मदद मांगी, लेकिन कोई नहीं आया। सेना घटना के करीब आधे से डेढ़ घंटे बाद ऊपर पहुंची।’
उन्होंने गुस्से और दर्द के साथ कहा, ’इतने बड़े टूरिस्ट स्पॉट पर ना कोई आर्मी, ना पुलिस और ना ही कोई मेडिकल सुविधा थी। एक आर्मी वाले ने तो कहा कि आप लोग यहां घूमने ही क्यों गए? ये सुनकर हम हैरान रह गए।’
सरकार और इंतजाम को लेकर फूटा गुस्सा
शैलेष के अंतिम संस्कार में केंद्रीय मंत्री सी.आर. पाटिल भी श्रद्धांजलि देने पहुंचे। तभी शीतल का गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने मंत्री से सवाल करते हुए कहा, ’आपके पीछे कितने VIP हैं, कितनी गाड़ियां हैं? नेता जिस हेलिकॉप्टर में चलते हैं, वो टैक्स देने वालों के दम पर ही चलता है। आपकी जिंदगी ही जिंदगी है। टैक्स देने वाले की जिंदगी, क्या जिंदगी नहीं? सरकार इतना टैक्स ले रही है तो सुविधाएं क्यों नहीं देती?’
’हमें न्याय चाहिए। सिर्फ अपने पति के लिए नहीं, बल्कि उन सभी लोगों के लिए जिन्होंने अपनी जान गंवाई।’ शीतल आगे कहती हैं, ’कश्मीर को बदनाम न करें, दोष सरकार और सुरक्षा व्यवस्था में है। लोकल कश्मीरी लोग बहुत अच्छे हैं। समस्या बाहरी आतंकियों की है, जो धर्म के नाम पर नफरत फैलाते हैं।’
पहलगाम हमले के बाद… त्राल और अनंतनाग में लश्कर के 2 आतंकियों के घर में धमाका
पहलगाम हमले के 3 दिन बाद सेना ने बड़ा एक्शन लिया। जम्मू-कश्मीर के त्राल और अनंतनाग के बिजबेहरा में 2 लश्कर आतंकियों के यहां सर्च ऑपरेशन चलाया। ऑपरेशन के दौरान दोनों के घरों में रखा एक्सप्लोसिव ब्लास्ट हो गया। धमाके में आसिफ शेख और आदिल ठोकेर के घर पूरी तरह तबाह हो गए।
दक्षिण कश्मीर के त्राल में आतंकी आसिफ शेख का घर था। आसिफ कश्मीर का लोकल लड़का है, जो लश्कर के लिए काम करता है। अनंतनाग के बिजबेहरा में आतंकी आदिल का घर भी धमाके में ढह गया। इधर, बांदीपोरा में सर्च ऑपरेशन के दौरान शुरू हुए एनकाउंटर में सुरक्षा बलों ने एक आतंकवादी को मार गिराया है। 2 जवान भी घायल हैं।

सेना के एक्शन के दौरान अनंतनाग के बिजबेहरा में आतंकी आदिल का घर धमाके में ढह गया।
आतंकी की बहन बोली- हमें बेवजह सजा मिल रही पहलगाम हमले में शामिल बताए जा रहे आतंकी की बहन ने सुरक्षाबलों पर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा, ‘मेरा एक भाई जेल में है और दूसरा मुजाहिदीन है। मेरी दो बहनें भी हैं। जब मैं ससुराल से अपने घर आई, तो माता-पिता और भाई-बहन घर पर नहीं थे।
मुझे बताया गया कि पुलिस उन्हें ले गई है। तभी सुरक्षाबल आए और मुझे पड़ोसी के घर भेज दिया। मैंने देखा कि एक जवान ने वर्दी में हमारे घर की छत पर बम जैसी चीज रखी और फिर धमाका कर घर गिरा दिया। हम पूरी तरह बेगुनाह हैं। हमें बेवजह सजा मिल रही है।’

दक्षिण कश्मीर के त्राल में आतंकी आसिफ शेख के घर में रखे एक्सप्लोसिव में ब्लास्ट हो गया और घर ढह गया।